सुप्रीम कोर्ट ने 'अल्पसंख्यक' की परिभाषा वाली जनहित याचिका पर AG से सहयोग मांगा
Live Law Hindi
20 July 2019 7:10 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने किसी समुदाय की राज्य-वार जनसंख्या के संदर्भ में 'अल्पसंख्यक' शब्द को परिभाषित करने के लिए दिशानिर्देशों की मांग करने वाली याचिका पर शुक्रवार को अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल से कोर्ट का सहयोग करने के लिए कहा है।
याचिका की प्रति AG को देने का निर्देश
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने भाजपा नेता और वकील अश्वनी कुमार उपाध्याय को अपनी याचिका की एक प्रति AG को देने के लिए कहा है। याचिका अब 4 सप्ताह के बाद सुनवाई के लिए निर्धारित की की गई है। उपाध्याय की ओर से वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी अदालत में उपस्थित हुए।
याचिकाकर्ता इस मामले को लेकर पूर्व में भी आ चुका है अदालत
दरअसल उपाध्याय ने वर्ष 2017 में एक याचिका दाखिल कर 23 अक्तूबर 1993 को जारी अधिसूचना को मनमानी, अनुचित और संविधान के खिलाफ बताया था। हालांकि बाद में उन्होंने इस याचिका को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग से संपर्क करने की स्वतंत्रता के साथ वापस ले लिया और फिर 17.11.2017 को एक प्रतिनिधत्व आयोग को सौंपा था लेकिन NCM ने कोई कदम नहीं उठाया इसलिए उन्होंने एनसीएम अधिनियम, 1992 की धारा 2 (सी) और 23.10.1993 की अधिसूचना को रद्द करने के लिए ये यह रिट याचिका दाखिल की है। याचिका में इसे मनमाना, अनुचित, अपमानजनक होने के साथ साथ भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 के खिलाफ होने की वजह से शून्य और असंवैधानिक बताया है।
याचिकाकर्ता द्वारा दिया गया तर्क
याचिकाकर्ता ने यह कहा है कि जो लोग संविधान के अनुच्छेद 29 और 30 के तहत अल्पसंख्यक सुरक्षा के हकदार नहीं हैं, वो संविधान के अनुच्छेद 15 (5) और (6) के तहत छूट, शिक्षा का अधिकार अधिनियम के प्रावधान और सरकार के कल्याणकारी कार्यक्रम का लाभ उठा रहे हैं। यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का स्पष्ट उल्लंघन है।
याचिका में यह कहा गया है कि वास्तविक अल्पसंख्यकों को अल्पसंख्यक अधिकारों से वंचित करना और बहुसंख्यकों को अल्पसंख्यक लाभ प्रदान करना और धर्म, जाति, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव मनमाना और अनुचित होने के अलावा मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
"अल्पसंख्यक शब्द को परिभाषित करे सरकार"
याचिका में सरकार को "अल्पसंख्यकों" को परिभाषित करने और उनकी पहचान के लिए दिशानिर्देश जारी करने की मांग भी की गई है। अर्जी में यह भी कहा गया है कि जो धार्मिक या अन्य समूह सामाजिक, आर्थिक या राजनीतिक रूप से उक्त राज्य में जनसंख्या का 1 फीसदी तक हैं, उन्हें ही इसका लाभ दिया जा सकता है
अपनी याचिका में, भाजपा नेता ने कहा है कि हिंदू, जो राष्ट्रीय आंकड़ों के अनुसार बहुसंख्यक समुदाय हैं, कई उत्तर-पूर्वी राज्यों और जम्मू-कश्मीर में अल्पसंख्यक हैं। हालांकि हिंदू समुदाय इन राज्यों में अल्पसंख्यक समुदायों को मिलने वाले लाभों से वंचित है, याचिका में यह कहा गया है कि एनसीएम को इस संदर्भ में अल्पसंख्यक की परिभाषा पर पुनर्विचार करना चाहिए।
"उठाया जा रहा है इसका राजनीतिक लाभ"
याचिका में यह कहा गया है कि अनुच्छेद 29-30 के अनुसार "अल्पसंख्यक" की परिभाषा राज्य के हाथों में छोड़ दी गई है जिसका राजनीतिक लाभ के लिए दुरुपयोग किया जा रहा है। याचिका में कहा गया है कि अल्पसंख्यक का दर्जा उन राज्यों में हिंदुओं को दिया जाए जहां समुदाय की संख्या में कमी आई है।
राज्य, जहां हिन्दू हैं अल्पसंख्यक
कहा गया है कि वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, 8 राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं- लक्षद्वीप (2.5 प्रतिशत), मिजोरम (2.75 प्रतिशत), नागालैंड (8.75 प्रतिशत), मेघालय (11.33 प्रतिशत), जम्मू और कश्मीर (28.44 प्रतिशत), अरुणाचल प्रदेश (29 प्रतिशत), मणिपुर (31.39 प्रतिशत) और पंजाब (38.40 प्रतिशत)।
दिए गए कुछ धर्म एवं राज्यों के उदाहरण
याचिका में आगे यह कहा गया है कि मिजोरम, मेघालय और नागालैंड में ईसाई बहुमत में हैं और अरुणाचल प्रदेश, गोवा, केरल, मणिपुर, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में महत्वपूर्ण आबादी है लेकिन उन्हें अल्पसंख्यक माना जाता है। इसी तरह पंजाब में सिख बहुसंख्यक हैं और दिल्ली, चंडीगढ़ और हरियाणा में वे एक महत्वपूर्ण आबादी हैं, लेकिन उन्हें भी अल्पसंख्यक माना जाता है।
लक्षद्वीप (96.20%), जम्मू और कश्मीर (68.30%) में मुसलमान बहुसंख्यक हैं और असम (34.20%), पश्चिम बंगाल (27.5%), केरल (26.60%), उत्तर प्रदेश (19.30%) और बिहार (18%) में समुदाय की एक महत्वपूर्ण आबादी है। हालांकि वे 'अल्पसंख्यक' का दर्जा प्राप्त कर रहे हैं और समुदाय, जो वास्तविक रूप से अल्पसंख्यक हैं, उन्हें अपना वैध हिस्सा नहीं मिल रहा है जो संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19 और 21 के तहत बुनियादी अधिकारों की गारंटी है।