पढ़िए 2019 में दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा दिए गए 25 प्रमुख निर्णय

LiveLaw News Network

31 Dec 2019 10:15 AM GMT

  • पढ़िए 2019 में दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा दिए गए 25 प्रमुख निर्णय

    2019 में दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा दिए गए 25 प्रमुख निर्णय को पढ़िए.

    1. मिशनरी गतिविधियों के संचालन का अधिकार

    दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को यह याद दिलाते हुए कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, कहा कि मिशनरी गतिविधियों को प्रतिबंधित नहीं किया जाता है. धर्म का मौलिक अधिकार नागरिकों तक सीमित नहीं है, यह सभी व्यक्तियों के लिए उपलब्ध है.

    जस्टिस विभू बाखरू ने कहा कि किसी व्यक्ति को अपनी आस्था और चिकित्सा सेवा प्रदान करने का अधिकार है, भले ही वह यह कार्य अपने धर्म को आगे बढ़ाने के लिए करे, फिर भी उसे ऐसा करने से रोका नहीं जा सकता। कोर्ट ने यह भी कहा कि मिशनरी गतिविधियां देश के कानून के विरुद्ध हैं, ऐसी धारणा मौलिक रूप से त्रुटिपूर्ण है।

    (केस: डॉ क्रिस्टो थॉमस फिलिप बनाम भारत व अन्य, WP (C) No. 1775/2018 और CM No. 27041/2018, 08.01.2019 को निर्णित)

    2. पीएमएलए में मनी बिल के माध्यम से किए संशोधन को दी गई चुनौती को खारिज किया

    चीफ जस्टिस राजेंद्र मेनन और जस्टिस वी कामेश्वर राव की पीठ ने कांग्रेस सांसद जयराम रमेश की याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें 2015 के बाद से एंटी मनी लांड्र‌िंग एक्ट में किए मनी बिल के रूप में वित्तीय अधिनियमों के माध्यम से किए गए संशोधनों को गैर-संवैधानिक घोषित करने की मांग की गई थी और वित्त अधिनियम, 2015 की धारा 232, वित्त अधिनियम, 2016 की धारा 232 और वित्त अधिनियम, 2018 की धारा 208 के तहत धारा 145, 146, 147, 148, 149, 150 और 151 को रद्द करने की मांग की गई थी.

    हाईकोर्ट का कहना था कि याचिका बहुत विलंब के बाद दायर की गई थी, उन्हें चुनौती देने का अधार भी नहीं है.

    (केस: जयराम रमेश बनाम भारत व अन्य, WP (C) 2042/2019 और CM No. 9551/2019, 28.02.2019 को निर्ण‌ित)

    3. स्पष्ट किया कि एक वकील को केवल उसी अदालत में पेश होने से रोका जा सकता है, जिसमें उसके रिश्तेदार पीठासीन न्यायाधीश हैं, न कि सभी न्यायालयों में

    चीफ ज‌स्टिस राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति वी कामेश्वर राव ने कहा कि एक वकील को केवल एक विशेष अदालत के समक्ष उपस्थित होने से रोका जाता है, जहां वकील का रिश्तेदार पीठासीन न्यायाधीश होता है, और सभी अदालतों में पेश होने से नहीं।

    (केस: मैथ्यूज जस्टिस नेदुम्परा व अन्य बनाम फली एस नरीमन व अन्य, WP (C) 2199/2019, 06.03.2019 को निर्ण‌ित)

    4. ट्राई के मोबाइल नंबर पोर्टेबिलिटी नियमन में संशोधन को रद्द किया

    दिल्ली हाईकोर्ट ने मोबाइल नंबर पोर्टेबिलिटी प्रति पोर्ट ट्रांजेक्शन चार्ज और डिपिंग चार्ज [संशोधन] नियमन, 2018 को रद्द कर दिया, जिसमें कहा गया था कि यह ट्राई अधिनियम के तहत भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण की शक्तियां का उल्‍लंघन है, और संविधान के अनुच्छेद 14 के विपरीत भी हैं।

    (केस: सिनिवर्स टेक्नोलॉजीज (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड बनाम ट्राई व अन्य, WP (C) 1507/2018 और CM Appl No. 6169/2018 और 25847/2018, 08.03.2019 को निर्ण‌ित।

    5. एससीईआरटी/एनसीईआरटी/ सीबीएसई द्वारा दी गई पाठ्यपुस्तकों का पालन करने के लिए स्कूलों को दिए सर्कुलर की पुष्टि

    हाईकोर्ट ने ‌दिल्‍ली सरकार के ओर से अध‌िनस्थ स्कूलों को जारी परिपत्र, जिसमें SCERT, NCERT और CBSE द्वारा निर्धारित पाठ्य पुस्तकों को पढ़ाने को कहा गया था, को दी गई चुनौती को खारिज कर दिया।

    ज‌स्टिस सी हरि शंकर ने कहा कि छात्रों में शिक्षा के प्रसार की एकरूपता एक आवश्यकता है। यदि स्कूलों को पाठ्यपुस्तकों का निर्धारण करने का पूर्ण विवेकाधिकार दिया जाएगा, जिससे वे छात्रों को पढ़ाएंगे, तो इससे शिक्षा का स्तर और ज्ञान का स्तर एक ही वर्ग के छात्रों के पास होगा, जो एक ही बोर्ड के तहत अध्ययन कर रहे होंगे। अदालत ने कहा कि आखिरकार, एक ही परीक्षा में, अलग-अलग होने के कारण, अराजकता की स्थिति पैदा हो जाएगी, जो अंततः छात्रों के हितों के लिए हानिकारक है।

    (केस: फेडरेशन ऑफ एजुकेशनल पब्लिशर्स बनाम शिक्षा निदेशालय व अन्य, WP(C)13143/2018 और CM No. 51010/2018, 27.03.2019 को निर्ण‌ित)

    6.PMLA पर RDBA, SARFAESI, IBC, लागू नहीं,

    हाईकोर्ट ने माना कि प्र‌िवेंशन ऑफ मनी लॉड्र‌िंग एक्‍ट के प्रावधानों पर ‌रिकवरी ऑफ डेट एंड बैंगक्रप्सी एक्ट , SARFAESI एक्ट और इनसॉल्वेंसी और बैंगक्रप्सी कोड लागू नहीं होता है।

    (केस: डिप्टी डायरेक्टर, ईडी बनाम एक्सिस बैंक व अन्य, Crl. A. No. 143/2018 & Crl. MA No. 2262/2018, 02.04.2019 को निर्ण‌ित)

    7. ड्यूटी जॉइन करने के लिए लौटते समय हुई दुर्घटना ड्यूटी के समय हुई दुर्घटना के बराबर

    एक रिट याचिका पर फैसला करते हुए न्यायमूर्ति एस मुरलीधर और न्यायमूर्ति आईएस मेहता की पीठ ने कहा कि ड्यूटी ज्वाइन करने के लिए लौटते समय होने वाली दुर्घटना को ड्यूटी के समय होने वाली दुर्घटना के बराबर माना जाना चाहिए।

    (केस: रंजू देवी बनाम भारत संघ और अन्य।, WP (C) 2684/2017, 10.04.2018 को निर्ण‌ित)

    8. केंद्र सरकार द्वारा बासमती की खेती सात राज्यों तक सीमित करने के फैसले को रद्द किया

    न्यायमूर्ति विभु बाखरू ने केंद्र सरकार के फैसले, जिसमें बीज की गुणवत्ता और शुद्घता की आड़ में बासमती चावल की खेती केवल पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के इंडो-गंगा के मैदानों तक सीमित रखने को कहा गया था, को रद्द कर दिया.

    (केस: एमपी राज्य सरकार बनाम भारत सरकार व अन्य, WP (C) 11704/2016 और सीएम नम्बर्स 1586/2017 और 14379/2017, 25.04.2019 को निर्णित)

    9. पति/बच्चों का पत्नी/माता के साथ रहने का अधिकार उनका मौलिक अधिकार है

    चीफ ज‌स्टिस राजेंद्र मेनन और जस्टिस अनूप जयराम भंभानी की पीठ ने एक पाकिस्तानी नागरिक को दिए भारत छोड़ने के आदेश, जो एक भारतीय नागरिक की पत्नी और दो बच्चों की मां ‌थी, को रद्द करते हुए कहा कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार के तहत छोटे बच्चों को ये अधिकार है कि वे अपनी मां के साथ रहें और पति को अधिकार है कि वो अपनी पत्नी के साथ रहे।

    (केस: मोहम्‍मद जावेद व अन्य बनाम भारत संघ और अन्य, LPA 168/2019 और CM No. 11617/2019, 28.05.2019 को निर्ण‌ित)

    10. हाईकोर्ट कैट से क्रिमिनल कंटेम्प्ट रेफरेंस को एंटरटेन नहीं कर सकता

    हाईकोर्ट ने कहा कि कि न्यायालय अधिनियम, 1971 की धारा 15 (2) में केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) की अवमानना के संदर्भ में कोई आवेदन नहीं है। जस्टिस मनमोहन और जस्टिस संगीता ढींगरा सहगल की पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 323 ए (2) (बी) में प्रावधान है कि अनुच्छेद 323 ए के उप-खंड (1) के तहत गठित प्रशासनिक न्यायाधिकरण को अपनी अवमानना के लिए दंडित करने का अधिकार होगा, यदि स्‍थापित कानून इजाज़त देता है।

    (केस: कोर्ट अपने प्रस्ताव पर बनाम Re: महमूद प्राचा, Cont Cas (Crl) No 4/2019, 30.05.2019 को निर्ण‌ित)

    11. सरकार एजेंसियों द्वारा टेलीफोन निगरानी के लिए निर्देश के संबंध में दायर जनहित याचिकाओं को खारिज किया

    यह देखते हुए कि फोन निगारानी के ल‌िए पर्याप्त दिशानिर्देश हैं, हाईकोर्ट ने एक रिट याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें सरकारी एजेंसियों द्वारा फोन की ट्रेसिंग, टैपिंग और निगरानी के लिए दिशानिर्देश देने को कहा गया था।

    12. संविधान की आठवीं अनुसूची में साइन लैंग्वेज को शामिल करने के लिए दायर जनहित याचिका को खारिज किया

    ये मानते हुए कि भारतीय साइन लैंग्वेज को पहचानने, संरक्षित करने और बढ़ावा देने के लिए पर्सन्स विद डिसेबिलिटीज एक्ट, 2016 के तहत पर्याप्त प्रावधान हैं, हाईकोर्ट ने सरकार को संविधान की आठवीं अनुसूची में भारतीय सांकेतिक भाषा (आईएसएल) को शामिल करने का निर्देश देने की प्रार्थना को खारिज कर दिया।

    13. मेरिटल रेप को तलाक का आधार बनाने की याचिका खारिज की गई

    हाईकोर्ट ने यह कहते हुए कि अदालत किसी मामले पर कानून या उपनियम बनाने के लिए विधायिका को निर्देश नहीं दे सकती है, चीफ जस्टिस पटेल और जस्टिस हरि शंकर की खंडपीठ ने एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें तलाक के लिए 'वैवाहिक बलात्कार' को आधार बनाने के निर्देश देने का निवेदन किया गया था।

    14 NEET UG, 2019 के परिणाम को रद्द करने का याचिका खारिज

    हाईकोर्ट ने यह कहते हुए कि विशेषज्ञ/ शिक्षाविद् निकाय विषय/अकादमिक मुद्दों के सबसे अच्छे जज हैं, जस्टिस अनु मल्होत्रा ने NEET UG, 2019 के परिणाम को रोकने या रद्द करने से इनकार कर दिया।

    (केस: पूर्वाभाष दास व अन्य बनाम नेशनल टेस्टिंग एजेंसी व अन्य। WP (C) 6801/2019, 09.07.2019 को निर्णित)

    15. मोराटोरियम U/S 14 आईबीसी कॉरपोरेट देनदार द्वारा मुकदमे के ट्रायल पर रोक नहीं लगाता

    जस्टिस प्रथिबा सिंह ने कहा कि IBC की धारा 14 के तहत स्थगन से कॉरपोरेट देनदार द्वारा मुकदमे की सुनवाई पर रोक नहीं लगाई जा सकती है।

    वादी कंपनी एसएसएमपी इंडस्ट्रीज ने पर्कन फूड इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड के खिलाफ 1,61,47,336.44 रुपये की वसूली के लिए मुकदमा दायर किया था। प्रतिवादी ने मुकदमे में 59,51,548 रुपए का प्रतिदावा किया। इस बीच वादी कंपनी दिवालिया हो गई। इसलिए यह मुद्दा उठा कि क्या प्रतिवाद धारा 14 IBC द्वारा खत्म हो गया।

    (केस: एसएसएमपी इंडस्ट्रीज लिमिटेड बनाम परकान फूड प्रोसेसर्स प्राइवेट लिमिटेड, सीएस (कॉम) 470/2016, 18.07.2016 को निर्ण‌‌ित)

    16. विकलांगता कोटा के तहत आरक्षित सीटें के लिए कॉलेजों द्वारा सेट कट-ऑफ कम नहीं किया जा सकता

    ज‌स्टिस हरि शंकर ने कहा कि कोर्ट विकलांग व्यक्तियों के लिए आरक्षित सीटों के लिए कॉलेजों द्वारा निर्धारित कट-ऑफ में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है। हालांकि, उन्होंने इस दावे को स्वीकार किया कि बौद्धिक विकलांगता वाले व्यक्तियों को कट-ऑफ सेट करते समय लोकोमोटर विकलांगता वाले व्यक्तियों से अलग व्यवहार किया जाएगा।

    (केस: वैभव बजाज बनाम गुरु गोबिंद सिंह कॉलेज ऑफ कॉमर्स व अन्य।, WP (C) 9740/2018, 23.07.2019 को निर्ण‌ित)

    17. सरकारी कर्मचारी के स्वास्थ्य योजना में बहू को न रखना भेदभावपूर्ण नहीं है

    यह देखते हुए कि राज्य के पास सीमित संसाधन और चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध हैं, न्यायमूर्ति विभू बाखरू ने कहा कि दिल्ली सरकार कर्मचारी स्वास्थ्य योजना (DGEHS) का लाभ लाभार्थी के परिवार के सभी सदस्यों को नहीं दिया जा सकता है।

    (केस: हुकम तेजप्रताप सिंह व अन्य बनाम दिल्ली सरकार व अन्य। WP(C) 9441/2018, 23.07.2019 को निर्ण‌ित।

    18. प्री-अरेस्ट बेल हाई प्रोफाइल आर्थिक अपराधियों के लिए नहीं है

    पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम द्वारा आईएनएक्स मीडिया घोटाले से जुड़े भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में प्री-अरेस्ट-बेल याचिका को खारिज करते हुए जस्टिस सुनील गौर ने कहा कि यह "मनी लॉन्ड्रिंग का एक क्लासिक मामला" था और मामले के तथ्यों से पता चलता है कि चिदंबरम की मुख्य साजिशकर्ता थे।

    (केस: पी चिदंबरम बनाम सीबीआई, बीए नंबर 1316/2018, 20.08.2019 को निर्णित)

    19. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम और रेरा के तहत उपलब्ध उपचार समवर्ती हैं

    जस्टिस प्रतीक जालान ने दोहराया कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 (सीपीए) और रियल एस्टेट (विकास और विनियमन) अधिनियम, 2016 (रेरा) के तहत घर खरीदारों के लिए उपलब्ध उपाय समवर्ती हैं।

    (केस: एम/एस एम 3 एम इंडिया प्राइवेट लिमिटेड और एएनआर बनाम डॉ दिनेश शर्मा और एनआर, सीएम (एम) 1244/2019, 04.09.2019 को निर्ण‌ित)

    20. यह स्पष्ट किया कि सीबीआई को केवल अपवादिक परिस्थितियों में ही क्राइम फाइल प्रस्तुत करने के लिए कहा जा सकता है

    हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि सीआरपीसी की धारा 172 के तहत, डायरी की कस्टडी जांच अधिकारी के पास होनी चाहिए और सीबीआई को अंतिम रिपोर्ट - भाग I प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं है, जब तक कि 'असाधारण परिस्थितियों' न हो.

    (केस: सीबीआई बनाम वल्लालोर रंगास्वामी नटराजन, Crl. Rev. No. 995/2019,20.09.2019 को निर्ण‌ित)

    21. 'बलात्कार' के अभियुक्त को बरी करते हुए कहा प्रेम में धोखा देना अपराध नहीं है

    जस्टिस विभु बाखरू ने कहा, किसी व्यक्ति के साथ, केवल इस आधार पर कि उसने विवाह करने का वादा किया है, लंब समय तक अंतरंग रिश्ते में रहना अनैच्छिक नहीं माना जा सकता.

    कोर्ट ने कहा कि यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि सहमति से दों वयस्कों के बीच शारीरिक संबंध बनना अपराध नहीं है। प्रेम में धोखा देना घृणित है, मगर आईपीसी के तहत दंडनीय अपराध नहीं है।

    22. कर्मचारी अपनी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का निवेदन स्वीकार होने से पहली अपनी इच्छा से कभी भी वापस ले सकता है

    जस्टिस रेखा पल्ली ने कहा कि कर्मचारी द्वारा स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए दिया गया आवेदन कर्मचारी द्वारा एक प्रस्ताव है, जिसे स्वीकृति से पहले कभी भी कर्मचारी को वापस लेने का हक है। यह आदेश एक ऐसे मामले में पारित किया गया था जिसमें याचिकाकर्ता के स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के आवेदन को वापस लेने के अनुरोध पर विचार नहीं किया गया था।

    (केस: पूनम गर्ग बनाम IFCI वेंचर कैपिटल फंड्स लिमिटेड व अन्य। WP(C) 9304/2019, 27.09.2019 को निर्ण‌ित)

    23. अगर अपराध क्षेत्राधिकार से बाहर हो तब भी जीरो एफआईआर अनिवार्य

    हाईकोर्ट ने जीरो एफआईआर दर्ज करने से इनकार करने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए दिल्ली के पुलिस आयुक्त को निर्देश देते हुए कहा कि सीआरपीसी की धारा 154 के अनुसार, यदि किसी संज्ञेय अपराध से संबंधित सूचना प्राप्त हुई है तो पुलिस स्टेशन एफआईआर दर्ज करने के लिए बाध्य है।

    (केस: कृति वशिष्ठ बनाम स्टेट व अन्य, CRL.M.C 5933/2019, 29.11.2019 को निर्ण‌ित)

    24. आरटीआई अधिनियम के तहत इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन 'सूचना' नहीं है

    यह देखते हुए कि केंद्रीय चुनाव आयोग ने गलती से उस व्यक्ति के पक्ष में एक आदेश पारित कर दिया था, जिसने आरटीआई आवेदन में ईवीएम मशीन को पेश करने के लिए कहा था, जस्टिस जयंत नाथ ने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें धारा 2 के तहत 'सूचना' की परिभाषा में नहीं आती हैं।

    25. सीएए विरोध प्रदर्शनों में दिल्ली में इंटरनेट बंद होने को दी गई चुनौती को खारिज किया

    चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस हरि शंकर की डिवीजन बेंच ने नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरोध में 19/12/2019 को दिल्ली में डीसीपी के मोबाइल इंटरनेंट सेवाओं को बंद करने के आदेश को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया।

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