असम के हिरासत केंद्रों पर सुप्रीम कोर्ट ने फिर सरकार पर जताई नाराजगी, कहा ये क्या मजाक है ?
Live Law Hindi
13 March 2019 8:54 PM IST
असम के हिरासत केंद्र में रखे गए बंदियों को लेकर दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट ने अवैध प्रवासियों के मुद्दे पर असम सरकार के रवैए पर नाराजगी जताई है।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने असम सरकार को यह सूचित करने का निर्देश दिया है कि राज्य में बाहरी व्यक्तियों को रोकने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं। पीठ ने कहा, "वर्ष 2005 के अपने फैसले में हमने कहा था कि असम राज्य बाहरी आक्रमण का सामना कर रहा है। इससे निपटने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं? हम जानना चाहते हैं।"
असम सरकार से नाराज सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "यह मामला अब बहुत दूर चला गया है और मजाक बन गया है। हमें यह भी नहीं बताया गया है कि अब तक कितने विदेशियों का पता चला है।"
पीठ ने अदालत में राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाले सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की सहायता के लिए असम के अधिकारियों की अनुपस्थिति की ओर इशारा करते हुए कहा, "यह दर्शाता है कि राज्य इस मामले में कितनी गंभीरता से विचार कर रहा है, अदालत में कोई भी अधिकारी उपस्थित नहीं है।"
अदालत ने असम सरकार को हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया जिसमें उनको यह बताना है कि कितने न्यायाधिकरण कार्य कर रहे हैं और क्या ये पर्याप्त हैं या राज्य की अधिक जरूरत है। हिरासत केंद्रों में विदेशियों की संख्या कितनी है और उनके खिलाफ कितने मामले लंबित हैं।
असम सरकार ने बताया कि 6 हिरासत केंद्रों में 900 विदेशी रखे गए हैं तो पीठ ने असम से कहा, ''आप 900 लोगों के मूल अधिकारों से निपटने में असमर्थ हैं।" असम सरकार को 27 मार्च तक जवाब देना है और उसी दिन मामले की सुनवाई होनी है।
गौरतलब है कि 19 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने राज्य में गैरकानूनी विदेशियों की पहचान करने और निर्वासित करने में नाकामी पर भी असम सरकार को फटकार लगाई थी।
पीठ ने असम सरकार को अवैध विदेशियों के निर्वासन पर विदेश मंत्रालय और केंद्रीय गृह मंत्रालय के साथ विचार-विमर्श करने का निर्देश दिया था। पीठ ने कहा था कि किसी व्यक्ति की हिरासत आखिरी विकल्प होना चाहिए।
इससे पहले 28 जनवरी को पीठ ने असम सरकार से पूछा था कि पिछले 10 वर्षों में असम से कितने विदेशी निर्वासित किए गए हैं।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने असम सरकार को 3 सप्ताह के भीतर ये जानकारी देने का निर्देश दिया था कि असम में कितने हिरासत केंद्र हैं और इनमें कितने बंदी मौजूद हैं। इसके अलावा ट्रिब्यूनल ने कितने को विदेशी घोषित किया है। कितने बंदियों को निर्वासित किया जा रहा है और कितने को पहले ही निर्वासित किया जा चुका है। इन बंदियों के खिलाफ कितने मामले लंबित हैं।
इस दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश प्रशांत भूषण ने कहा था कि केंद्रों पर कुछ विदेशियों को सजा काटने के बाद भी हिरासत में रखा गया है जबकि असम सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि 986 व्यक्तियों को विदेशी घोषित किया गया है।
इस पर चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा था कि अगर कैदियों को विदेशी देश द्वारा स्वीकार नहीं किया जाता तो उन्हें हिरासत केंद्रों में भी नहीं रखा जा सकता।
20 सितंबर 2018 को संविधान के अनुच्छेद 21 और अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुरूप असम के हिरासत केंद्रों में रखे गए करीब 2,000 बंदियों के साथ निष्पक्ष, मानवीय और वैध उपचार को सुनिश्चित करने के लिए हर्ष मंदर द्वारा दाखिल जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और असम सरकार को नोटिस जारी किया था।
इसमें ये दिशा निर्देश भी मांगा गया है कि जो लोग सरकार द्वारा विदेशी तय किए गए हैं और प्रत्यावर्तन लंबित रहते हिरासत में हैं, उन्हें शरणार्थियों के रूप में माना जाना चाहिए।
माता-पिता के हिरासत में होने पर जो बच्चे आजाद हैं उनकी पीड़ा और दुर्दशा को इंगित करते हुए याचिकाकर्ता चाहते हैं कि उन्हें किशोर न्याय अधिनियम के तहत देखभाल और सुरक्षा (सीएनसीपी) की आवश्यकता वाले बच्चों के रूप में माना जाए; जिला या उप-जिला स्तर पर स्थापित बाल कल्याण समितियों द्वारा ऐसे बच्चों का संज्ञान लिया जाए।
याचिकाकर्ता ने रिट याचिका के माध्यम से कहा है कि वो वर्तमान में असम में 6 हिरासत केंद्रों/जेलों में रखे गए लोगों के मौलिक अधिकारों और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त मानवाधिकारों के उल्लंघन का निवारण करना चाहते हैं जिन्हें या तो असम में विदेशियों के ट्रिब्यूनल द्वारा विदेशियों के रूप में घोषित किया गया है या बाद में अवैध रूप से भारत में प्रवेश करने के लिए हिरासत में लिया गया है।