तीन तलाक को अपराध बनाने वाला अध्यादेश बना रहेगा, सुप्रीम कोर्ट ने दखल देने से इनकार किया

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25 March 2019 11:35 AM GMT

  • तीन तलाक को अपराध बनाने वाला अध्यादेश बना रहेगा, सुप्रीम कोर्ट ने दखल देने से इनकार किया

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को तीन तलाक की प्रथा को दंडनीय अपराध बनाने वाले अध्यादेश की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने केरल के एक संगठन द्वारा इस संबंध में दाखिल की गयी याचिका को खारिज करते हुए कहा कि पीठ इस मामले में हस्तक्षेप करना पसंद नहीं करेगी।

    मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अध्यादेश को पहली बार पिछले साल 19 सितंबर को अधिसूचित किया गया था और केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इसे मंजूरी दे दी थी। तीन तलाक जिसे 'तलाक-ए-बिद्दत' के रूप में भी जाना जाता है, एक त्वरित तलाक है, जिसके तहत एक मुस्लिम व्यक्ति अपनी पत्नी को एक बार में तीन बार 'तलाक' शब्द बोलते हुए तलाक दे सकता है।

    इस प्रथा को दंडनीय बनाने वाला अध्यादेश 21 फरवरी को तीसरी बार पारित किया गया था। इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट ऐसी ही एक याचिका को खारिज कर चुका है। 22 अगस्त 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने एक एेतिहासिक फैसले में मुस्लिम समुदाय में 1400 सालों से चल रहे तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) के प्रचलन को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया था। कोर्ट ने कहा कि तीन तलाक मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।

    5 जजों की संविधान पीठ ने बहुमत (3:2) के आधार पर दिए गए इस फैसले में कहा था कि तीन तलाक साफ तौर पर मनमाना है क्योंकि इसके तहत मुस्लिम पुरुष वैवाहिक संबंधों को खत्म करने की इजाजत देता है वह भी संबंध को बचाने का प्रयास करने के बगैर। लिहाजा संविधान के अनुच्छेद-25 यानी धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के तहत इस प्रथा को संरक्षण नहीं दिया जा सकता।

    जस्टिस कूरियन जोसफ, जस्टिस रोहिंग्टन एफ. नरीमन और जस्टिस यू. यू. ललित ने जहां तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया था तो वहीं तत्कालीन चीफ जस्टिस जे. एस. खेहर और जस्टिस एस. अब्दुल नजीर ने ट्रिपल तलाक को अनुच्छेद-25 का अहम हिस्सा बताया। इनका कहना था कि 1400 वर्षों से चली आ रही प्रथा अब धर्म का हिस्सा बन गई है।

    जस्टिस कूरियन जोसफ ने अपने फैसले में कहा था कि तीन तलाक इस्लाम धर्म का मूल तत्व नहीं है। यह कुरान का हिस्सा नहीं है। उन्होंने कहा 'कुरान में जिस पर पाबंदी है, शर्रियत में उसे अच्छा नहीं कहा जा सकता। धर्मशास्त्र में जो जिस पर पाबंदी है और कानून की नजर में वह अच्छा नहीं हो सकता। उन्होंने कहा था कि तीन तलाक प्रथा शर्रियत के भी खिलाफ है।

    चीफ जस्टिस जे. एस. खेहर के नजरिए से उलट जस्टिस जोसफ ने कहा कि महज इसलिए कि कोई प्रथा 1400 वर्षों से चली आ रही है उसे अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षण नहीं दिया जा सकता।

    वहीं जस्टिस रोहिंग्टन एफ. नरीमन और जस्टिस यू. यू. ललित ने अपने फैसले में कहा था कि अगर मुस्लिम महिलाएं न्याय के लिए अदालत के पास आए तो कोर्ट हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठ सकती। उन्होंने कहा कि पति-पत्नी के संबंधों को सुधारने का प्रयास किए बिना एक झटके में तीन तलाक बोलकर वैवाहिक संबंध को तोडऩा भारतीय संविधान के अनुच्छेद-14 यानी समानता के अधिकार का उल्लंघन है। वैवाहिक संबंध के टूटने से पहले दोनों परिवारों के बीच मध्यस्थता का प्रयास जरूरी है।

    वहीं चीफ जस्टिस जे. एस. खेहर और जस्टिस एस. अब्दुल नजीर ने अपने फैसले में तीन तलाक को संविधान के अनुच्छेद-25 का हिस्सा बताया था। साथ ही कहा था कि यह अनुच्छेद-14, 19 और 21 का उल्लंघन नहीं करता। हालांकि इन्होंने इस मसले को विधायिका के पाले में डाल दिया और कहा था कि सरकार 6 महीने में इसे लेकर कानून बनाए तब तक तीन तलाक पर रोक रहेगी।

    संविधान पीठ ने यह ऐतिहासिक फैसला शायरा बानो, इशरत जहां सहित 5 मुस्लिम महिलाओं द्वारा दायर याचिका पर दिया था। वर्ष 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए मुस्लिम समुदाय में प्रचलित तीन तलाक, बहुविवाह और निकाह हलाला आदि को जनहित याचिका में तब्दील कर दिया था।

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