कंप्यूटरों की निगरानी : केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई टाली
Live Law Hindi
3 July 2019 12:27 PM IST

केंद्र सरकार के 10 एजेंसियों को किसी भी कंप्यूटर के सर्विलांस के अधिकार दिए जाने के 20 दिसंबर 2018 के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई टल गई है। मंगलवार को चीफ जस्टिस रंजन गोगोई पीठ ने कहा कि इस मामले को नॉन मिसलेनियस दिन पर सूचीबद्ध किया जाएगा।
इससे पहले 14 जनवरी को इन जनहित याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर 6 हफ्ते में उनकी ओर से जवाब मांगा था।
ये याचिकाएं महुआ मोइत्रा, इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन, श्रेया सिंघल, वकील अमित साहनी और मनोहर लाल शर्मा ने दाखिल की है और इसमें सरकार के इस फैसले को मनमाना करार दे रद्द करने की गुहार लगाई गई है।
याचिका में यह भी कहा गया है कि गृहमंत्रालय इस तरह सर्विलांस का आदेश जारी नहीं कर सकता। इस तरह के किसी भी फैसले को निजता के अधिकार की कसौटी पर तौला जाना चाहिए। केंद्र ने ये आदेश जारी कर आगामी लोकसभा चुनावों के मद्देनजर विपक्ष, सरकार के खिलाफ बोलने वाले व सोचने वालों को चुप कराने की कोशिश की है।
याचिका में आगे इस बात को भी कहा गया है कि ये अघोषित इमरजेंसी है और आजाद भारत में नागरिकों को गुलाम बनाने जैसा है। सरकार को किसी भी ऐसे मामले में किसी नागरिक के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने से रोका जाए क्योंकि ये Cr.PC और फेयर ट्रायल के नियम के खिलाफ है।
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 10 जांच एजेंसियों को यह अधिकार दिया है कि वो किसी भी कंप्यूटर को इंटरसेप्ट कर सकते हैं।जिन जांच एजेंसियों को यह अधिकार दिया है उनमें राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए), खुफिया ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई), राजस्व खुफिया निदेशालय, कैबिनेट सचिव (रॉ), केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड, डायरेक्टरेट ऑफ सिग्नल इंटिलिजेंस (सिर्फ जम्मू एवं कश्मीर, पूर्वोत्तर और असम के सेवा क्षेत्रों के लिए) और दिल्ली पुलिस आयुक्त हैं।
वहीं केंद्र सरकार ने 20 दिसंबर 2018 के अपने फैसले को सही ठहराया है। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने यह कहा है कि इस निगरानी के लिए किसी भी जांच एजेंसी को खुली छूट नहीं दी गई है।
इसके अलावा सूचना और संदेशों के इस तरह की निगरानी से संबंधित रिकॉर्ड हर 6 महीने में नष्ट हो जाना चाहिए और किसी भी पीड़ित व्यक्ति के लिए शिकायत निवारण तंत्र रखा गया है। हालांकि निजता का अधिकार एक महत्वपूर्ण अधिकार है और ये फैसला निष्पक्ष और न्यायपूर्ण है जो राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में है। केंद्र के हलफनामे में जनहित याचिकाओं को खारिज करने के लिए कहा गया है।