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गुजरात के पूर्व IPS अफसर संजीव भट्ट की याचिका SC ने खारिज की, 30 साल पुराने हिरासत में मौत के मामले में 20 जून को ट्रायल कोर्ट सुनाएगी फैसला

Live Law Hindi
12 Jun 2019 9:43 AM GMT
गुजरात के पूर्व IPS अफसर संजीव भट्ट की याचिका SC  ने खारिज की, 30 साल पुराने हिरासत में मौत के मामले में 20 जून को ट्रायल कोर्ट सुनाएगी फैसला
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गुजरात में 30 वर्ष पुराने हिरासत में हुई मौत के मामले में ट्रायल के लिए कुछ अतिरिक्त गवाहों को बुलाने की पूर्व IPS अफसर संजीव भट्ट की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। भट्ट ने 16 अप्रैल के गुजरात हाई कोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी थी जिसमें 14 की बजाए सिर्फ 3 अतिरिक्त गवाहों को जिरह के लिए बुलाने की अनुमति दी थी।

बुधवार को हुई सुनवाई के दौरान जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस अजय रस्तोगी की पीठ ने इस याचिका को खारिज किया। अब गुजरात राज्य के जामनगर की ट्रायल कोर्ट 20 जून को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार अपना फैसला सुना सकती है। इस मामले में भट्ट अभियुक्तों में से एक हैं।

सुनवाई के दौरान भट्ट के वकील ने कहा कि न्याय के लिए 11 गवाहों को परीक्षण के लिए वापस बुलाया जाना चाहिए। अभियोजन ने जानबूझकर 300 में से सिर्फ 32 गवाह ही बुलाए थे।

वहीं गुजरात सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मनिंदर सिंह द्वारा यह कहते हुए इसका विरोध किया गया था कि मंगलवार को ही ट्रायल कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है और सुप्रीम कोर्ट के 24 मई के फैसले के मुताबिक वो 20 जून को अपना फैसला सुनाएगा।

3 जजों की पीठ ने 24 मई को जामनगर ट्रायल कोर्ट को 20 जून तक ट्रायल पूरा करने का निर्देश दिया था क्योंकि यह केस 30 वर्ष पुराना है।

गुजरात राज्य ने SC को यह भी बताया कि सभी गवाहों को अदालत में पेश किया गया था,लेकिन भट्ट ने उनसे जिरह नहीं की। सुनवाई के दौरान पीठ ने भट्ट के वकील से कहा कि बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती पहले क्यों नहीं दी गई। पीठ ने कहा कि वह 24 मई के आदेश के साथ हस्तक्षेप नहीं करेगी क्योंकि यह 3 न्यायाधीशों द्वारा पारित किया गया था।

दरअसल वर्ष 1990 में जामनगर में भारत बंद के दौरान हिंसा हो गई थी। भट्ट उस समय पुलिस के सहायक अधीक्षक थे। करीब 133 लोगों को गिरफ्तार किया गया जिनमें से एक आरोपी की हिरासत से बाहर आने पर मौत हो गई थी। आरोप लगाया गया था कि हिरासत में उसके साथ मारपीट की गई थी। इसके बाद शिकायत के आधार पर भट्ट व अन्य पुलिसकर्मियों के खिलाफ FIR दर्ज की गई थी। पहले मुकदमा चलाने की अनुमति ना देने के बाद वर्ष 2011 में गुजरात सरकार ने ट्रायल की अनुमति दे दी।

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