कंप्यूटरों की निगरानी : केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई टाली

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3 July 2019 6:57 AM GMT

  • कंप्यूटरों की निगरानी : केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई टाली

    केंद्र सरकार के 10 एजेंसियों को किसी भी कंप्यूटर के सर्विलांस के अधिकार दिए जाने के 20 दिसंबर 2018 के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई टल गई है। मंगलवार को चीफ जस्टिस रंजन गोगोई पीठ ने कहा कि इस मामले को नॉन मिसलेनियस दिन पर सूचीबद्ध किया जाएगा।

    इससे पहले 14 जनवरी को इन जनहित याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर 6 हफ्ते में उनकी ओर से जवाब मांगा था।

    पीठ ने केंद्र के नोटिफिकेशन पर रोक लगाने से किया था इनकार
    चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस संजय किशन कौल की पीठ ने केंद्र सरकार के नोटिफिकेशन पर रोक लगाने से इनकार करते हुए कहा था कि पहले केंद्र सरकार के जवाब को देखेंगे।

    ये याचिकाएं महुआ मोइत्रा, इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन, श्रेया सिंघल, वकील अमित साहनी और मनोहर लाल शर्मा ने दाखिल की है और इसमें सरकार के इस फैसले को मनमाना करार दे रद्द करने की गुहार लगाई गई है।

    याचिका में क्या कहा गया है१
    याचिका में कहा गया है कि गृहमंत्रालय का 20 दिसंबर का आदेश गैरकानूनी, मौलिक अधिकारों का हनन करने वाला और संविधान के विपरीत है। इसलिए इस आदेश को रद्द किया जाना चाहिए।

    याचिका में यह भी कहा गया है कि गृहमंत्रालय इस तरह सर्विलांस का आदेश जारी नहीं कर सकता। इस तरह के किसी भी फैसले को निजता के अधिकार की कसौटी पर तौला जाना चाहिए। केंद्र ने ये आदेश जारी कर आगामी लोकसभा चुनावों के मद्देनजर विपक्ष, सरकार के खिलाफ बोलने वाले व सोचने वालों को चुप कराने की कोशिश की है।

    याचिका में आगे इस बात को भी कहा गया है कि ये अघोषित इमरजेंसी है और आजाद भारत में नागरिकों को गुलाम बनाने जैसा है। सरकार को किसी भी ऐसे मामले में किसी नागरिक के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने से रोका जाए क्योंकि ये Cr.PC और फेयर ट्रायल के नियम के खिलाफ है।

    क्या थी केंद्रीय गृह मंत्रालय की अधिसूचना१
    दरअसल केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक अधिसूचना जारी कर 10 एजेंसियों को कंप्यूटर में रखे डाटा,ऑनलाइन गतिविधियों और दूसरे क्रियाकलापों पर निगरानी के अधिकार दिए हैं। इसके तहत सूचनाओं की निगरानी हो सकती है और इन्हें डीकोड भी किया सकता है। पहले बड़े आपराधिक मामलों में ही कंप्यूटर या ऑनलाइन गतिविधियों पर नजर रखने, जांच और इन्हें जब्त करने की इजाजत थी।

    केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 10 जांच एजेंसियों को यह अधिकार दिया है कि वो किसी भी कंप्यूटर को इंटरसेप्ट कर सकते हैं।जिन जांच एजेंसियों को यह अधिकार दिया है उनमें राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए), खुफिया ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई), राजस्व खुफिया निदेशालय, कैबिनेट सचिव (रॉ), केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड, डायरेक्टरेट ऑफ सिग्नल इंटिलिजेंस (सिर्फ जम्मू एवं कश्मीर, पूर्वोत्तर और असम के सेवा क्षेत्रों के लिए) और दिल्ली पुलिस आयुक्त हैं।

    किसी के कंप्यूटर में स्टोर डाटा की निगरानी और डिक्रिप्ट करने का 10 केंद्रीय एजेंसियों को अधिकार दिए जाने के गृह मंत्रालय के फैसले पर चारों ओर से प्रतिक्रियाएं आती रही हैं।

    अधिसूचना के लिए गृह मंत्रालय द्वारा दिया गया तर्क

    वहीं गृह मंत्रालय का यह कहना है कि ये आदेश सूचना एवं तकनीकी एक्ट में मौजूद विसंगतियों को दूर करके देश की सुरक्षा के लिए खतरा बने आतंकियों के डेटा को एक्सेस करने के लिए दिया गया है।

    वहीं केंद्र सरकार ने 20 दिसंबर 2018 के अपने फैसले को सही ठहराया है। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने यह कहा है कि इस निगरानी के लिए किसी भी जांच एजेंसी को खुली छूट नहीं दी गई है।

    "कानून में पर्याप्त सुरक्षा उपाय हैं मौजूद"
    केंद्र ने यह कहा है कि कानून में पर्याप्त सुरक्षा उपाय हैं ताकि संबंधित एजेंसियों को 'जासूसी' का सहारा लेने से पहले पूर्व स्वीकृति लेने में सक्षम बनाया जा सके। सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम में केंद्रीय गृह मंत्रालय की पूर्व स्वीकृति की आवश्यकता है और इस तरह की निगरानी को भारत की संप्रभुता या अखंडता की रक्षा, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध या सार्वजनिक व्यवस्था या उकसावे को रोकने में किया जाएगा।

    "किसी भी एजेंसी को नहीं है खुली छूट"
    केंद्र ने यह कहा कि एजेंसियों को स्पष्ट कर दिया है कि अधिनियम में उल्लिखित सुरक्षा उपायों का पालन सूचना की निगरानी या डिक्रिप्शन के लिए किया जाना चाहिए। किसी भी एजेंसी को कोई खुली छूट की अनुमति नहीं है और प्रत्येक मामले में कानून की उचित प्रक्रिया और प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए।

    इसके अलावा सूचना और संदेशों के इस तरह की निगरानी से संबंधित रिकॉर्ड हर 6 महीने में नष्ट हो जाना चाहिए और किसी भी पीड़ित व्यक्ति के लिए शिकायत निवारण तंत्र रखा गया है। हालांकि निजता का अधिकार एक महत्वपूर्ण अधिकार है और ये फैसला निष्पक्ष और न्यायपूर्ण है जो राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में है। केंद्र के हलफनामे में जनहित याचिकाओं को खारिज करने के लिए कहा गया है।

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