भीमा कोरेगांव हिंसा : सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट को कहा, नवलखा की याचिका पर 8 सप्ताह में फैसला करें
Live Law Hindi
12 March 2019 7:37 PM IST
भीमा कोरेगांव हिंसा में आरोपी सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट से आग्रह किया है कि वो 8 सप्ताह में नवलखा की उस याचिका पर फैसला दे जिसमें उन्होंने अपने खिलाफ दर्ज FIR को चुनौती दी है।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने मंगलवार को महाराष्ट्र सरकार की अर्जी पर फिलहाल आदेश जारी करने से इनकार कर दिया। पीठ ने कहा कि पहले नवलखा की याचिका पर बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले का इंतजार किया जाएगा।
दरअसल महाराष्ट्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। इसमें ट्रांजिट रिमांड रद्द करने और हाउस अरेस्ट हटाने के फैसले को चुनौती दी गई है।
इससे पहले महाराष्ट्र सरकार ने एक्टिविस्ट गौतम नवलखा के खिलाफ कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा था कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता के नाम पर चीखना- चिल्लाना आजकल का फैशन बन गया है। महाराष्ट्र पुलिस एक्टिविस्ट को गिरफ्तार करने का अधिकार रखती है और उसके खिलाफ आरोप गंभीर हैं। पुणे पुलिस की ओर से दाखिल हलफनामे में कहा गया कि पुलिस नवलखा को हिरासत में लेकर पूछताछ करना चाहती है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार की अर्जी पर गौतम नवलखा को नोटिस जारी कर उनकी ओर से जवाब मांगा था।
महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश मुकुल रोहतगी ने कहा था कि जब सुप्रीम कोर्ट ने हाउस अरेस्ट के आदेश दिए थे तो दिल्ली हाईकोर्ट ने हैबियस कारपस याचिका कैसे सुनी? याचिका में हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाकर तुरंत हाउस अरेस्ट के आदेश बहाल करने की मांग की गई है।
याचिका में कहा गया कि दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला गलत है। हाईकोर्ट में दाखिल याचिका में ट्रांजिट रिमांड को चुनौती नहीं दी गई थी। ये हैबियस कॉरपस याचिका थी जिसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने ही पूर्व में आदेश दिया है कि गिरफ्तारी और निचली अदालत के आदेश के खिलाफ हैबियस कॉरपस याचिका दाखिल नहीं हो सकती।
गौरतलब है कि नवलखा को दिल्ली में 28 अगस्त 2018 को गिरफ्तार किया गया था। अन्य 4 कार्यकर्ताओं को देश के विभिन्न हिस्सों से गिरफ्तार किया गया था लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट ने पुणे पुलिस को दिए साकेत कोर्ट के ट्रांजिट रिमांड को रद्द कर दिया था।
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 29 सितंबर को पांचों कार्यकर्ताओं को फौरन रिहा करने की याचिका खारिज करते हुए कहा था कि यह मामला महज असहमति वाले विचारों या राजनीतिक विचारधारा में अंतर को लेकर गिरफ्तार किए जाने का नहीं है। पीठ ने कहा था कि आरोपी और 4 हफ्ते तक नजरबंद रहेंगे, जिस दौरान उन्हें उपयुक्त अदालत में कानूनी उपाय का सहारा लेने की आजादी है।