दिमागी बुखार से बच्चों की मौत : सुप्रीम कोर्ट ने एक और याचिका पर केंद्र, बिहार और UP सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा

Live Law Hindi

15 July 2019 4:00 PM GMT

  • दिमागी बुखार से बच्चों की मौत : सुप्रीम कोर्ट ने एक और याचिका पर केंद्र, बिहार और UP सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा

    उत्तर प्रदेश और बिहार में बच्चों की दिमागी बुखार एक्यूट इन्सेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) से होने वाली मौतों पर दाखिल एक अन्य जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, उत्तर प्रदेश सरकार और बिहार सरकार को नोटिस जारी कर उनकी ओर से जवाब मांगा है। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने वकील शिवकुमार त्रिपाठी की याचिका पर यह नोटिस जारी किया है।

    "स्थिति गंभीर पर स्थायी उपाय नहीं"

    याचिका में यह कहा गया है कि पिछले 50 साल में करीब 50 हज़ार बच्चों की मौत दिमागी बुखार से हुई है। उत्तर प्रदेश के 38 जिलों से ये बुखार शुरू हुआ था। लेकिन अब तक इससे निपटने के स्थायी उपाय नहीं किए गए हैं।

    रिसर्च सेंटर बनाए जाने का सुझाव

    याचिका में यह कहा गया है कि इस बीमारी का पता लगाने और इसे खत्म करने के लिए एक रिसर्च सेंटर बनाया जाना चाहिए और प्रभावित इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं के पर्याप्त इंतजाम किए जाने चाहिए।

    बिहार सरकार ने दाखिल हलफनामे में स्वीकार की थी खामियां
    इससे पहले बिहार में बच्चों के दिमागी बुखार एक्यूट इन्सेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) से पीड़ित होने से हो रही मौतों के मामले में बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया था। हलफनामे में राज्य सरकार ने यह माना था कि बिहार में स्वास्थ्य सेवाओं में भारी खामियां हैं और संसाधनों की भी कमी है। बिहार सरकार ने अफसोस जाहिर करते हुए कहा है कि स्वास्थ्य विभाग में मानव संसाधन की स्थिति ठीक नहीं है। स्वास्थ्य विभाग में 57 प्रतिशत डॉक्टरों की कमी है जबकि 71 प्रतिशत नर्सें नहीं हैं।

    सरकार ने गिनाए थे अपने द्वारा उठाए गए कदम
    बिहार सरकार ने हलफनामे में यह कहा था कि सरकार इस बीमारी से निपटने के लिए सभी जरूरी कदम उठा रही है और खुद मुख्यमंत्री इसकी निगरानी कर रहे हैं। मेडिकल ऑफिसर और पैरा मेडिकल स्टाफ की नियुक्ति के लिए वह कारगर कदम उठाने जा रही है। राज्य सरकार ने सामाजिक और आर्थिक सर्वेक्षण के आधार पर बेहतर पोषण मुहैया कराने के लिए निर्देश दिया है। साथ ही 10 नए मेडिकल कॉलेज और कुछ जिला अस्पतालों को अपग्रेड करने का फैसला लिया गया है।

    सरकार ने कहा था कि दिशा निर्देश तैयार किये जा रहे हैं
    सरकार ने पीठ को यह बताया था कि अभी तक 157 बच्चों की मौत हुई है लेकिन पिछले सालों के मुताबिक इस बार मौतों की दर घटकर 19 प्रतिशत रह गई है। सरकार इस मामले में गाइडलाइन भी तैयार कर रही है। मृतक बच्चों के परिजनों के 4-4 लाख रुपये मुआवजा भी दिया गया है। वहीं केंद्र सरकार ने भी हलफनामा दाखिल कर कहा कि स्वास्थ्य सेवाएं राज्य का विषय है फिर भी केंद्र बिहार सरकार की यथासंभव सहायता कर रही है।

    अदालत ने केंद्र, UP एवं बिहार सरकार को जारी किए थे नोटिस

    दरअसल 24 जून को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार, बिहार सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर 7 दिनों में जवाब मांगा था।

    नोटिस जारी करते हुए जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बी. आर. गवई की पीठ ने मामले पर सुनवाई करते हुए 3 मुद्दों - साफ-सफाई, पोषाहार और स्वास्थ्य सेवाओं पर हलफनामा दाखिल करने को कहा था। पीठ ने कहा कि अदालत को सरकार से कुछ जवाब चाहिए क्योंकि जिनकी जान जा रही है वो बच्चे हैं। बच्चों की मौत पर चिंता जताते हुए पीठ ने कहा था कि इसे यू हीं जारी रखने की इजाजत नहीं दी जा सकती।

    हालांकि इस दौरान केंद्र की ओर से पेश ASG विक्रमजीत बनर्जी ने पीठ को बताया था कि इसके लिए पर्याप्त इंतजाम किए गए हैं और हालात पर काफी हद तक काबू पा लिया गया है।

    दाखिल की गई थी एक जनहित याचिका

    दरअसल एक जनहित याचिका में केंद्र सरकार और बिहार सरकार को आवश्यक चिकित्सा उपकरणों और अन्य सहायता के प्रावधान समेत चिकित्सा विशेषज्ञों की टीम भेजने के लिए सुप्रीम कोर्ट को निर्देश जारी करने का अनुरोध किया गया था।

    यूथ बार एसोसिएशन के सदस्य वकीलों मनोहर प्रताप और सनप्रीत सिंह अजमानी द्वारा दाखिल याचिका में कहा गया था कि बिहार में पिछले दिनों 126 से अधिक बच्चों (ज्यादातर आयु वर्ग 1 से 10) की मौत बिहार, उत्तर प्रदेश और भारत सरकार की संबंधित सरकारों की लापरवाही और निष्क्रियता का प्रत्यक्ष परिणाम है। एक्यूट इन्सेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) के प्रकोप के कारण हर साल होने वाली महामारी की स्थिति से निपटने के लिए इंतजाम नहीं किए गए हैं।

    जनहित याचिका में 500 आईसीयू और 100 मोबाइल आईसीयू की तत्काल व्यवस्था करने का भी अनुरोध किया गया था। साथ ही यह कहा गया है कि एक असाधारण सरकारी आदेश के तहत प्रभावित क्षेत्र के सभी निजी चिकित्सा संस्थानों को निर्देश दिया जाए कि वो मरीजों को निशुल्क उपचार प्रदान करें। राज्य मशीनरी की लापरवाही के कारण मरने वाले मृतकों के परिवार के सदस्यों को 10 लाख रुपये बतौर मुआवजा प्रदान किए जाएं।

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