हिरासत केंद्र : असम के हलफनामे से नाराज हुआ सुप्रीम कोर्ट, कहा मुख्य सचिव के खिलाफ करेंगे कार्रवाही
Live Law Hindi
26 April 2019 9:43 AM IST
सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को उस समय नाराज हो गया जब असम के मुख्य सचिव आलोक कुमार ने अदालत में हलफनामा दायर कर कहा कि वे सभी व्यक्ति जो विदेशी नागरिकों की हैसियत से हिरासत केंद्रों में रह रहे हैं उन्हें श्योरटी और बायोमेट्रिक विवरण प्राधिकरण को देने के बाद रिहा किया जा सकता है।
"आपकी सरकार संविधान का पालन नहीं करती है। आप हमसे कैसे उम्मीद करते हैं कि विदेशी घोषित किए गए नागरिकों को इस देश में रहने के लिए अनुमति देने के लिए भारत का सर्वोच्च न्यायालय अवैध आदेश का पक्ष लेगा?" नाराज CJI ने मुख्य सचिव से पूछा।
जब सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता कुछ प्रस्तुत करने के लिए उठे तो CJI ने उन्हें यह कहते हुए सुनने से इनकार कर दिया कि वो मुख्य सचिव से इस मामले में स्पष्टीकरण की मांग करेंगे।
"आप मानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट एक अवैध आदेश के लिए पक्षकार है?आपके पास पद पर बने रहने का कोई अधिकार नहीं। हम आपके खिलाफ विभागीय कार्रवाई का आदेश देंगे," जस्टिस गोगोई ने मुख्य सचिव से कहा।
"सबसे पहले उन्हें हिरासत केंद्रों में नहीं होना चाहिए। 1 लाख से अधिक लोग राज्य की आबादी में घुलमिल हो चुके हैं। ज्यादातर के नाम मतदाता सूची में हैं। वे मतदान कर रहे हैं। देश की चुनाव प्रक्रिया में भाग ले रहे हैं जबकि उन्हें विदेशी नागरिक घोषित किया गया है। आपका मुख्य सचिव बहुत गंभीर संकट में है," जस्टिस गोगोई ने कहा।
इस दौरान अमिक्स क्यूरी के रूप में गौरव बनर्जी ने कहा कि विदेशियों के मूल देशों की पहचान होनी चाहिए और उन्हें वापस भेजने के लिए निर्वासितों का सहयोग भी लिया जाना चाहिए।
CJI ने हालांकि कहा कि विदेशी नागरिकों से सहयोग की उम्मीद करना अतार्किक होगा जबकि खुद सरकार ही पिछले 4 दशकों से उनका निर्वासन करने में विफल रही है।
इसके बाद मुख्य सचिव ने तब हलफनामे में संशोधन कर नए प्रस्ताव के साथ फिर से आने की पेशकश की तो CJI ने व्यंग्यात्मक रूप से कहा, ".. आप हिरासत केंद्रों को पाँच सितारा होटल बनाएंगे ताकि वे आराम से रह सकें !"
इसके बाद मेहता की ओर मुड़ते हुए CJI ने कहा, "ये आदमी (कुमार) कुछ भी नहीं जानते हैं। वह बस डॉटेड लाइन पर हस्ताक्षर करते हैं। यह गंभीर समस्या है।"
वहीं याचिकाकर्ता हर्ष मंदर के लिए उपस्थित वकील प्रशांत भूषण ने हस्तक्षेप कर दलीलें देने की कोशिश की लेकिन पीठ ने उनकी बात सुनने से इनकार कर दिया और इसके बाद पीठ ने मामले की सुनवाई बंद कर दी।