गुजरात HC एडवोकेट्स एसोसिएशन ने जस्टिस कुरैशी को MP HC चीफ जस्टिस नियुक्त करने में देरी का विरोध किया
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11 Jun 2019 11:40 AM GMT
गुजरात हाई कोर्ट एडवोकेट्स एसोसिएशन ने न्यायमूर्ति ए. कुरैशी की मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति करने में देरी का विरोध करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया है। गौरतलब है कि उनके नाम की सिफारिश सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने बीते 10 मई को की थी।
इस तथ्य का संदर्भ देते हुए कि ये सिफारिश भी कॉलेजियम द्वारा उसी दिन की गई जिसके द्वारा न्यायमूर्ति डी. एन. पटेल की दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति को केंद्र द्वारा अधिसूचित किया गया है।
एसोसिएशन ने प्रस्ताव में कहा है कि "माननीय न्यायमूर्ति कुरैशी की फाइल को रख लेने का उद्देश्य असंवैधानिक है और सरकार के निर्णय में कमी है।"
जीएचसीएए के अध्यक्ष वरिष्ठ वकील यतिन ओझा ने न्यायमूर्ति कुरैशी के स्थानांतरण पर अनिश्चितकालीन हड़ताल का सहारा लेने के बार के फैसले की घोषणा की थी। हालांकि CJI रंजन गोगोई द्वारा एसोसिएशन के प्रतिनिधियों से मुलाकात करने के बाद इसे वापस ले लिया गया था।
"अगर भारत के कानून मंत्री के साथ बैठक के बाद कुछ भी सकारात्मक नहीं निकला तो बार के पास कोई विकल्प नहीं बचेगा और 1 दिन के लिए काम रोकना होगा और माननीय सर्वोच्च न्यायालय में इस विषय पर भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत रिट याचिका भी दायर करनी होगी," सिफारिश में कहा गया है।
न्यायमूर्ति कुरैशी द्वारा विवादास्पद निर्णय
बार के कई सदस्यों ने इस विश्वास को साझा किया कि न्यायमूर्ति कुरैशी को शासन के खिलाफ दिए गए प्रतिकूल आदेश के कारण दरकिनार किया जा रहा है। वर्ष 2010 में न्यायमूर्ति कुरैशी ने मजिस्ट्रेट द्वारा पारित उस आदेश को रद्द करते हुए सोहराबुद्दीन मामले में अमित शाह की सीबीआई को पुलिस रिमांड दी थी जिसमें रिमांड के लिए सीबीआई की याचिका खारिज कर दी गई थी। उन्होंने सीबीआई हिरासत के दौरान शाह की पूछताछ की वीडियोग्राफी करने की याचिका को भी खारिज कर दिया था।
गुजरात लोकायुक्त की नियुक्ति का मामला
गुजरात लोकायुक्त के रूप में न्यायमूर्ति आर. ए. मेहता की नियुक्ति के मामले में उनके वर्ष 2012 के आदेश ने गुजरात सरकार को भारी शर्मिंदगी दी थी। सरकार ने राज्यपाल कमला बेनीवाल द्वारा की गई लोकायुक्त नियुक्ति का इस आधार पर विरोध किया कि इसे सरकार की सहमति के बिना किया गया था।
न्यायमूर्ति कुरैशी ने कहा कि राज्यपाल लोकायुक्त अधिनियम के तहत एक स्वतंत्र वैधानिक प्राधिकरण के रूप में कार्य कर रहे थे और इसलिए सरकार की सहमति की आवश्यकता नहीं है। पीठ में उनकी सहयोगी न्यायमूर्ति सोनिया गोकानी ने इस फैसले से असहमति जताई थी।
इस विभाजन के फैसले के कारण इस मामले को तीसरे न्यायाधीश- न्यायमूर्ति वी. एम. सहाय को भेजा गया जिन्होंने न्यायमूर्ति कुरैशी द्वारा व्यक्त किए गए दृष्टिकोण के साथ सहमति व्यक्त की थी। मामले को प्रतिष्ठा के मुद्दे के रूप में लेते हुए गुजरात सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष अपील की लेकिन कोई सफलता नहीं मिली क्योंकि शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के बहुमत के फैसले को बरकरार रखा था।
न्यायमूर्ति कुरैशी ने कहा था, "जब एक वरिष्ठ वकील द्वारा मंच पर देर से उपस्थिति दर्ज कराई जाती है तो हमें आश्चर्य होता है कि यह बेहतर नहीं होता यदि वकील अदालत से ऐसा करने का अनुरोध करने के बजाय खुद को सुनवाई से अलग करते।"
उन्होंने इस प्रकरण पर अपनी नाराज़गी जताते हुए कहा, "यह बहुत दर्दनाक है। हम कुछ नहीं कहेंगे, लेकिन इससे लोगों का संस्थान पर भरोसा कम होता है और छवि धूमिल होती है ... ऐसा नहीं होना चाहिए था।"