ग्रीन पटाखे : PESO ने सुप्रीम कोर्ट को बताया, नए फॉर्मूले तैयार किए गए, कम होगा प्रदूषण

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4 April 2019 7:10 AM GMT

  • ग्रीन पटाखे : PESO ने सुप्रीम कोर्ट को बताया, नए फॉर्मूले तैयार किए गए, कम होगा प्रदूषण

    भारत सरकार के उपक्रमपेट्रोलियम और विस्फोटक सुरक्षा संगठन (PESO) ने सुप्रीम कोर्ट में यह बताया है कि पटाखा निर्माताओं की मदद से CSIR-NEERI की एक संयुक्त प्रयोगशाला द्वारा ग्रीन पटाखों के निर्माण के लिए परीक्षण किया गया है और कुछ नए फॉर्मूले तैयार हुए हैं जो देश में ध्वनि और वायु प्रदूषण स्तर को वास्तव में कम कर सकते हैं।

    हालांकि PESO ने स्पष्ट किया है कि NEERI ग्रीन पटाखों में बेरियम नाइट्रेट का उपयोग करने के पक्ष में नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने इस हलफनामे को स्वीकार करते हुए अगली सुनवाई की तारीख 11 अप्रैल तय की है क्योंकि बुधवार को जस्टिस एस. ए. बोबडे छुट्टी पर थे।

    CSIR-NEERI ने किया कुछ फॉर्मूले पर कार्य

    शीर्ष अदालत में दायर अपने हलफनामे में PESO ने कहा है कि CSIR-NEERI द्वारा ग्रीन पटाखों के निर्माण के लिए कुछ फार्मूलों पर परीक्षण किया गया है। शिवाकाशी और उसके आसपास स्थित आतिशबाजी निर्माण कारखानों ने भी इसका अवलोकन, सामग्री विश्लेषण/मूल्यांकन किया है और ऐसा लगता है कि इनके निर्माण से पीएम 2.5 में कम से कम 25-30 प्रतिशत सुधार होगा और ये ग्रीन पटाखे सार्वजनिक हित में सभी हितधारकों के हित में होंगे।

    PESO ने कहा कि NEERI ने 5 मार्च को विभिन्न विशेषज्ञ निकायों की एक संयुक्त बैठक में स्पष्ट किया था कि यह बेरियम के उपयोग के पक्ष में नहीं है क्योंकि इसे पहले ही शीर्ष अदालत द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया था।

    इसके अलावा, PESO ने कहा कि यह तय किया गया है कि एक बार अंतिम मानक तैयार कर लिए जाएंगे इसके बाद पटाखा निर्माताओं को ग्रीन पटाखों के निर्माण के लिए NEERI या किसी भी प्रमाणित लैब से प्रमाण पत्र प्राप्त करना होगा।

    पटाखों से ज्यादा प्रदूषण वाहनों से, सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

    गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने बीते 12 मार्च को कहा था कि देशभर में पटाखों पर प्रतिबंध लगाना संभव नहीं है। जस्टिस एस. ए. बोबड़े और जस्टिस एस. अब्दुल नजीर की पीठ ने टिप्पणी की थी कि लोग पटाखों पर बैन के पीछे क्यों पड़े हैं जबकि ऐसा लगता है कि वाहनों द्वारा इससे ज्यादा वायु प्रदूषण होता है।

    पीठ ने केंद्र सरकार को यह निर्देश दिया था कि वो पटाखों और वाहनों से होने वाले प्रदूषण पर एक तुलनात्मक रिपोर्ट तैयार कर कोर्ट में दाखिल करे।

    अदालत ने पटाखों पर बैन लगाने से किया था इनकार
    सुनवाई के दौरान पीठ ने याचिकाकर्ता को यह कहा था कि अदालत पटाखे और इसकी इकाइयों को बंद करके बेरोजगारी पैदा नहीं कर सकती। प्रदूषण का स्तर एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में भिन्न होता है और पूरे देश में पटाखों पर प्रतिबंध लगाने के लिए पूरे देश में समान मानदंड लागू नहीं किए जा सकते।

    जस्टिस एस. ए. बोबड़े ने कहा था कि यदि पटाखा व्यापार वैध है और उनके पास एक वैध लाइसेंस है तो अदालत इस पर कैसे प्रतिबंध लगा सकती है? क्या अदालत ने कभी भी अनुच्छेद 19 के तहत जीने के अधिकार के दृष्टिकोण से पटाखों पर प्रतिबंध के मुद्दे का परीक्षण किया है?

    उन्होंने कहा था कि अन्य देशों की तुलना में भारत में पटाखे जोर-शोर से चल रहे हैं और इसलिए अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों को देश के भीतर समान रूप से लागू करना संभव नहीं है।

    वहीं केंद्र की ओर से पेश ASG आत्माराम नाडकर्णी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि अब तक PESO और NEERI ने ग्रीन पटाखों का फॉर्मूला फाइनल नहीं किया है, क्योंकि पटाखों में खतरनाक रसायन बेरियम नाइट्रेट के इस्तेमाल पर रोक है। ग्रीन पटाखों के लिए लगातार प्रयोग जारी हैं।

    NEERI-CSIR ने बताया था कि ग्रीन पटाखों का निर्माण है संभव
    5 मार्च को राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (NEERI) और सेंटर फॉर साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CSIR) ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया था कि पटाखा निर्माताओं के लिए पर्यावरण और वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए 'ग्रीन पटाखों' का उत्पादन संभव है।

    पीठ ने पटाखा निर्माताओं के परामर्श से 2 वैज्ञानिक निकायों द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट को रिकॉर्ड में लेने के बाद केंद्र और याचिकाकर्ता को 1 सप्ताह के भीतर रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया दायर करने के लिए कहा था।

    इस रिपोर्ट में यह कहा गया है कि देश में पर्यावरण प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए ग्रीन पटाखे बनाने के लिए बेरियम नाइट्रेट और पोटेशियम नाइट्रेट जैसे पारंपरिक कैमिकल की कम मात्रा के साथ कुछ अतिरिक्त योजक जोड़कर ग्रीन पटाखे बनाए जा सकते हैं।

    वहीं याचिकाकर्ता के वकील गोपाल शंकरनारायन ने बेरियम नाइट्रेट और पोटेशियम नाइट्रेट के इस्तेमाल का विरोध किया था और कहा कि सुप्रीम कोर्ट में केंद्र ने कहा था कि इन रसायनों का इस्तेमाल नहीं होगा। ऐसे में केंद्र सरकार इस मुद्दे पर अपनी राय दे।

    सुप्रीम कोर्ट पहले भी पटाखों पर बैन लगाने से कर चुका है इनकार
    गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 23 अक्तूबर 2018 को देश भर में दिवाली के दौरान वायु और ध्वनि प्रदूषण का मुकाबला करने के लिए पटाखों की बिक्री और पटाखे चलाने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने से इनकार कर दिया था। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए कई दिशा निर्देश भी जारी किए और पटाखों की ऑनलाइन बिक्री पर रोक लगा दी।

    जस्टिस ए. के. सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण ने ये फैसला सुनाते हुए केंद्र के हलफनामे को मंजूर करते हुए कहा था कि कम शोर और प्रदूषण वाले सुधार वाली क्वॉलिटी के पटाखों की बिक्री व निर्माण हो जिनमे राख और धूल 20 फीसदी तक कम हो। इनका मानक PESO की विशेषज्ञ टीम तय करेगी ताकि पटाखों में चारकोल और बारूदी रसायन की मात्रा को पैरोटेक्नीक से तय करने के बाद ही मंज़ूरी दी जाएगी। ग्रीन फायर क्रेकर्स का इस्तेमाल किया जाए जो कम धुआं दें।

    साथ ही कम धुंआ और आवाज वाले ऐसे पटाखे और आतिशबाज़ी जिनसे 30-35 फीसदी पीएम (पार्टिक्युलेट मैटर ) कम उत्सर्जित होता है। इनमें खतरनाक रसायन NOx और SO2 कम होता है। पीठ ने कहा था कि दिल्ली और NCR में जो पटाखे बनाए जा चुके हैं और शर्तों के मुताबिक नहीं हैं उन्हें अब बेचने की इजाजत नहीं होगी।

    सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि अभी अदालत ने पटाखों के निर्माण और बिक्री पर रोक पर विचार नहीं किया है और इसके लिए व्यापक रिसर्च और शोध का इंतजार है। जब ये रिपोर्ट आ जाएगी तो और भी कठोर कदम उठाए जा सकते हैं।

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