एनआई अधिनियम धारा 138 : हलफनामे पर अभियुक्त को साक्ष्य प्रस्तुत करने की अनुमति नहीं दी जा सकती : पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

16 Nov 2019 8:08 AM GMT

  • एनआई अधिनियम धारा 138  : हलफनामे पर अभियुक्त को साक्ष्य प्रस्तुत करने की अनुमति नहीं दी जा सकती :  पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने माना है कि निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट (परक्राम्य लिखत अधिनियम) के प्रावधानों के तहत मुकदमे का सामना करने वाले आरोपी को हलफनामे (एफिडेविट) पर सबूत पेश करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

    न्यायमूर्ति सुरिंदर गुप्ता ने कहा, '

    'याचिकाकर्ता एक अभियुक्त है, जो एनआई अधिनियम के प्रावधानों के तहत की गई शिकायत के मामले में मुकदमे का सामना कर रहा है| ऐसे में वह हलफनामे के माध्यम से अपने सबूत पेश करने के लिए सक्षम नहीं है। ट्रायल कोर्ट ने इस संबंध में याचिकाकर्ता को अनुमति न देकर कोई त्रुटि नहीं की है।''

    यह आदेश ''मांडवी को-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड बनाम निमेश बी.ठाकोर, (2010) 3 एससीसी 83'' मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए तर्क के आधार पर पारित किया गया था।

    उक्त मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने इस मुद्दे को तय किया था कि क्या अभियुक्त को एनआई अधिनियम की धारा 145 (2) के प्रावधानों के अनुसार शपथ पत्र पर साक्ष्य देने की अनुमति दी जा सकती है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि बचाव पक्ष के साक्ष्य को शिकायकर्ता के साक्ष्य के बराबर मानना और साथ ही अभियुक्त को शपथ पत्र पर साक्ष्य देने के विकल्प का विस्तार करना गलत था।

    उक्त मामले में हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए, शीर्ष न्यायालय ने निम्नलिखित तर्क दिया था-

    ''यदि विधायिका ने यह नहीं सोचा कि''धारा 145 (1) में 'शिकायतकर्ता' शब्द के साथ 'अभियुक्त' शब्द को शामिल करना उचित है.....'', तो हाईकोर्ट के लिए यह ठीक नहीं है कि वह स्वयं कथित रिक्त को भर दे। दूसरा, हाईकोर्ट ने चेक बाउंस के मामले में शिकायतकर्ता और अभियुक्त के साक्ष्यों के बीच एक समानता बनाने में गलती की। अधिनियम की धारा 138 के तहत एक शिकायत में शिकायतकर्ता का मामला काफी हद तक दस्तावेजी सबूतों पर आधारित होता है।

    दूसरी ओर अभियुक्त, बहुत सारे मामलों में कोई भी सबूत पेश नहीं करते हैं और अभियोजन पक्ष को अपने स्वयं के साक्ष्यों पर खड़े होने देते हैं या खुद ही मामले को साबित करने देते हैं। अगर किसी मामले में बचाव पक्ष या आरोपी कोई सबूत पेश करता है तो उसके सबूत की प्रकृति आवश्यक रूप से दस्तावेज के रूप में नहीं हो सकती।

    इस तरह के मामलों में संभावना है कि बचाव पक्ष अन्य प्रकार के साक्ष्य पेश करें ताकि शिकायकर्ता के दावे को खारिज किया जा सके और यह कहा जा सके कि चेक जारी करना किसी भी ऋण या देयता के निर्वहन में नहीं था। चेक बाउंस के मामले में शिकायतकर्ता के सबूतों और अभियुक्त के सबूतों की प्रकृति के बीच यह बुनियादी अंतर है।''

    याचिकाकर्ता-अभियुक्त रजनी ढींगरा की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता आर.एस. राय और एडवोकेट अनुराग अरोड़ा पेश हुए और तर्क दिया था कि चूंकि मामले में उनके बयान बहुत सारे दस्तावेजी सबूतों पर आधारित थे, जिन्हें मौखिक बयान में नहीं रखा जा सकता था, इसलिए उन्हें हलफनामे पर अपने साक्ष्य देने की अनुमति दी जानी चाहिए।

    साथ ही ''इंडियन बैंक एसोसिएशन व अन्य बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया व अन्य (2014) 5 एससीसी 590'' मामले पर विश्वास जताया गया। जिसके तहत शीर्ष न्यायालय ने उचित दिशा-निर्देश/आदेश जारी किए थे, जिनका पालन एनआई अधिनियम की धारा 138 के तहत शिकायतों को सुनने वाली अदालतों को करना था। साथ ही आरोपी को अपना पक्ष हलफनामे के जरिए रखने की अनुमति दी थी,बशर्ते जब तक कि इस तरह की अनुमति देने से इनकार करने के लिए एक उचित और तर्कसंगत आधार ना हो।

    यह देखते हुए कि 'मांडवी कोऑपरेटिव बैंक लिमिटेड (सुप्रा)' के मामले में अदालत द्वारा की गई टिप्पणियों को 'इंडियन बैंक एसोसिएशन (सुप्रा)' के मामले में रद्द नहीं किया गया था या उनके प्रति असहमति नहीं जताई गई थी, हाईकोर्ट ने कहा,

    ''माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 'मांडवी कोऑपरेटिव बैंक लिमिटेड (सुप्रा)' में निर्धारित कानून के स्पष्ट प्रस्ताव के मद्देनजर, ''याचिकाकर्ता एक अभियुक्त है, जो एनआई अधिनियम के प्रावधानों के तहत की गई शिकायत के मामले में मुकदमे का सामना कर रहा है, ऐसे में वह हलफनामे के माध्यम से अपने सबूतों को पेश करने के लिए सक्षम नहीं है। ट्रायल कोर्ट ने इस संबंध में याचिकाकर्ता को अनुमति न देकर कोई त्रुटि नहीं की है।''

    गौरतलब है कि इस साल की शुरुआत में इसी तरह का सवाल गुजरात हाईकोर्ट के समक्ष भी आया था। गुजरात हाईकोर्ट ने 'इंडियन बैंक एसोसिएशन (सुप्रा)' मामले में दिए गए फैसले के आधार हलफनामे पर सबूत पेश करने के एक आरोपी के अधिकार को बरकरार रखा था।

    न्यायमूर्ति जे.बी पारदीवाला ने फैसला सुनाया था कि,''अभियुक्त की ओर से जो साक्ष्य पेश किए गए हैं ,उनमें अभियुक्त का साक्ष्य भी शामिल होगा, जो सीआरपीसी की धारा 315 के अधीन है। यदि गवाहों के सबूत एनआई अधिनियम की धारा 145 के संदर्भ में हलफनामे के माध्यम से हो सकते हैं, तो आरोपियों के सबूत भी हलफनामे से हो सकते हैं। "

    आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें




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