ट्रिब्यूनल पर CB का पहला दिन : CJI ने कहा,यह मजबूत दृष्टिकोण है कि सेवानिवृति के बाद की नियुक्ति न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर एक धब्बा है

Live Law Hindi

27 March 2019 8:55 PM IST

  • ट्रिब्यूनल पर CB  का पहला दिन : CJI ने कहा,यह मजबूत दृष्टिकोण है कि सेवानिवृति के बाद की नियुक्ति न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर एक धब्बा है

    "इस बात पर कोई विवाद नहीं है कि इनमें से अधिकांश ट्रिब्यूनल बुनियादी सुविधाओं या श्रमशक्ति की कमी के चलते वस्तुतः गैर-कार्यशील हैं .. एक बहुत ही व्यावहारिक समाधान है और यह विचार संभव है कि अर्ध-न्यायिक पक्ष में एकरूपता सुनिश्चित करने के लिए कम से कम ट्रिब्यूनल कार्यशील हों," बुधवार को मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने यह टिप्पणी की।

    दरअसल मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ विभिन्न ट्रिब्यूनल से संबंधित वित्त अधिनियम 2017 में प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।

    इससे पहले वरिष्ठ वकील अरविंद दातार ने कहा कि एनजीटी के पास 20 न्यायिक और 20 तकनीकी सदस्यों का कार्यबल है लेकिन इसमें प्रत्येक में सिर्फ 3 के साथ काम चल रहा है। "ग्रीन ट्रिब्यूनल केवल दिल्ली में काम कर रहा है। अन्य स्थानों पर यह बंद हो गया है! कोई काम नहीं हो रहा है। एनजीटी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की बात करता है लेकिन यह हमेशा संभव नहीं है," उन्होंने कहा था।

    इसके अलावा उन्होंने प्रस्तुत किया कि वर्ष 2016 के बाद एक भी पेटेंट अपील को एनजीटी द्वारा नहीं सुना गया है- "यदि किसी दवा के लिए पेटेंट दिया जाता है और यह एक दोषपूर्ण आदेश है तो भी यह जारी रहेगा!"

    दातार ने कहा कि मद्रास ITAT के लिए सरकार ने कहा था कि इसकी अलग इमारत के लिए वित्तीय सहायता नहीं है और यह बिना पार्किंग सुविधा के संचालित होता है जबकि न्यायमूर्ति एन. वी. रमना ने कहा कि कुछ न्यायाधिकरणों में क्लर्क या टेबल व कुर्सियां ​​तक नहीं हैं।

    "उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश, जिनके पास सत्ता के सभी आवरण हैं, अगर ये स्थिति है तो वो किसी अधिकरण में जाना चाहेंगे?" दातार ने प्रश्न पूछा था।

    "पिछली भर्ती में, जिला न्यायाधीश, जिनके पास 58 वर्ष की आयु तक किसी भी प्रकार के कर मामले का अनुभव नहीं था और जो केवल आपराधिक मामलों से निपट रहे थे, को अचानक कर न्यायाधिकरण में शामिल किया गया। अनौपचारिक रूप से हमने पूछा भी था कि वो कैसे प्रबंधन करेंगे," मुख्य न्यायाधीश ने याद करते हुए कहा।

    न्यायमूर्ति एन. वी. रमना ने कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल के सदस्यों के चयन के विषय में अपना अनुभव भी सुनाया- "हमने पूछा, 'आपकी योग्यता क्या है?' उन्होंने कहा, 'मुझे बार के सदस्य के रूप में नामांकित किया गया था और मुझे बहुत अनुभव है।'

    "भर्ती, सेवा की शर्तों, कार्यकाल- पूरे अभ्यास की स्वतंत्रता और न्यायिक चरित्र को बनाए रखने के लिए कुछ एकरूपता की आवश्यकता है। हमारे पास चयन के तरीके में समानता की पूर्ण कमी है," CJI ने आगे जारी रखा।

    "अब ITAT की बात करते हैं, इस व्यक्ति की बॉम्बे से सिफारिश की गई थी लेकिन महाराष्ट्र राज्य ने कहा कि वह वहां से नहीं है। वह मद्रास में स्थानांतरित हो गया और यह कहा गया कि वह तमिलनाडु राज्य का नहीं है। वे कहेंगे कि वह यहां काम नहीं करता इसलिए उसे हमारे न्यायालय में क्यों आना चाहिए," उन्होंने कहा।

    "ये न्यायाधिकरण हैं जो राष्ट्र के विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं। सेवा की शर्तें ऐसी होनी चाहिए जो सर्वोत्तम प्रतिभा को आकर्षित करें। अन्यथा विकास के प्रति कोई योगदान नहीं होगा," न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ ने जोर देकर कहा।

    न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता ने कहा, "न्याय की कोई पहुंच नहीं है! जहां तक ​​ग्रीन ट्रिब्यूनल का सवाल है, दूरदराज के इलाकों के लोग यहां नहीं आ सकते।"

    "और अध्यक्ष 20 स्थानों पर नहीं जा सकते! तो क्या समाधान है? क्या हम उच्च न्यायालयों में वापस जा रहे हैं?" दातार ने तर्क दिया। उन्होंने कनाडाई (Canada) सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की पीठ पर भरोसा किया जहां यह देखा गया था कि यदि वहाँ अधिक मामले हैं तो अधिक न्यायाधीश बनाए जा सकते हैं लेकिन न्यायिक शक्ति को अधिकरण में निहित नहीं किया जा सकता। "यदि आप न्यायालय की शक्तियों को छीनना चाहते हैं तो आपको कार्यात्मक स्वायत्तता सुनिश्चित करनी चाहिए!" उन्होंने कहा।

    "न्यायाधिकरणों की दक्षता न केवल उन न्यायाधीशों पर निर्भर करती है जो उनमें काम करते हैं बल्कि ये गैर-न्यायिक कर्मचारियों पर भी निर्भर है। यूके में उनकी न्यायालय और न्यायाधिकरण हैं जो विशेष रूप से व्यक्तियों को नियुक्त करती है। यहाँ भारत में लोग अलग-अलग विभागों से तदर्थ आधार आते हैं ... वे 6 महीने के लिए आते हैं और वापस चले जाते हैं ... वे वही करते हैं जो वे चाहते हैं और पीठासीन अधिकारी का शायद ही उन पर कोई अनुशासनात्मक नियंत्रण हो।"

    "पिछले साल हमारी अदालत का एक जनहित याचिका पर फैसला है, जहाँ हमने प्रशासनिक सदस्यों को एनसीडीआरसी के अध्यक्ष की रिपोर्ट के लिए बुलाया था कि उनसे क्या आवश्यकताएं हैं ... उनकी बहुत व्यापक आवश्यकताएं हैं, जैसे अर्थशास्त्र का ज्ञान!" कोई स्थापित पैरामीटर नहीं है... कोई बुनियादी ढांचा नहीं था। फाइलें सीढ़ियों के नीचे रखी गई थीं! " उन्होंने जारी रखा।

    "मद्रास में, डिस्ट्रिक्ट कंज्यूमर फ़ोरम में बिल्कुल भी तरीका नहीं है! सैलरी का कोई प्रावधान नहीं है! इसके बजाय केवल ऑटो-रिक्शा का किराया कवर करने के लिए दैनिक भत्ता है!" दातार ने कहा।

    "हम केवल यह बताना नहीं चाहते कि क्या नहीं होना चाहिए। हाथ में एक समस्या है और हम सभी जानते हैं कि क्या किया जाना चाहिए। सवाल यह है कि हमें यह कैसे करना चाहिए? कोई निर्देश जोड़ने का कोई मतलब नहीं है। वे सभी व्यापक हैं ... मुद्दा है स्टाफ से लेकर कामकाज के बुनियादी ढांचे तक। और कम से कम 36 राष्ट्रीय न्यायाधिकरण मौजूद हैं जिनके कामकाज को दुरुस्त करने की आवश्यकता है। हमें परिणाम देखने की जरूरत है! जो कुछ भी करने की आवश्यकता है, वह पहले से ही है वहाँ! यह किया जाना चाहिए! अगर भारत सरकार नहीं चाहती तो हमें बताएं," मुख्य न्यायाधीश गोगोई ने कहा।

    "जब एनजीटी में नियुक्तियों के लिए सिफारिश यह मानते हुए की गई थी कि वे इन उच्च-शक्ति वाले पदों को प्राप्त करने के लिए सही उम्मीदवार थे, तब भी केवल 3 और 3 ही क्यों हैं? ... एनसीएलटी पूरे देश में अपनी बेंच चाहता है।" समिति की सिफारिश की जा रही है लेकिन कोई नियुक्तियां नहीं हो रही हैं। यह फिर से माना जा रहा है कि अनुशंसित लोग सक्षम हैं क्योंकि ये वे लोग हैं जिन्होंने स्वयं आवेदन किया है और पद में रुचि रखते हैं।

    चयन समिति की सिफारिशों को ठुकराने का कोई कारण नहीं बताया गया है। कहा गया कि आप केवल सिफारिश करने वाले प्राधिकारी हैं लेकिन हमारे पास नियुक्ति करने की शक्ति है। हम चाहते हैं कि भारत सरकार हमें बताए कि क्या आप चाहते हैं कि न्यायाधिकरण जारी रहें। इसके अलावा कुछ और काम करने दें," मुख्य न्यायाधीश ने आगे कहा।

    उन्होंने एक ठोस उदाहरण का हवाला दिया जब वे खुद NCLT और NCLAT के सदस्यों की सिफारिश करने के लिए आयोग का नेतृत्व कर रहे थे- "हमने 20-25 लोगों की सिफारिश की जिसमें से केवल 3-4 ही अंतिम रूप से नियुक्त हुए।"

    "उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र के हस्तांतरण में न्यायाधिकरण की ओर से दक्षता और स्वतंत्रता को निर्धारित किया जाता है। यदि एक न्यायाधिकरण की ताकत एक सीमा से कम है तो उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र का बहिष्कार नहीं किया जा सकता," जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपना सुझाव दिया।

    "न्यायाधीशों की संख्या के संदर्भ में हमारे उच्च न्यायालयों की स्थिति को देखें। क्षेत्राधिकार को स्थानांतरित करने का पूरा विचार बोझ को हल्का करना था ... उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की कुल संख्या क्या है? 1089। लेकिन वास्तव में उनमे से कार्यरत कितने हैं? रिक्तियों की संख्या 397 है। 264 को अभी तक उच्च न्यायालयों द्वारा अनुशंसित नहीं किया गया है। वे कब आएंगे? उन्हें कब संसाधित किया जाएगा? नियुक्तियां कब की जाएंगी? और उस समय तक, कितने और न्यायाधीश सेवानिवृत्त हो गए होंगे? उच्च न्यायालयों के इस छंटे हुए रुख के चलते उनमें अधिक कार्य करने का प्रश्न कहाँ है?" मुख्य न्यायाधीश गोगोई ने पूछा।

    "कुछ उच्च न्यायालयों में रिट याचिकाएँ दायर करने के 4 सप्ताह बाद सूचीबद्ध की जाती हैं। यहाँ सर्वोच्च न्यायालय में मामला 4 दिनों के बाद आता है और अभी भी मेंशनिंग होती है। एक विशेष उच्च न्यायालय में, जिसका मैं नाम नहीं लूंगा, एक जमानत अर्जी सुनवाई के लिए 4 सप्ताह बाद ली जाती है। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना उच्च न्यायालय, द्विभाजन से पहले, 50% की ताकत और 3 लाख की पेंडेंसी के साथ काम कर रहे थे ...आप एनसीएलटी की बेंच स्थापित कर रहे हैं क्योंकि अधिनियम ऐसा कहता है, लेकिन आपके पास इन बेंचों के लिए लोग ही मौजूद नहीं हैं क्योंकि आप नियुक्तियां नहीं कर रहे हैं!"

    "लेकिन हमें सरकार को दोष नहीं देना चाहिए। यदि 60 लोग न्यायिक सदस्यों के पद के लिए आवेदन कर रहे हैं तो कुछ न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश हैं। यदि केवल 4-5 उच्च न्यायालय के न्यायाधीश हैं, तो निर्णय कैसे करें? ... उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश नियुक्ति की प्रक्रिया में अनिश्चितता के कारण सदस्य बनने के लिए तैयार नहीं हैं। उनसे सदस्य बनने के लिए 1 वर्ष तक इंतजार करने की उम्मीद नहीं की जा सकती है!", मुख्य न्यायाधीश ने माना।

    न्यायाधिकरणों के लिए एक नियामक संस्था के रूप में भारतीय ट्रिब्यूनल सेवा IRS आदि की तर्ज पर भर्ती के लिए और एक लंबे कार्यकाल के लिए राष्ट्रीय न्यायाधिकरण आयोग के गठन के लिए दातार के सुझावों के जवाब में मुख्य न्यायाधीश गोगोई ने कहा, "मान लीजिए कि एक सदस्य को 3 साल के कार्यकाल की बजाए 62 वर्ष की आयु तक स्थायी कार्यकाल दिया गया तो आप उससे छुटकारा नहीं पा सकते चाहे कोई भी हो ... "

    "आप क़ानून में एक खंड का सुझाव दे रहे हैं कि जो व्यक्ति अध्यक्ष है, उसे कोई अन्य कार्य नहीं करना चाहिए ...जैसे राज्यों में लोकपाल के लिए है कि उस कार्यालय को संभालने के बाद 5 साल के लिए कोई अन्य सार्वजनिक कार्यालय रखने के पात्र नहीं हैं।"

    एक कहावत है कि सेवानिवृत्ति के बाद की नियुक्ति न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर एक धब्बा है। आप इसे कैसे समझते हैं?" मुख्य न्यायाधीश ने पूछा। दातार ने उत्तर दिया कि यह केवल एक दृष्टिकोण है तो मुख्य न्यायाधीश गोगोई ने एक हल्के नोट पर टिप्पणी की, "मगर यह एक बहुत मजबूत दृष्टिकोण है।"

    भर्ती, सेवा शर्तें, कार्यकाल- पूरी कवायद में स्वतंत्रता और न्यायिक चरित्र को बनाए रखने के लिए कुछ एकरूपता की जरूरत है। हमारे पास चयन के तरीके में समानता की कमी है ... जबकि कुछ (ट्रिब्यूनल) के पास सेवानिवृत्त न्यायाधीश या मुख्य न्यायाधीश के रूप में अध्यक्ष हैं तो कुछ के पास नहीं हैं। जबकि यह कार्य और कर्तव्यों के संदर्भ में आवश्यक है," CJI ने जारी रखा।

    Next Story