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2002 दंगा पीड़ित गैंगरेप केस में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार से दो हफ्ते में दोषी पुलिसवालों पर जांच पूरी करने को कहा

Live Law Hindi
30 March 2019 11:22 AM GMT
2002 दंगा पीड़ित गैंगरेप केस में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार से दो हफ्ते में दोषी पुलिसवालों पर जांच पूरी करने को कहा
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वर्ष 2002 के गुजरात दंगा पीडित गैंगरेप केस को दबाने और जांच को प्रभावित करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार से 2 हफ्ते में दोषी पुलिसकर्मियों व सरकारी अधिकारियों के खिलाफ विभागीय जांच पूरी करने के निर्देश दिए हैं।

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की पीठ ने शुक्रवार को कहा कि गुजरात सरकार इन दोषियों के खिलाफ जांच पूरी करे और उसके परिणाम की रिपोर्ट पीठ के सामने 2 हफ्ते के बाद रखे।

इस दौरान गुजरात सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार इस मामले में पीड़िता को 5 लाख रुपये का मुआवजा देने को तैयार है लेकिन पीड़िता की वकील शोभा ने कहा कि ये ऐसा केस है जिसमें पीड़िता अभूतपूर्व मुआवजा पाने की हकदार है।

गौरतलब है कि अक्तूबर 2017 में पीठ ने पूछा था कि मामले को दबाने के दोषी पुलिसवालों के खिलाफ कोई विभागीय कार्रवाई या अन्य कार्रवाई की गई है या नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा था कि दोषी करार दिए जाने के बाद वो पुलिस कर्मी सेवा में कैसे रह सकते हैं?

इसके साथ ही पीड़िता को गैंगरेप केस में बढ़ा मुआवजा दिलाने की अलग याचिका दाखिल करने की इजाजत भी दे दी गयी थी। दरअसल गोधरा कांड के बाद हुई इस वारदात की पीड़िता ने बढ़ा हुआ मुआवजा और केस को दबाने के दोषी करार दिए गए 5 पुलिसकर्मियों व 2 डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई की अर्जी दाखिल की थी।

इस दौरान पीडिता की ओर से पेश वकील शोभा ने कोर्ट को बताया था कि इस मामले में जांच को प्रभावित करने के लिए 5 पुलिसकर्मियों व 2 डॉक्टरों को हाईकोर्ट ने दोषी करार दिया था लेकिन ट्रायल के दौरान उनके द्वारा जेल में काटे गए वक्त को ही उनकी सजा मान लिया गया था। अब इन लोगों को फिर से सेवा में रख लिया गया है।

वहीं गुजरात सरकार की ओर से पेश हेमंतिका वाही ने कोर्ट को बताया था कि उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई शुरु की गई है।

गौरतलब है कि 4 मई 2017 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस केस में 12 लोगों की उम्रकैद की सजा बरकरार रखी थी और ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलटते हुए 5 पुलिसकर्मियों व 2 डॉक्टरों को दोषी करार दे दिया था। लेकिन हाईकोर्ट ने ट्रायल के दौरान उनके द्वारा काटी सजा को पर्याप्त माना था। उन्हे ड्यूटी ना निभाने और IPC की धारा 201 के तहत सबूत मिटाने का दोषी करार दिया गया।

दरअसल 3 मार्च 2002 को गोधरा कांड के बाद भडकी हिंसा में अहमदाबाद में पीड़िता के परिवार के 7 लोगों की हत्या कर दी गई थी जबकि गर्भवती पीड़िता के साथ गैंगरेप किया गया था। 21 जनवरी 2008 को ट्रायल कोर्ट ने 11 लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई जबकि इसी मामले में पुलिसवालों व डॉक्टरों को बरी कर दिया। इसके बाद सीबीआई भी 3 लोगों की सजा को फांसी में तब्दील करने के लिए हाईकोर्ट पहुंची थी। वर्ष 2004 में पीड़िता की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मामले को मुंबई ट्रांसफर कर दिया था।

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