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बिना सबूतों का केस : सुप्रीम कोर्ट ने 1984 सिख विरोधी दंगे में सात दोषियों को बरी किया

Live Law Hindi
3 May 2019 2:14 PM GMT
बिना सबूतों का केस : सुप्रीम कोर्ट ने 1984 सिख विरोधी दंगे में सात दोषियों को बरी किया
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"हम अनजानेपन में भरोसा कर लेते हैं कि अभियुक्तों-अपीलकर्ताओं के खिलाफ अभियोजन पक्ष द्वारा जो कहा गया है वो सही है और अच्छा है कि उन्हें गिरफ्तार किया गया, लेकिन यह भी सही है कि अभियुक्त-अपीलार्थी उस कथित अपराध को साबित करने लिए खुद उत्तरदायी नहीं होंगे।”

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में वर्ष 1984 के सिख विरोधी दंगों के मामले में उन 7 लोगों को बरी कर दिया जिन्हें दिल्ली उच्च न्यायालय ने पिछले साल नवंबर में दोषी ठहराया था।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने गणेश और 6 अन्य को भारतीय दंड संहिता की धारा 147, 188 और 436 के तहत दोषी ठहराया था और 5 साल की सजा सुनाई थी। उच्च न्यायालय ने रिज्जू सिंह (PW-2), पतराम (PW-5), शूरवीर सिंह त्यागी (PW-7) और मनफूल सिंह (PW-8) के आरोपियों के खिलाफ दिए गए सबूतों पर पूरी तरह भरोसा किया था।

उनके बयान का जिक्र करते हुए सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने कहा कि उनमें से किसी ने भी यह नहीं बताया है कि ये आरोपी गैरकानूनी जमावड़े का हिस्सा थे या वे किसी भी अपराध में शामिल थे।

"हम अनजानेपन में भरोसा कर लेते हैं कि अभियुक्तों-अपीलकर्ताओं के खिलाफ अभियोजन पक्ष द्वारा जो कहा गया है, वो सही है और अच्छा है कि उन्हें गिरफ्तार किया गया, लेकिन यह भी सही है कि अभियुक्त-अपीलार्थी उस कथित अपराध को साबित करने के लिए खुद उत्तरदायी नहीं होंगे।"

अदालत ने आगे कहा, "वर्तमान में वास्तव में कोई सबूत नहीं है और इसलिए हमारे पास उच्च न्यायालय के आदेश को बनाए रखने के लिए कोई अच्छा आधार नहीं है और इसे रद्द किया जा रहा है।"

अदालत ने कहा कि सामान्य गवाह के रूप में निष्क्रिय गवाहों और मनोरंजन के लिए खड़े लोगों को सामान्य उद्देश्य के लिए गवाह नहीं बनाया जा सकता। पीठ ने कहा कि यदि किसी मामले में 3 विश्वसनीय गवाह नहीं हैं तो अदालतें आमतौर पर कम से कम 2 गवाहों पर जोर देने का विचार करती हैं जो यह साबित करते हैं कि आरोपी जमावड़े के सदस्य थे, जो दंगा, आगजनी, लूटपाट आदि में लिप्त थे। उनकी सजा को रद्द करते हुए पीठ ने अपील को अनुमति दे दी।

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