सहमति के बिना कॉल ड‌िटेल साझा करने का आरोप: कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा 'जब भी जरूरी हो सेवा प्रदाता सूचना देने लिए बाध्य'

LiveLaw News Network

14 Jan 2020 4:15 PM IST

  • सहमति के बिना कॉल ड‌िटेल साझा करने का आरोप: कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा जब भी जरूरी हो सेवा प्रदाता सूचना देने लिए बाध्य

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने भारती एयरटेल लिमिटेड के चेयरमैन सुनील भारती मित्तल, मैनेजिंग डायरेक्ट गोपाल विटाल, मुख्य कार्यकारी अधिकारी रोहित मल्होत्रा, और कंपनी के नोडल ऑफिसर स्टेनली एग्नेलो के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 406, 504, 506 (बी) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 72, 72 ए और 66 ए के तहत दर्ज आपराधिक मामले को रद्द कर दिया है।

    अपनी पत्नी के साथ तलाक की कार्यवाही में शामिल एक शख्स ने मजिस्ट्रेट से निजी शिकायत में उक्त लोगों के खिलाफ अपराध दर्ज करने की मांग की थी। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया था कि सेवा प्रदाता कंपनी ने उनकी बिना सहमति के उनकी कॉल डिटेल उनकी पत्नी को सौंप दी। इसलिए सभी आरोपी सजा के भागी हैं।

    केस की पृष्ठभूमि:

    शिकायतकर्ता एन नरेश कुमार ने दावा किया था कि वह 'एयरटेल' का ग्राहक है। उनके और उनकी पत्नी के बीच पारिवारिक विवाद है। उन्होंने अपनी पत्नी के खिलाफ तलाक की याचिका दायर की थी। मामला बेंगलुरु में फैमिली कोर्ट में विचाराधीन था।

    दोनों के बीच विवाद बढ़ने के बाद शिकायतकर्ता ने अपना मोबाइल नंबर बदल दिया और नए नंबर का उपयोग करने लगा। आरोप था कि पत्नी ने एक अक्टूबर 2012 से 9 अक्टूबर 2012 के बीच की कॉल डिटेल इकट्ठा करने के लिए याचिकाकर्ताओं के साथ सांठगांठ की। उन्हें गुमनाम व्यक्तियों ने कॉल किया और उनकी पहचान और ठिकाने के बारे में पूछताछ की।

    मजिस्ट्रेट ने जांच और रिपोर्ट के लिए ‌शिकायत सोलादेवनहल्ली पुलिस सौंप दी ‌थी। मामले में आईपीसी की धाराओं 406, 503, 506, 507 और 34 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66-ए, 72 और 72-ए के तहत याचिकाकर्ताओं और पत्नी के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया।

    जांच अधिकारी ने मजिस्ट्रेट को 'बी' फाइनल रिपोर्ट सौंपी। प्रतिवादी नंबर एक द्वारा दायर विरोध याचिका के आधार पर मजिस्ट्रेट ने शिकायत में दर्ज अपराधों का संज्ञान लिया। उसके बाद शिकायतकर्ता के शपथबद्घ बयान की रिकॉर्डिंग के लिए मामले को आगे बढ़ा दिया।

    शिकायतकर्ता का बयान दर्ज करने के बाद मजिस्ट्रेट ने बैंगलोर के सहायक पुलिस आयुक्त (नॉर्थ डिविजन) बैंगलोर को मामले की आगे की जांच करने और रिपोर्ट देने का निर्देश दिया।

    सहायक पुलिस आयुक्त ने रिपोर्ट जमा की, जिसमें कहा गया कि शिकायतकर्ता द्वारा लगाए गए आरोपों में कोई सच्चाई नहीं है और शिकायतकर्ता ने अपनी पत्नी के खिलाफ प्रतिशोध लेने की भावना से प्र‌ेरित होकर शिकायत दर्ज कराई थी। दो रिपोर्टों के बावजूद, मजिस्ट्रेट ने 31 अक्टूबर, 2014 को एक आदेश पारित किया, जिसमें याचिकाकर्ताओं के खिलाफ मामला दर्ज करने और प्रक्रिया जारी करने का निर्देश दिया।

    याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सीवी नागेश ने दलील दी, "यह अदालत की प्रक्रिया के दुरुपयोग का एक स्पष्ट मामला है। आपराधिक कार्यवाही में प्रतिनिध‌िक दायित्व का सवाल ही नहीं उठता। साथ ही ये भी कहा गया कि यदि एक पुलिस अधिकारी को किसी मामले की जांच के क्रम में किसी व्यक्ति के कॉल डिटेल की आवश्यकता होती है तो सेवा प्रदाता कंपनी के संबंधित अधिकारी को इस तरह की जानकारी देना जरूरी होता है।

    इसके विपरीत, यदि ऐसी सूचना पुलिस अधिकारी को उपलब्ध नहीं कराई जाती है, तो पूरी संभावना होती है कि सेवा प्रदाता को सूचना न देने और पुलिस अधिकारी के कार्य में बाधा उत्पन्न करने के लिए पेश किया जा सकता है।"

    यह भी बताया गया कि 10-10 अक्टूबर 2012 को, संबंधित पुलिस अधिकारी ने महिला के पति की कॉल डिटेल सुरक्षित कर ली थी, क्योंकि महिला ने पुलिस से की शिकायत में कहा था कि उसका पति गायब ‌हो गया है।

    यही कारण था कि पुलिस को शिकायतकर्ता के कॉल ‌डिटेल को सुरक्षित रखना पड़ा क्योंकि शिकायतकर्ता की पत्नी ने अपनी शिकायत में कहा था कि शिकायतकर्ता अपने घर से गायब है।

    जस्टिस आर देवदास ने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, बैंगलोर रूरल डिस्ट्र‌िक्ट, बैंगलोर के संज्ञान लेने के आदेश और आगे की सभी कार्यवाही को रद्द करने का आदेश देते हुए कहा कि,

    "शिकायत को समान्य ढंग से देखने पर यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ताओं, जोकि सेवा प्रदाता हैं, के खिलाफ आरोपित अपराधों को स्‍थापित नहीं किया सकता है। सेवा प्रदाता कंपनी का कर्तव्य है कि जब भी किसी पुलिस अधिकारी द्वारा, जो मामले की जांच कर रहा हो, ऐसा अनुरोध किया जाता है तो वह जानकारी उपल्‍ब्‍ध करवाए और यदि स्थानीय अधिकारी जानकारी नहीं देता है, तो वह आपराधिक कार्रवाई और दंडात्मक परिणाम के लिए उत्तरदायी हो सकता है।

    मजिस्ट्रेट इन पहलुओं की जांच के लिए बाध्य थे और याचिकाकर्ता नंबर 1 और 2, जो सेवा प्रदाता कंपनी के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक हैं, और जो दिल्ली में रहते हैं, किसी भी प्रकार से देश भर में फैली शाखाओं की दैनिक गतिविधियों में शामिल नहीं हो सकते हैं।"

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