राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद : SC ने कोर्ट की निगरानी में मध्यस्थता की वकालत की, 6 मार्च को फैसला

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26 Feb 2019 2:06 PM GMT

  • राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद : SC ने कोर्ट की निगरानी में मध्यस्थता की वकालत की, 6  मार्च को फैसला

    राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद शीर्षक विवाद के निपटारे के लिए सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को हिंदू और मुस्लिम पक्षों के बीच मध्यस्थता की वकालत की जिसकी निगरानी अदालत द्वारा की जाएगी।

    चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एस. ए. बोबडे,जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस. अब्दुल नजीर की पीठ ने यह सुझाव देते हुए कहा कि वे 6 मार्च को इस संबंध में उचित आदेश पारित करने पर विचार करेंगे।

    सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति बोबड़े ने कहा, "हम एक संपत्ति विवाद का फैसला कर सकते हैं लेकिन हम दोनो पक्षों के रिश्तों में सुधार के बारे में अधिक सोच रहे हैं। यदि मध्यस्थता की जाती है तो ये गोपनीय तरीके से एवं अदालत की निगरानी में होगी। अयोध्या विवाद सिर्फ एक संपत्ति विवाद से "बहुत अधिक" है।

    उन्होंने आगे कहा, "यह दशकों तक घसीटा गया मामला है। मध्यस्थता के परिणामस्वरूप विवाद का स्थायी समाधान हो सकता है। यहां तक ​​कि अगर सौहार्दपूर्ण समझौते का एक प्रतिशत मौका भी है तो भी इसे आजमाया जाना चाहिए। और मध्यस्थता अदालत के समक्ष लंबित मुकदमे के आसपास होगी। हम इस विकल्प पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं। मध्यस्थता एक गोपनीय प्रक्रिया भी होगी।"

    CJI ने हिन्दू पक्ष की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सी. एस. वैद्यनाथन से कहा, "आप सब को भी पता है कि यह सिर्फ एक संपत्ति पर टाइटल को लेकर विवाद नहीं है। यह निजी संपत्ति पर विवाद नहीं है, बल्कि यह विवाद सार्वजनिक तौर पर पूजा करने के अधिकार को लेकर है ... इस मामले में किसी भी समय मध्यस्थता नहीं की गई। इसलिए हम सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 89 के तहत इस वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं।"

    CJI ने आदेश में कहा है कि अगर अदालत की निगरानी वाली मध्यस्थता का आदेश दिया जाता है, तो ये "अत्यंत गोपनीयता" के साथ किया जाएगा। इस मध्यस्थता में अपील में अदालत के समक्ष उठाए गए मुद्दों का सामना किया जाएगा।

    CJI ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा किए गए दस्तावेजों के अनुवाद की सटीकता और प्रासंगिकता को सत्यापित करने के लिए 8 सप्ताह का समय दिया जा रहा है और इस अवधि का उपयोग सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 89 के तहत मध्यस्थता की संभावना के लिए प्रभावी रूप से किया जा सकता है।

    CJI ने ये आशा भी व्यक्त की कि मध्यस्थता के जरिये इस भूमि पर विवाद के बीच शीर्षक विवाद में एक शांतिपूर्ण अंत प्राप्त किया जा सकता है।

    वरिष्ठ वकील राजीव धवन, दुष्यंत दवे और राजू रामचंद्रन ने मुस्लिम पक्षों की ओर से मध्यस्थता के लिए अपनी इच्छा व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि अदालत ने अगर ऐसा कोई निर्देश दिया तो यह उन्हें स्वीकार्य होगा।

    हालांकि रामलला विराजमान के लिए वरिष्ठ वकील सी. एस. वैद्यनाथन और कुछ हिंदू समूहों के वरिष्ठ वकील रंजीत कुमार ने इस आधार पर मध्यस्थता का विरोध किया कि इससे पहले ऐसी कोशिशों से वांछित परिणाम नहीं आए हैं। वैद्यनाथन ने बताया कि कांची शंकराचार्य ने भी मामले में मध्यस्थता की कोशिश की लेकिन वो सफल नहीं हो सके। लेकिन निर्मोही अखाड़ा के वरिष्ठ वकील सुशील कुमार जैन मध्यस्थता के लिए सहमत हुए।

    अदालत अगले मंगलवार को आदेश पारित करेगी कि क्या इस मुद्दे को न्यायालय द्वारा नियुक्त मध्यस्थ के पास भेजा जाना चाहिए। पक्षकारों को रिकॉर्ड की जांच करने और अपनी आपत्तियों को इंगित करने के लिए न्यायालय द्वारा निर्देशित किया गया। मामले की शुरुआत में ही CJI ने स्पष्ट किया कि सुनवाई तभी शुरू होगी जब पक्षकार यूपी सरकार द्वारा तैयार किए गए अनुवादों को प्रामाणिक मानते हैं।

    शुरुआत में धवन ने कहा, "हमें अनुवाद की प्रामाणिकता की जांच करने की आवश्यकता है। हम बहस शुरु करना चाहते हैं लेकिन हमें अनुवाद से संतुष्ट होना होगा। धवन ने प्रस्तुत किया कि अतीत में कुछ "आदान-प्रदान" हो सकते हैं, लेकिन जरूरी नहीं कि वे अनुवाद की सटीकता पर चर्चा के लिए उपयुक्त हों।"

    लेकिन वैद्यनाथन ने इसका विरोध किया कि अपीलकर्ता एम. सिद्दकी के वकील धवन अपील की सुनवाई में देरी कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि वर्ष 2017 में शीर्ष अदालत द्वारा कई आदेश पारित किए गए थे, जिससे राज्य के अनुवादों की जांच करने और रिपोर्ट करने का अवसर मिला लेकिन 2 साल में उन्होंने कुछ नहीं किया।

    CJI ने वकील से कहा कि अदालत अपील सुनने के लिए अनिश्चित काल तक इंतजार करने का इरादा नहीं रखती है। "हम अनुवाद की प्रामाणिकता के बारे में आपके विवाद पर अपना समय बर्बाद नहीं करेंगे। अनुवादों की प्रामाणिकता पर आम सहमति तक पहुंचना आवश्यक है ताकि बाद में कोई विवाद खड़ा न हो जो अपील में कार्यवाही को रद्द कर देगा," CJI ने कहा। पक्षकारों को सत्यापन प्रक्रिया पूरी होने के लिए 8 सप्ताह का समय दिया गया है।

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