जस्टिस नरीमन और जस्टिस चंद्रचूड़ के जस्टिस बोबडे से मिलने की खबरें पूरी तरह गलत : सुप्रीम कोर्ट सेकेट्री जनरल

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6 May 2019 7:55 AM GMT

  • जस्टिस नरीमन और जस्टिस चंद्रचूड़ के जस्टिस बोबडे से मिलने की खबरें पूरी तरह गलत : सुप्रीम कोर्ट सेकेट्री जनरल

    सुप्रीम कोर्ट ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि जस्टिस आर. एफ. नरीमन और जस्टिस डी. वाइ. चंद्रचूड़ की जस्टिस एस. ए. बोबडे से मुलाकात की खबरें गलत हैं।

    बयान में लिखा गया है:
    "यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक प्रमुख समाचार पत्र ने यह बताया है कि न्यायमूर्ति आर. एफ. नरीमन और न्यायमूर्ति डी. वाइ. चंद्रचूड़ ने शुक्रवार शाम को न्यायमूर्ति एस. ए. बोबडे से मुलाकात की। यह 3 मई 2019 को हुआ। यह पूरी तरह से गलत है।"

    सुप्रीम कोर्ट के सेकेट्री जनरल ने कहा कि इन-हाउस समिति जो CJI के विषय में विचार-विमर्श कर रही है, सुप्रीम कोर्ट के किसी अन्य जज के इनपुट के बिना स्वयं मामले पर विचार-विमर्श कर रही है।

    अखबार द्वारा प्रस्तुत की गई खबर
    इससे पहले इंडियन एक्सप्रेस ने बताया था कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस आर. एफ. नरीमन ने न्यायमूर्ति बोबडे की अध्यक्षता वाले जांच पैनल के फैसले के बारे में अपनी आपत्तियां व्यक्त की हैं, जो भारत के मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोपों की जांच के लिए एक-पक्षीय कार्यवाही कर रहा है।

    सूत्रों का हवाला देते हुए यह बताया गया है कि दोनों न्यायाधीशों ने जस्टिस बोबड़े, जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस इंदिरा बनर्जी के जांच पैनल से मुलाकात की और शिकायतकर्ता के कार्यवाही में भाग लेने से इंकार करने के निर्णय के बावजूद जांच जारी रखने के बारे में अपनी चिंताओं पर चर्चा की। दोनों ने कहा कि ऐसी प्रक्रिया "सुप्रीम कोर्ट के नाम को चोट पहुंचाती है।"

    पीड़ित महिला कर चुकी है पैनल कार्यवाही में भाग न लेने का फैसला
    इससे पहले, यह कहते हुए कि इन-हाउस कमेटी का माहौल "भयावह" है, भारत के मुख्य न्यायाधीश पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली महिला ने इस पैनल के सामने चल रही कार्यवाही में भाग ना लेने का फैसला किया था। एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर उसने कहा कि वो सुप्रीम कोर्ट के 3 न्यायाधीशों की उपस्थिति में और वकील या समर्थन वाले व्यक्ति के बिना डरी और घबराई हुई महसूस करती है।

    उसने यह भी उल्लेख किया है कि उसके मामले के गवाह न्यायालय के कर्मचारी हैं और उनकी समिति के सामने बिना किसी डर के पेश होने की कोई संभावना नहीं दिखती है। साथ ही उन्होंने असंतोष व्यक्त किया कि कार्यस्थल अधिनियम (महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न की रोकथाम) 2013 और विशाखा मामले के दिशानिर्देशों के तहत पैनल के गठन में प्रक्रिया का पालन करने की उनकी मांग को संबोधित नहीं किया गया।





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