इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाथरस मामले पर स्वत: संज्ञान लिया कहा, इन घटनाओं ने हमारी अंतरात्मा को झकझोर दिया

LiveLaw News Network

1 Oct 2020 10:23 PM IST

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाथरस मामले पर स्वत: संज्ञान लिया कहा, इन घटनाओं ने हमारी अंतरात्मा को झकझोर दिया

    Allahabad HC Takes Suo Moto Cognizance Of Hathras Case; Says 'Incidents Have Shocked Our Conscience

    इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने हाथरस गैंगरेप मामले में स्वत: संज्ञान लेते हुए कहा कि यह एक "अत्यंत संवेदनशील" मामला है, जो नागरिकों के बुनियादी मानव / मौलिक अधिकारों को छू रहा है।

    जस्टिस जसप्रीत सिंह और जस्टिस राजन रॉय की बेंच ने उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) के माध्यम से, पुलिस महानिदेशक, यूपी, लखनऊ, अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक, कानून और व्यवस्था, यूपी, लखनऊ, जिला मजिस्ट्रेट, हाथरस, पुलिस अधीक्षक, हाथरस के माध्यम से यूपी राज्य को नोटिस जारी किया है और उन्हें सुनवाई की अगली तारीख 12 अक्टूबर को अदालत के समक्ष उपस्थित होने के लिए कहा है।

    नोटिस में आवश्यक सामग्री के समर्थन के साथ अपना पक्ष रखने और मृतक पीड़िता के खिलाफ अपराध से संबंधित जांच की स्थिति के बारे में अदालत को अवगत कराने के लिए कहा गया है।

    अदालत ने पीड़ित परिवार को भी उनका पक्ष सुनने के लिए बुलाया है। इसके लिए राज्य के अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देशित किया गया है कि किसी भी प्रकार से मृतक के परिवार के सदस्यों पर किसी भी प्रकार का कोई दबाव या प्रभाव नहीं डाला जाएगा।

    हाईकोर्ट ने आदेश दिया,

    "हम लखनऊ में इस न्यायालय के वरिष्ठ रजिस्ट्रार को स्वत: संज्ञान जनहित याचिका को "सभ्य और गरिमापूर्ण अंतिम संस्कार / दाह संस्कार का अधिकार" (Re : Right to decent and dignified last rites/cremation") के शीर्षक से दर्ज करने के लिए निर्देशित करते हैं।"

    इस मामले में 19 वर्षीय पीड़िता को 14 सितंबर को यूपी के हाथरस जिले में चार लोगों द्वारा कथित रूप से प्रताड़ित किया गया और सामूहिक बलात्कार किया गया। आरोप है कि अपराधियों ने पीड़िता की जीभ काट दी ताकि वह पुलिस को कोई बयान न दे और आरोपी कई दिनों तक उसके परिवार को बार-बार धमकी देते रहे।

    पीड़िता को गंभीर हालत में खेत में पाया गया और उसे इलाज के लिए अलीगढ़ के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया। 28 सितंबर को उसे एम्स दिल्ली में स्थानांतरित कर दिया गया, जहां अगले दिन उसने दम तोड़ दिया।

    कथित तौर पर, पीड़ित के परिवार को उसके शरीर का अंतिम संस्कार करने की भी अनुमति नहीं दी गई थी, बल्कि इसके बजाय, 29 सितंबर को परिजनों को घर में बंद करके पीड़िता का दाह संस्कार कर दिया गया।

    अदालत ने कहा कि पीड़िता के शव को उसके पैतृक गांव ले जाया गया, लेकिन "आश्चर्यजनक रूप से उसे उसके परिवार के सदस्यों को रीति-रिवाजों और धार्मिक क्रियाकर्म के अनुसार अंतिम संस्कार के लिए नहीं सौंपा गया बल्कि, यह आरोप लगाया गया कि उसके शरीर का "कुछ अन्य व्यक्तियों की मदद से अंतिम संस्कार किया गया।"

    मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, न्यायालय ने आगे कहा

    "दाह संस्कार लगभग रात 2:00 - 2:30 बजे के लगभग हुआ और उपरोक्त रिपोर्टों और समाचारों से पता चलता है कि मृतक के परिवार ने हिंदू परंपराओं का पालन किया, जिसके अनुसार, सूर्यास्त के बाद अंतिम संस्कार नहीं किया जाता है। "

    अदालत ने यह जोड़ा,

    "अखबार की रिपोर्ट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया कार्यक्रम / वीडियो क्लिपिंग से पता चलता है कि परिवार के लोग पार्थिव शरीर की मांग करते रहे और अधिकारियों को यह भी बताया कि परंपराओं के अनुसार, सूर्यास्त के बाद और दिन निकलने से पहले दाह संस्कार नहीं किया जा सकता है, फिर भी, जिला अधिकारियों ने परंपराओं के विपरीत दाह संस्कार किया। "

    कोर्ट ने कहा कि अगर ये रिपोर्ट सच हैं, तो यह "भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 और अनुच्छेद 25 के तहत" मूल मानव और मौलिक अधिकारों के घोर उल्लंघन का मामला होगा। जो हमारे देश में कानून और संविधान द्वारा शासित बिल्कुल अस्वीकार्य है। "

    कोर्ट ने ऑस्कर वाइल्ड के कथन को याद किया,

    "Death must be so beautiful. To lie in the soft brown earth, with the grasses wearing above one's head, and listen to silence. To have no yesterday, and no tomorrow. To forget time, to forget life, to be at peace."

    कोर्ट ने कहा,

    "जैसा कि यह है, अपराध के अपराधियों द्वारा मृतक पीड़िता के साथ बहुत क्रूरता के साथ व्यवहार किया गया और उसके बाद जो कुछ घटित होने का आरोप लगाया गया, अगर वह सच है, तो यह परिवार के दुख और उनके घावों में नमक रगड़ने के समान है।"

    न्यायालय इस तथ्य पर भी संज्ञान लिया कि राज्य सरकार के कुछ अधिकारियों ने समाचार पत्रों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में बयान दिया है कि परिवार के सदस्यों की सहमति से दाह संस्कार किया गया था और वे इस दौरान मौजूद थे।

    हालांकि, यह जांच करना चाहता है कि क्या राज्य के अधिकारियों द्वारा मृतक के परिवार की आर्थिक और सामाजिक स्थिति का फायदा उठाया गया और उन्हें उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित किया गया?

    आदेश की प्रति डाउनलोड करें


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