फ़र्ज़ी जाति प्रमाणपत्र के आधार पर हासिल नियुक्ति शुरू से ही अवैध : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

17 March 2020 4:00 AM GMT

  • फ़र्ज़ी जाति प्रमाणपत्र के आधार पर हासिल नियुक्ति शुरू से ही अवैध : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि फ़र्ज़ी जाति प्रमाणपत्र के आधार पर हासिल नियुक्ति शुरू से ही अवैध है और सरकार के सर्कुलर इस तरह की नियुक्ति पाने वालों को नहीं बचा सकता।

    न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की बेंच ने हाईकोर्ट के एक फ़ैसले के ख़िलाफ़ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह बात कही।

    इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील करने वाले पक्ष को सहायक इंजीनियर ग्रेड 1 में नियुक्त दी गई थी। यह पद अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित था। बाद में जाँच समिति ने इस पद पर नियुक्त पानेवाले व्यक्ति के जाति प्रमाणपत्र को ग़लत क़रार दिया।

    महाराष्ट्र सरकार ने अपने प्रस्ताव के माध्यम से इस व्यक्ति को विशेष पिछड़ी जाति का बताया और इस आधार पर उसे 23 अगस्त 2004 को सेवा में शामिल कर लिया।

    अपीलकर्ताओं ने हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर कर यह आदेश देने की माँग की गई कि प्रतिवादी की सेवा को मिले संरक्षण को समाप्त किया जाए और इस आदेश को निरस्त किया जाए।

    हाईकोर्ट ने कहा था कि चूँकि प्रतिवादियों ने अपीलकर्ताओं से पहले सेवा में प्रवेश किया इसलिए उनको यह संरक्षण प्राप्त करने का अधिकार है और भले ही उसने यह दावा क्यों न किया हो कि वे अनुसूचित जाति से आते हैं।

    यह भी कहा गया कि पंजाब नेशनल बैंक बनाम विलास गोविंदराव बोकड़े मामले में आए फ़ैसले को चैरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर, भारतीय खाद्य निगम बनाम जगदीश बलराम बहिरा मामले की सुनवाई करनेवाले तीन जजों की पीठ ने विशेष रूप से ख़ारिज नहीं किया।

    सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि पंजाब नेशनल बैंक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इसी तरह के प्रस्ताव को लागू किया था और कहा था कि उम्मीदवार को सरकारी प्रस्ताव का संरक्षण हासिल है।

    पीठ ने कहा कि यद्यपि पंजाब नेशनल बैंक के फ़ैसले को चैरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर, भारतीय खाद्य निगम मामले में तीन जजों की पीठ ने बदला नहीं पर उसने जो बातें कही वे इस तरह से थीं -

    प्रशासनिक सर्कुलर और सरकारी प्रस्ताव विधाई ताक़त लिए होते हैं और ये संवैधानिक चलनों और वैधानिक सिद्धांतों के ख़िलाफ़ नहीं हो सकते।

    अगर कोई उम्मीदवार किसी पर इस आधार पर नियुक्ति पाया है कि वह किसी विशेष जाति, जनजाति या वर्ग का है जिसके लिए यह पद था और जाँच के बाद जाँच समिति यह पाती है कि यह दावा ग़लत है, तो इस तरह के व्यक्ति की सेवा को प्रशासनिक सर्कुलर या प्रस्ताव से नहीं बचाया जा सकता।

    पद को हड़पनेवाले के दावे को संरक्षित करना संवैधानिक व्यवस्था और वैधानिक प्रावधानों से हटना है। कोई भी सरकारी प्रस्ताव या सर्कुलर संवैधानिक या वैधानिक नियमों की अनदेखी नहीं कर सकता।

    यह सिद्धांत कि सरकार अपने ही सर्कुलर से बंधा हुआ है, इस बात का पहले ही समाधान किया जा चुका है और वर्तमान जैसी स्थिति में यह लागू नहीं हो सकता।

    किसी ऐसे उम्मीदवार की सेवाओं का बचाव करना जो उस समुदाय या जनजाति का नहीं है जिसके लिए यह पद आरक्षित था, उन वाजिब लोगों के क़ानूनी अधिकारों का अतिक्रमण है जो उस आरक्षित समुदाय के हैं पर जिसका अधिकार देने से उसे इंकार किया गया है क्योंकि यह पद ऐसे लोगों को दे दिया गया है जिनके लिए यह नहीं है।

    इस तरह की स्थिति में जहाँ आरक्षित समुदाय या समूह के वास्तविक सदस्यों के अधिकारों पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है, सरकारी सर्कूलर या प्रस्ताव लागू नहीं हो सकते जिस वजह से उन्हें घाटा हो।

    पीठ ने कहा कि इसलिए हाईकोर्ट का यह कहना ग़लत था कि पंजाब नेशनल बैंक में जो निर्णय आया था वह भारतीय खाद्य निगम के मामले में तीन जजों की पीठ ने निरस्त नहीं किया।

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