'हिजाब पहनना पंसद की बात, लड़कियों की शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण': जस्टिस सुधांशु धूलिया ने हिजाब बैन के कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए कहा

Brij Nandan

13 Oct 2022 6:37 AM GMT

  • हिजाब केस

    हिजाब केस

    हिजाब मामले (Hijab Case) में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के दोनों जजों ने अलग-अलग फैसला सुनाया।

    जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा, वहीं दूसरे जज जस्टिस सुधांशु धूलिया ने हाईकोर्ट के फैसले को खारिज किया।

    सुप्रीम कोर्ट ने आज 10 दिनों की लंबी सुनवाई के बाद 22 सितंबर को कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक बैच पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसने शैक्षणिक संस्थानों में मुस्लिम छात्रों द्वारा हिजाब पहनने पर प्रतिबंध को बरकरार रखा था।

    पीठ के समक्ष 23 याचिकाओं का एक बैच सूचीबद्ध किया गया है। उनमें से कुछ मुस्लिम छात्राओं के लिए हिजाब पहनने के अधिकार की मांग करते हुए सीधे सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर रिट याचिकाएं हैं। कुछ अन्य विशेष अनुमति याचिकाएं हैं जो कर्नाटक हाईकोर्ट के 15 मार्च के फैसले को चुनौती देती हैं, जिसने सरकारी आदेश दिनांक 05.02.2022 को बरकरार रखा था। इसने याचिकाकर्ताओं और अन्य ऐसी महिला मुस्लिम छात्रों को अपने पूर्व-विश्वविद्यालय कॉलेजों में हेडस्कार्फ़ पहनने से प्रभावी रूप से प्रतिबंधित कर दिया था।

    आज इस मामले में जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया ने विभाजित फैसला दिया, जिसमें जस्टिस गुप्ता ने अपील को खारिज कर दिया।

    जस्टिस गुप्ता ने कहा,

    "मेरे आदेश में, मैंने 11 प्रश्न तैयार किए हैं। मेरे अनुसार, इन सभी सवालों के जवाब अपीलकर्ताओं के खिलाफ हैं। मैं अपीलों को खारिज कर रहा हूं। लेकिन मैं उन सभी वकीलों को धन्यवाद देना चाहिए जिन्होंने इस मामले में सहायता की है, एक ऐसे विषय पर जिसकी मुझे ज्यादा जानकारी नहीं थी।"

    हालांकि, जस्टिस धूलिया ने एक अलग विचार व्यक्त किया। उन्होंने पसंद की प्रधानता पर अपना फैसला सुनाया।

    उन्होंने कहा कि आक्षेपित आदेश की वैधता का परीक्षण अनुच्छेद 19(1)(ए) और 25(1) के आधार पर किया जाना चाहिए।

    उन्होंने यह भी कहा कि हाईकोर्ट ने हिजाब पहनने की अनिवार्यता की जांच करके गलती की है। आवश्यक धार्मिक प्रैक्टिस के सिद्धांत को लागू करने की आवश्यकता नहीं थी, जस्टिस धूलिया ने जोर देकर कहा,

    "मेरे फैसले का मुख्य जोर यह है कि आवश्यक धार्मिक प्रथाओं की यह पूरी अवधारणा, मेरी राय में इस विवाद के निपटान के लिए आवश्यक नहीं थी। उच्च न्यायालय ने वहां गलत रास्ता अपनाया। यह केवल अनुच्छेद 19(1)(a) और अनुच्छेद 25(1) का प्रश्न था। हिजाब पहनना पसंद की बात है।"

    उन्होंने कहा कि यह लड़कियों की शिक्षा का मामला है। उन्होंने स्वीकार किया कि लड़कियों को अपनी शिक्षा के साथ-साथ अवैतनिक देखभाल और घरेलू काम का बोझ उठाना पड़ता है। जस्टिस धूलिया ने आश्चर्य जताया कि क्या उस पर अतिरिक्त प्रतिबंध लगाने से एक बालिका का जीवन बेहतर होगा।

    जस्टिस सुधांशु ने कहा,

    "लेकिन इस मामले का फैसला करते समय जो बात मेरे दिमाग में सबसे महत्वपूर्ण थी, वह थी एक लड़कियों की शिक्षा। यह सामान्य बात है कि पहले से ही एक लड़की को, मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में, बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। स्कूल जाने से पहले उसे अपनी मां की दैनिक कार्यों में, सफाई और धोने में मदद करनी पड़ती है। अन्य कठिनाइयां भी हैं। क्या हम उसके जीवन को बेहतर बना रहे हैं? "

    बेंच पर अपने सहयोगी से असहमति जताते हुए जस्टिस धूलिया ने कहा,

    "मैंने सभी अपीलों को स्वीकार कर लिया है और कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया है। मैंने 5 फरवरी, 2022 के शासनादेश को रद्द कर दिया है और प्रतिबंध हटाने के निर्देश दिए हैं।"

    जस्टिस सुधांशु धूलिया को मई 2022 में सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत किया गया था। उन्होंने पूर्व में गुवाहाटी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और उत्तराखंड उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में काम किया है।

    केस टाइटल

    ऐशत शिफा बनाम कर्नाटक राज्य एंड अन्य। [सीए नंबर 7095/2022] और अन्य जुड़े मामले


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