पुदुचेरी सरकार Vs LG : सरकार के 21 जून तक वित्त व भूमि संबंधी फैसले लेने पर रोक जारी रहेगी, सुप्रीम कोर्ट की नसीहत, रस्साकसी छोड़ दें

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21 Jun 2019 8:44 AM GMT

  • पुदुचेरी सरकार Vs LG :  सरकार के 21 जून तक वित्त व भूमि संबंधी फैसले लेने पर रोक जारी रहेगी, सुप्रीम कोर्ट की नसीहत, रस्साकसी छोड़ दें

    सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि पुदुचेरी कैबिनेट के वित्तीय मामलों को प्रभावित करने वाले फैसलों को लागू नहीं किया जा सकता। पीठ ने शुक्रवार को कहा कि वित्तीय मामलों पर असर डालने वाले 7 जून के कैबिनेट के फैसलों पर रोक लगाने का सुप्रीम कोर्ट का फैसला फिलहाल जारी रहेगा। पीठ अब सभी मुद्दों पर 10 जुलाई को सुनवाई करेगी।

    7 जून को कैबिनेट ने लिए थे 3 फैसले
    शुक्रवार को सुनवाई के दौरान पुदुचेरी के लिए वकील कपिल सिब्बल ने जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस सूर्य कांत की अवकाश पीठ के समक्ष कहा कि पिछली बार SC ने वित्तीय मामलों पर फैसला लागू करने पर रोक लगाई थी। 7 जून को कैबिनेट ने 3 फैसले लिए हैं जिनमें सभी को मुफ्त चावल योजना भी है, जो पिछले 10 साल से चल रही है। इसके अलावा 1 विभाग का नाम बदलना है, जबकि तीसरा फैसला एक बीमार इकाई को नीलाम करने को लेकर है।

    चावल के वितरण को जारी रखने की मांगी गई अनुमति

    पुदुचेरी सरकार के मुताबिक, गरीबों को 20 किलो चावल के वितरण को जारी रखने के लिए कैबिनेट के फैसले को जारी रखने की अनुमति दी जाए।

    केंद्र ने किया अनुमति दिए जाने का विरोध

    लेकिन केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इसका विरोध किया और कहा कि इस फैसले का भारी वित्तीय प्रभाव पड़ेगा। इसके बड़े वित्तीय निहितार्थ होंगे और नियमों के विपरीत होंगे क्योंकि मुफ्त चावल सिर्फ बीपीएल कार्ड धारकों को दिए जा रहे हैं, सभी को नहीं।

    "एलजी और सरकार छोड़ दें रस्साकसी"

    इस दौरान पीठ ने यह कहा कि एलजी और सरकार अपने बीच रस्साकसी को छोड़ दें। इस मामले को अब 10 जुलाई से नियमित आधार पर सुना जा जाएगा।

    अदालत ने फैसलों को लागू करने पर लगाई थी रोक

    गौरतलब है कि 4 जून को सुप्रीम कोर्ट ने पुदुचेरी सरकार सरकार को यह निर्देश दिया था कि वो 7 जून को कैबिनेट की बैठक तो कर सकती है, लेकिन इस दौरान सुनवाई की अगली तारीख तक वित्त व भूमि ट्रांसफर संबंधी फैसलों को लागू नहीं कर सकती है।

    अदालत ने एलजी और मुख्यमंत्री को जारी किए थे नोटिस
    जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस एम. आर. शाह की अवकाश पीठ ने केंद्र सरकार और पुदुचेरी की उपराज्यपाल किरण बेदी की याचिका पर केंद्रशासित प्रदेश के मुख्यमंत्री वी. नारायणसामी को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। सुनवाई के दौरान केंद्र और एलजी की ओर से कहा गया कि सरकार ने 7 जून की कैबिनेट बैठक का एजेंडा तय कर दिया है। लिहाजा इस बैठक पर रोक लगाई जाए। वहीं सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल व अन्य ने इसका विरोध किया था।

    एलजी, 'प्रशासनिक अराजकता' का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी
    दरअसल पुदुचेरी की उपराज्यपाल (एलजी) किरण बेदी "प्रशासनिक अराजकता" का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंची हैं और उन्होंने मुख्यमंत्री वी. नारायणसामी को वित्त, सेवाओं से संबंधित किसी भी मुख्य कार्यकारी आदेश को पारित करने से रोकने की मांग की है जब तक कि सुप्रीम कोर्ट पुदुचेरी सरकार और उपराज्यपाल के बीच अधिकारों का फैसला ना कर दे।

    "अफसरों को समझ नहीं आ रहा है कि वो कोर्ट के आदेशों पर अमल करें या नहीं"
    किरण बेदी की अर्जी में यह कहा गया है कि पुदुचेरी में प्रशासनिक अराजकता का माहौल है और अफसरों को समझ नहीं आ रहा है कि वो कोर्ट के आदेशों पर अमल करें या नहीं। उन्हें अवमानना कार्रवाई की धमकी दी जा रही है। वर्तमान में पुदुचेरी में कांग्रेस का शासन है जबकि बेदी की केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासक के तौर पर एनडीए सरकार ने नियुक्ति की है।

    सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास HC के फैसले के खिलाफ दाखिल याचिका पर जारी किया था नोटिस
    11 मई को सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर नोटिस जारी किया था जिसमें कहा गया है कि पुदुचेरी के उपराज्यपाल को निर्वाचित सरकार के दैनिक मामलों में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है। ये नोटिस पुदुचेरी की एलजी किरण बेदी द्वारा दायर विशेष अवकाश याचिका पर जारी किया गया था।

    30 अप्रैल का मद्रास उच्च न्यायालय का निर्णायक फैसला
    "प्रशासक उन मामलों में मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से बंधे हैं, जहां विधान सभा, केंद्र शासित प्रदेशों के अधिनियम, 1962 की धारा 44 के तहत कानून बनाने के लिए सक्षम है। हालांकि सरकार की कार्रवाई के बारे में एक बुनियादी मुद्दों पर तर्कों पर आधारित सरकार के विचारों के साथ भिन्न होने के लिए सशक्त है," पुदुचेरी के विधायक के. लक्ष्मीनारायणन द्वारा दायर याचिका पर 30 अप्रैल को उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया था।

    "प्रशासक सरकार के दिन-प्रतिदिन के मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। मंत्रिपरिषद और मुख्यमंत्री द्वारा लिया गया निर्णय सचिवों और अन्य अधिकारियों के लिए बाध्यकारी है," उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में यह कहते हुए जोड़ा कि प्रशासक के पास इस मुद्दे को नियंत्रित करने वाले संवैधानिक सिद्धांतों और संसदीय कानूनों को नकारने वाले प्रशासन को चलाने का कोई कोई विशेष अधिकार नहीं है।

    यह याचिका 4 जुलाई, 2018 के सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ के फैसले के मद्देनजर दायर की गई थी, जिसमें प्रशासन के मामलों में उपराज्यपाल पर दिल्ली की चुनी हुई सरकार की प्रमुखता को बरकरार रखा गया था।


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