सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू महासभा की मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश संबंधी PIL खारिज की
Live Law Hindi
9 July 2019 9:14 AM IST
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अखिल भारत हिंदू महासभा के केरल इकाई के अध्यक्ष द्वारा दायर उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश की अनुमति देने का निर्देश जारी करने की मांग की गई थी।
भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने याचिका को खारिज करते हुए कहा, "एक मुस्लिम महिला को इसे चुनौती देने दें।" ये याचिका केरल उच्च न्यायालय के उस फैसले के खिलाफ दाखिल की गई थी जिसमें इस याचिका को खारिज कर दिया गया था।
केरल HC का फैसला
11 अक्टूबर को पारित अपने फैसले में मुख्य न्यायाधीश हृषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति ए. के. जयशंकर नांबियार की उच्च न्यायालय की पीठ ने कहा था कि याचिकाकर्ता यह स्थापित करने में विफल रहा कि केरल की मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश से इनकार है।
अदालत ने कहा, "रिट याचिका उस सामग्री का खुलासा नहीं करती जो यह बताए कि एक स्थापित प्रथा है जिसके तहत मुस्लिम महिलाओं को मस्जिदों में प्रवेश से वंचित किया जा रहा है। मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाने वाली याचिका में उस अधिकार की प्रकृति को इंगित करना चाहिए जो कथित रूप से भंग हो रहा है। रिट याचिका में इस बात का कोई जिक्र नहीं है कि अनुच्छेद 25 के तहत मुस्लिम महिलाओं के किसी भी अधिकार का उल्लंघन किया जाता है। इसके अलावा यह सुझाव देने के लिए कोई सामग्री मौजूद नहीं है कि मस्जिदों में मुस्लिम महिलाओं को प्रवेश से वंचित रखने की प्रथा के संबंध में तथ्य की जांच के लिए और ये पता लगाने के लिए कि ये संविधान के अनुच्छेद 14, 21 या 25 के तहत मौलिक अधिकारों का हनन करता है, न्यायालय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत कार्यवाही में ये जांच कर सकता है।
"महिलाओं को मस्जिद में प्रवेश एवं प्रार्थना नहीं करने देना है भेदभाव"
यह याचिका स्वामी देथाथरेया साईं स्वरूप नाथ द्वारा दायर की गई थी जो अखिल भारत हिंदू महासभा, केरल इकाई के प्रदेश अध्यक्ष हैं। याचिकाकर्ता ने कहा कि सबरीमाला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश की अनुमति देने के सुप्रीम कोर्ट के 28 सितंबर के फैसले के संदर्भ में, समय की जरूरत पुरुषों के साथ-साथ नमाज के लिए मस्जिदों में मुस्लिम महिला श्रद्धालुओं के प्रवेश की है। उन्होंने कहा कि महिलाओं को मुख्य प्रार्थना कक्ष में मस्जिदों में प्रवेश करने और प्रार्थना करने की अनुमति नहीं देना भेदभाव है।
पर्दा जैसा ड्रेस कोड लागू करने पर उठायी गयी आपत्ति
याचिका में यह भी कहा गया है कि मुस्लिम महिलाओं के लिए पर्दा जैसा ड्रेस कोड लागू करने से असामाजिक तत्व इसका गलत इस्तेमाल करेंगे और अपराध कर सकेंगे। याचिका में कहा गया है कि यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक सुरक्षा के दायरे में अतिक्रमण के रूप में है।
पीठ ने उठाए याचिकाकर्ता पर सवाल
पीठ ने कहा कि रिट याचिका में यह नहीं बताया गया है कि याचिकाकर्ता एक ऐसा व्यक्ति है जिसका इस्लामी धर्म के अनुष्ठानों और प्रथाओं के साथ सामान्य रूप से संबंध होना चाहिए और विशेष रूप से मुस्लिम महिलाओं के मस्जिद में प्रवेश के कथित इनकार से संबंधित। साथ ही वो यह भी संतोषजनक रूप से स्थापित नहीं कर पाए कि उनका ऐसे मुद्दों को देश की अदालतों में उठाने का इतिहास रहा है।
पीठ ने यह भी विचार व्यक्त किया कि यह याचिका "सस्ता प्रचार" करने की इच्छा से प्रेरित है
"हमने यह भी नोटिस किया है कि वर्तमान PIL ने मीडिया का ध्यान आकर्षित किया है क्योंकि आज सुबह प्रिंट मीडिया में पीआईएल दाखिल करने के संबंध में एक रिपोर्ट दिखाई दी।हमें संदेह है कि यह जनहित याचिका याचिकाकर्ता की सस्ते प्रचार की इच्छा से प्रेरित है। हमारा विचार है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत कार्यवाही का ऐसे उद्देश्यों के लिए दुरुपयोग नहीं किया जा सकता," न्यायालय ने टिप्पणी की।