मंहगाई भत्ते को फ्रीज करने के केंद्र के फैसले के खिलाफ सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दी
LiveLaw News Network
26 April 2020 4:54 PM IST
एक सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी द्वारा सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है जिसमें सेवानिवृत्त रक्षा कर्मियों पर बकाया महंगाई भत्ता देने के लिए केंद्र से दिशा-निर्देश मांगे गए हैं।
एक अप्रैल से शुरू होने सप्ताह में सेवानिवृत्त अधिकारियों को ये महंगाई भत्ता दिया जाना था लेकिन COVID19 महामारी संकट के मद्देनज़र बड़े पैमाने पर संकट को देखते हुए 20 अप्रैल को वित्त मंत्रालय द्वारा जनवरी 2020 से पूर्वव्यापी रूप से इसे फ्रीज कर दिया।
केंद्र के इस आदेश को चुनौती देते हुए सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी मेजर ओंकार सिंह गुलेरिया ने, जो लगभग 69 वर्ष की आयु के वरिष्ठ नागरिक हैं, याचिका में न्यायालय से हस्तक्षेप करने और उचित निर्देश पारित करने का आग्रह किया है।
मेजर गुलेरिया ने अपनी दलीलों से अवगत कराया कि
"भारत के प्रधानमंत्री ने जो कहा है वो भारत संघ को निर्देशित किया जाना चाहिए, अर्थात" वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल करें और वेतन में कटौती न करें, वरिष्ठ नागरिक दूसरों की तुलना में COVID 19 वायरस से संक्रमित होने के लिए अधिक संवेदनशील होते है।"
याचिकाकर्ता ने आगे कहा है कि वह एक कैंसर रोगी हैं और एक किराए के आवास में रहते हैं। उन्होंने कहा कि इस पृष्ठभूमि में,
महंगाई भत्ते के फ्रीज करने के इस "मनमाने" आदेश का उनके और "लाखों बुजुर्गों " पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
याचिका में कहा गया है कि
"यह आदेश गलत है और बुजुर्गों के लिए "सम्मानजनक जीविका " के आधार पर हमला करता है, विशेष रूप से इस संकट के दौरान, जो "एक ऐसा समय है जब हमें अपने जीवन के अंतिम समय में हर पैसे की आवश्यकता होती है।
"यह विशेष रूप से पेंशनभोगियों के लिए एक बड़ा झटका है, जबकि सभी बुजुर्गों को COVID 19 वायरस (दिसंबर 19 में चीन के मूल वायरस) से संक्रमित होने की अधिक संभावना है, भारत के प्रधानमंत्री और भारत संघ के सभी पदाधिकारियों व डॉक्टर रोजाना एडवाइज़री के माध्यम से काले और सफेद में इसे बताते हैं।"
याचिकाकर्ता आगे केंद्र के "अवैध और यांत्रिक कदम" पर सवाल उठाते हैं खासकर जब व्यापारिक घरानों को वित्तीय स्थिति के लिए "टोपी पर एक बूंद" की तरह जिम्मेदार ठहराया गया है।
मेजर गुलेरिया ने कहा,
" भारत के प्रधानमंत्री वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल करने का उपदेश देते हैं, न कि वेतन में कटौती करने का, जबकि उनकी स्वयं की सरकार ऐसा कर रही है। कम से कम भारत संघ को अपने प्रधानमंत्री के प्रचार को अपनाना चाहिए।"