हिंदू एडॉप्‍शन और मेंटेनेंस एक्ट के तहत गोद लेना जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के खिलाफ नहीं है: केरल ‌हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

12 Jan 2020 11:53 AM GMT

  • हिंदू एडॉप्‍शन और मेंटेनेंस एक्ट के तहत गोद लेना जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के खिलाफ नहीं है: केरल ‌हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट (जेजे एक्ट) 2015, हिंदू एडॉप्‍शन एंड मेंटनेंस एक्ट (एचएएम अधिनियम) 1956 के तहत लिए गए दत्तक की वैधता को प्रभावित नहीं करेगा।

    कोर्ट ने दत्तक श‌िशु को माता-पिता की देखभाल से अलग करनै जैसी जेजे एक्ट के तहत अधिकारियों द्वारा की गई कार्रवाई को अवैध ठहराया है। अधिकारियों की दलील थी कि गोद लेना गैरकानूनी था क्योंकि इसे जेजे एक्ट के अनुसार नहीं किया गया था।

    जस्टिस के हरिलाल और जस्टिस सीडी ड‌िआस की डिवीजन बेंच ने ध्यान दिलाया कि मामले में गोद लेने की प्रकिया एचएएम एक्ट के तहत रजिस्टर्ड डीड के अनुसार की गई है और इस मामले में पक्ष हिंदू हैं।

    पीठ ने कहा कि यह उन मामलों में से है, जहां एक व्यक्ति दोनों कानूनों के तहत गोद लेने के लिए योग्य है, यह उस व्यक्ति की पसंद है कि वह हिंदू एडॉप्‍शन एंड मेंटनेंस (एचएएम) एक्ट 1956का चयन करने या जुवेनाइल जस्टिस (जेजे) एक्ट, 2015 का। पीठ ने कहा कि ऐसे मामलों में कोई भी अथॉरिटी ऐसे व्यक्ति को केवल जेजे एक्ट, 2015 का सहारा लेने के लिए मजबूर नहीं कर सकती है।

    मौजूदा मामले में, जैविक माता-पिता (याचिकाकर्ता 3 और 4) और दत्तक माता-पिता (याचिकाकर्ता 1 और 2) ने मिलकर हैबियस कॉर्पस की याच‌िका दायर की थी और चाइल्ड केयर इन्‍स्ट‌िट्यूशन (उत्तरदाताओं 4 से 6) को 'थानमयी' नाम के बच्चे, जो की 6 महीने की है, को पेश करने को निर्देश देने को कहा था। उनका कहना था कि बच्‍चा संस्थान की अवैध हिरासत में है।

    मलावल्ली सब-रजिस्ट्री कार्यालय, मांड्या, कर्नाटक में 5 अगस्त 2019 को पंजीकृत दत्तक विलेख द्वारा जैविक माता-पिता ने बच्‍चे को दत्तक माता-पिता को गोद दिया था। चूंकि याचिकाकर्ता सभी हिंदू धर्म के थे, वे HAM अधिनियम के प्रावधानों द्वारा शासित थे। जैविक माता-पिता और दत्तक माता-पिता ने अपनी स्वतंत्र इच्छा और पसंद पर बच्चे को गोद लेने और देने का फैसला किया था। इसलिए 5 अगस्त 2019 से बच्चा दत्तक माता-पिता की देखभाल और हिरासत में था।

    नौ दिसंबर 2019 को चाइल्ड वेलफेयार कमेटी (सीडब्ल्यूसी) ने दत्तक माता-पिता से बच्चे को जबरन छीन लिया और अपनी हिरासत में ले लिया। संस्था ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ जेजे एक्ट की धारा 80 के तहत एफआईआर भी दर्ज करा दी, जो ऐसे व्यक्ति या संगठन की सजा से संबंधित है, जो उक्त अधिनियम के प्रावधानों का पालन किए बिना किसी अनाथ बच्चे (परित्यक्त या आत्मसमर्पण) को देता या लेता है।

    इसके परिणामस्वरूप चाइल्ड केयर संस्थानों द्वारा दायर की गई एफआईआर और दत्तक माता-पिता से बच्चे को छीनने और अवैध हिरासत में रखने के खिलाफ याचिका दायर की गई।

    न्यायालय के समक्ष प्रश्न आया कि क्या गोद लेने में प्रभावी एचएएम एक्ट के प्रावधान, जेजे अधिनियम के खिलाफ हो सकते हैं और क्या बच्चा उत्तरदाताओं (बच्चे की देखभाल करने वाली संस्था) की गैरकानूनी नजरबंदी में है।

    एचएएम अधिनियम की धारा 2 (1) के अनुसार, उक्त अधिनियम किसी ऐसे व्यक्ति पर लागू होता है जो किसी भी रूप या घटनाक्रम में धर्म से हिंदू है।

    जब यह किशोर न्याय अधिनियम, 2015 की धारा 56 (3) में आता है:

    "इस अधिनियम में कुछ भी हिंदू एडॉप्‍शन एंड मेंटेनेंस एक्ट, 1956 (78 ऑफ1956 78) के प्रावधानों के तहत गोद लिए गए बच्चों पर लागू नहीं होगा।"

    कोर्ट ने कहा,

    "उपरोक्त प्रावधानों से ये स्थापित होता है कि एचएएम एक्ट और जेजे एक्ट केंद्रीय अधिनियम हैं, जो अपने-अपने क्षेत्रों से संबंधित हैं। पहला कानून हिंदुओं के बीच गोद लेने और रखरखाव से संबंधित है, और बाद का कानून ऐसे बच्चों से संबंधित है, जिन्होंने गैरकानूनी गतिविधि की है या जिन्हें देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता है। दोनों क़ानूनों की बारीकी से जांच करने पर हमें दोनों विधानों के बीच कोई प्रतिवाद नहीं दिखता है। "

    कोर्ट ने कहा कि चाइल्‍ड वेलफेयर कमेटी (सीडब्ल्यूसी) ने दो अधिनियमों के तहत दिए वैधानिक प्रावधानों पर विचार किए बिना जेजे अधिनियम की धारा 80 के तहत याचिकाकर्ताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज की। अदालत ने आगे कहा कि जैविक माता-पिता ने अपने बच्चे को दत्तक माता-पिता को एचएएम अधिनियम के सभी प्रावधानों को पूरा करने के बाद एक पंजीकृत विलेख (एचएएम अधिनियम की धारा 16) के क्रियान्वयन के बाद गोद दिया।

    कोर्ट ने कहा,

    "इसलिए, एक बार जब एडॉप्‍शन डीड HAM एक्ट के तहत क्रियान्वित और पंजीकृत किया जाता है तो न्यायालय यह मान लेगा कि यह एडॉप्‍शन को अधिनियम प्रावधानों के अनुपालन के तहत बनाया गया है, जब तक कि वह वह गलत प्रमाणित न हो जाए।"

    कोर्ट ने शबनम हाशमी बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणियों का भी उल्लेख किया कि जेजे अधिनियम 2000 गोद लेने के संबंध में एक सक्षम अधिनियम था। भले ही वे टिप्पणियां जेजे अधिनियम 2000 के संबंध में थीं, लेकिन हाईकोर्ट ने कहा कि वे जेजे अधिनियम 2015 के लिए भी लागू हैं।

    एचएएम एक्ट की धारा 16, जो गोद लेने के कामों को वैधता प्रदान करती है, को भी अदालत द्वारा संदर्भित किया गया था।

    याचिका की अनुमति देते हुए कोर्ट ने कहा कि बच्चे को चाइल्ड केयर संस्था में रखना अवैध हिरासत में रखने के बराबर है और यह भी निर्देश दिया गया कि बच्चे को उसके दत्तक माता-पिता को सौंपा जाए। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं एक और दो को गोद लेने वाले का माता-पिता घोषित किया।

    केस का विवरण

    केस का शीर्षक: शिवराम बनाम केरल राज्य

    केस नंबर: 2019 का WP (Crl) नंबर 439

    कोरम: जस्टिस के हरलाल और सीएस डायस

    वकील: एडवोकेट टी माधु और सरदमनी (याचिकाकर्ताओं के लिए) सरकारी वकील केबी रामानंद (उत्तरदाताओं के लिए)

    निर्णय डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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