मेडिकल दाखिलों में मराठों के लिए SEBC कोटा पर रोक के बॉम्बे HC के फैसले के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार की याचिका SC ने खारिज की

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10 May 2019 4:13 AM GMT

  • मेडिकल दाखिलों में मराठों के लिए SEBC कोटा पर रोक के बॉम्बे HC के फैसले के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार की याचिका SC ने खारिज की

    महाराष्ट्र सरकार की इस वर्ष पीजी मेडिकल और दंत चिकित्सा पाठ्यक्रमों में मराठा समुदाय के लिए कोटा पर रोक लगाने के बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है।

    गुरुवार को जस्टिस एल. नागेश्वर राव और जस्टिस एम. आर. शाह की पीठ ने हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि समानता का अधिकार उन छात्रों का भी है जो राज्यों में मेडिकल दाखिलों के इच्छुक हैं।

    याचिका में राज्य सरकार द्वारा दिया गया तर्क
    दरअसल याचिका में राज्य सरकार ने यह तर्क दिया था कि मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा प्रदान किए गए कार्यक्रम के अनुसार राज्य को कोटे के लिए पूरी प्रवेश प्रक्रिया आगामी 12 मई तक पूरी करनी है। प्रवेश प्रक्रिया शुरू हो गई है और उक्त प्रक्रिया में हस्तक्षेप से भ्रम की स्थिति पैदा होगी। इस प्रकार दाखिला प्रक्रिया के 2 दौर पूरा होने की स्थिति में हालात अपरिवर्तनशील हो गए हैं।

    बॉम्बे हाईकोर्ट की टिप्पणी
    गौरतलब है कि बॉम्बे हाईकोर्ट ने पोस्ट ग्रेजुएट पाठ्यक्रमों में प्रवेश पाने के लिए योग्य डॉक्टरों द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा था, "27.3.2019 को प्रकाशित संशोधित आरक्षण सीट मैट्रिक्स अनिर्दिष्ट है क्योंकि यह SEBC उम्मीदवारों की श्रेणी के लिए एक प्रावधान बनाता है जिसके अवैध होने के नाते, वर्तमान प्रवेश प्रक्रिया में SEBC आरक्षण के सीमित उद्देश्य के लिए प्रभाव नहीं दिया जाएगा।"

    जस्टिस एस. बी. शुकरे और जस्टिस पी. वी. गणेदीवाला की पीठ ने यह फैसला सुनाया था कि राज्य सरकार की अधिसूचना 8 मार्च, 2019 के तहत स्वास्थ्य विज्ञान के पाठ्यक्रमों में सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ी जातियों के कोटे को पीजी डेंटल और मेडिकल प्रवेश के लिए लागू नहीं किया जाएगा क्योंकि NEET के लिए पंजीकरण प्रक्रिया वर्ष 2018 में 16 अक्टूबर और 2 नवंबर को शुरू हुई थी जबकि मराठा समुदाय के लिए 16% आरक्षण शुरू करने वाले SEBC अधिनियम को 30 नवंबर, 2018 को लागू किया गया था।

    सरकार के कोटा पर फैसले पर उठाया गया सवाल
    याचिकाकर्ताओं ने सभी निजी सहायता प्राप्त और गैर-सहायता प्राप्त कॉलेजों पर सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए 16% कोटा देने के सरकार के फैसले पर सवाल उठाया है। यह कोटा इंस्टीट्यूट कोटा और एनआरआई कोटा सहित सभी सीटों पर होगा। जबकि, अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी), अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी), विमुक्त जातियों (वीजे), घुमंतू जनजातियों (एनटी) और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लिए अन्य आरक्षणों की गणना 50% के तहत की जाती है वो भी एनआरआई और संस्थान कोटा हटाने के बाद उपलब्ध कोटा में। याचिकाकर्ताओं ने यह तर्क दिया है कि यह भेदभावपूर्ण है।

    कोर्ट ने कहा था, "हम निर्देश देते हैं कि जहां तक मेडिकल प्रवेश प्रक्रिया को लेकर 09/02/2019 को जारी अधिसूचना का संबंध है ये उस मेडिकल प्रवेश के लिए लागू की जाएगी जो 30 नवंबर 2018 के बाद शुरू की गई या ये किसी अन्य रिट के परिणाम के अधीन शुरू होगी। याचिका, यदि लंबित है तो वर्तमान चिकित्सा प्रवेश प्रक्रिया -2019 के लिए अधिसूचना के तहत कोई आवेदन नहीं होगा जो कि 16 अक्टूबर, 2018 और 2 नवंबर, 2018 में हुई थी।"

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