रामजन्मभूमि- बाबरी मस्जिद शीर्षक विवाद को सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता के लिए भेजा, पैनल नियुक्त
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8 March 2019 1:48 PM IST
रामजन्मभूमि- बाबरी मस्जिद शीर्षक विवाद मामले को सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता के लिए भेज दिया है। शुक्रवार को दिए फैसले में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एस. ए. बोबडे, डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस. अब्दुल नजीर की 5 जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाते हुए शीर्ष अदालत के पूर्व जज जस्टिस एफ. एम. आई. कलीफुल्ला की अध्यक्षता में आध्यात्मिक नेता श्री श्री रविशंकर और वरिष्ठ वकील श्रीराम पंचू को मध्यस्थता पैनल का सदस्य नियुक्त किया। पंचू एक अनुभवी वकील हैं जिनके पास वैकल्पिक विवाद के समाधान का अनुभव है।
अयोध्या विवाद मध्यस्थता उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले में 1 सप्ताह के समय में शुरू होगी जिसमें अयोध्या में विवादित क्षेत्र का हिस्सा है। पीठ ने कहा कि इसे "अत्यंत गोपनीयता" के साथ आयोजित किया जाएगा। अदालत ने आदेश दिया कि मध्यस्थता की प्रक्रिया पर प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक में कोई रिपोर्टिंग नहीं होगी। मध्यस्थता के लिए दिया गया समय 8 सप्ताह का है लेकिन अदालत ने मध्यस्थों से "जल्द से जल्द निष्कर्ष निकालने" का आग्रह किया। मध्यस्थों को 4 सप्ताह में अदालत में स्थिति रिपोर्ट दाखिल करनी होगी।
अदालत ने कहा कि अयोध्या विवाद मध्यस्थ, यदि आवश्यक हो तो पैनल में अधिक सदस्य शामिल कर सकते हैं और वे उनके लिए आवश्यक कानूनी सहायता ले सकते हैं। उत्तर प्रदेश सरकार मध्यस्थों को फैजाबाद में सभी आवश्यक सुविधाएं प्रदान करेगी। मध्यस्थता इन कैमरा आयोजित की जाएगी।
अदालत ने माना है कि अयोध्या विवाद को मध्यस्थता के लिए भेजने के लिए कोई "कानूनी बाधा" नहीं है। पीठ ने विवादित क्षेत्र के शीर्षक (Title) के लिए लंबे समय से लंबित सिविल विवाद में 'समझौता डिक्री' पर पहुंचने के प्रयास के लिए सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 23 नियम 3 का हवाला दिया।
इस प्रावधान के अनुसार यदि मामले के पक्षकार किसी समझौते पर पहुंचते हैं तो सुप्रीम कोर्ट इस तरह के समझौते को दर्ज करने का आदेश दे सकता है और पक्षकारों के बीच प्रस्ताव को स्वीकार करने वाली डिक्री पारित कर सकता है।
दरअसल बीते 6 मार्च को ही संविधान पीठ ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था कि इस मामले में मध्यस्थता के आदेश दिए जाएं या नहीं। हालांकि इस दौरान ज्यादातर हिंदू पक्षकारों ने मध्यस्थता का विरोध किया और कहा कि ये मामला सिर्फ संपत्ति विवाद से जुड़ा नहीं है बल्कि विश्वास और भावनाओं से संबंधित भी है, वहीं मामले के मुस्लिम पक्षकार मध्यस्थता के लिए तैयार है।
सुनवाई के दौरान रामलला विराजमान की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सी. एस. वैद्यानाथन ने कहा कि अयोध्या ही राम की जन्मभूमि है। मस्जिद के लिए वो किसी और जगह के लिए मुआवजा देने को तैयार हैं। अखिल भारतीय हिंदू महासभा ने भी मध्यस्थता के विरोध में आवाज उठाई।
उन्होंने प्रस्तुत किया कि यदि मध्यस्थता का आदेश दिया जाता है तो आम जनता को नागरिक प्रक्रिया संहिता के आदेश 1 नियम 8 के तहत सार्वजनिक नोटिस जारी करने के बाद भाग लेने की अनुमति दी जानी चाहिए। वहीं निर्मोही अखाड़ा ने मध्यस्थता को स्वीकार किया।
दूसरी ओर मुस्लिम समूहों ने मध्यस्थता में भाग लेने की इच्छा व्यक्त की। मुस्लिम पक्ष व सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने दलील दी कि सभी पक्षों की सहमति के लिए कोर्ट की ओर से सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 89 के तहत मध्यस्थता के लिए पक्षों का उल्लेख करने की आवश्यकता नहीं है।
इस दौरान न्यायमूर्ति एस. ए. बोबड़े ने मौखिक रूप से पीठ की ओर से टिप्पणी की कि न्यायालय विवाद की गंभीरता और "राजनीतिक पार्टियों" पर इसके प्रभाव के प्रति सचेत है। ये प्रयास (मध्यस्थता) "संबंधों में सुधार" करने के लिए है। उन्होंने आश्वासन दिया कि यदि मामला मध्यस्थता के लिए भेजा जाता है तो मामले में गोपनीयता बनाए रखी जाएगी और उन्होंने यह भी संकेत दिया कि अदालत मध्यस्थता प्रक्रिया पर मीडिया रिपोर्टिंग पर प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रही है।
हालांकि, न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ को मध्यस्थता प्रक्रिया के प्रभाव पर शंका थी। उन्होंने आश्चर्य व्यक्त किया कि मध्यस्थता का समझौता कैसे दोनों पक्षों के लाखों लोगों पर प्रभावी हो सकता है, क्योंकि यह मुद्दा केवल दो पक्षों के बीच का विवाद नहीं है। उसी समय उन्होंने व्यक्त किया कि इस मामले में पक्षकारों के बीच समझौता ही 'वांछनीय' है।
इस मौके पर जस्टिस बोबड़े ने व्यक्त किया कि कोर्ट की डिक्री सभी पक्षों पर बाध्यकारी होती है तो मध्यस्थता का फैसला भी सभी पक्षों पर बाध्यकारी होगा।
वहीं उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने यह कहते हुए मध्यस्थता का विरोध किया कि इन परिस्थितियों में ये "विवेकपूर्ण और उचित" नहीं है।
मेहता की दलील का राजीव धवन ने विरोध करते हुए कहा कि यूपी सरकार इस मामले में विचार नहीं कर सकती। सभी पक्षों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता के मुद्दे पर अपना फैसला सुरक्षित रखा। सभी पक्षों को बुधवार को ही मध्यस्थों की सूची देने के लिए कहा गया है।
इससे पहले 26 फरवरी को राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद शीर्षक विवाद के निपटारे के लिए सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू और मुस्लिम पक्षों के बीच मध्यस्थता की वकालत की थी जिसकी निगरानी अदालत द्वारा किया जाना तय हुआ था।
इस सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति बोबड़े ने कहा था, "हम एक संपत्ति विवाद का फैसला तो कर सकते हैं लेकिन हम रिश्तों में सुधार के बारे में अधिक सोच रहे हैं। यदि मध्यस्थता की जाएगी तो इसकी प्रक्रिया गोपनीय होगी और अदालत की निगरानी में होगी। अयोध्या विवाद सिर्फ एक संपत्ति विवाद से "बहुत अधिक" है। यह दशकों तक घसीटा गया मामला है।
मध्यस्थता के परिणामस्वरूप विवाद का स्थायी समाधान हो सकता है। यहां तक कि अगर सौहार्दपूर्ण समझौते का एक प्रतिशत मौका भी है तो भी इसे आजमाया जाना चाहिए। और मध्यस्थता अदालत के समक्ष लंबित मुकदमे के आसपास होगी। हम इस विकल्प पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं। मध्यस्थता एक गोपनीय प्रक्रिया भी होगी।"
CJI ने हिन्दू पक्ष की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सी. एस. वैद्यनाथन से कहा था, "आप सब को भी पता है कि यह सिर्फ एक संपत्ति पर शीर्षक को लेकर विवाद नहीं है। यह निजी संपत्ति पर विवाद नहीं है, बल्कि यह विवाद सार्वजनिक तौर पर पूजा करने के अधिकार को लेकर है ... इस मामले में किसी भी समय मध्यस्थता नहीं की गई। इसलिए हम सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 89 के तहत इस वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं। "
CJI ने अपने आदेश में कहा कि अगर अदालत की निगरानी वाली मध्यस्थता का आदेश दिया जाता है, तो ये "अत्यंत गोपनीयता" के साथ किया जाएगा। इस मध्यस्थता में अपील में अदालत के समक्ष उठाए गए मुद्दों का सामना किया जाएगा।
CJI ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा किए गए दस्तावेजों के अनुवाद की सटीकता और प्रासंगिकता को सत्यापित करने के लिए 8 सप्ताह का समय दिया जा रहा है और इस अवधि का उपयोग नागरिक प्रक्रिया संहिता की धारा 89 के तहत मध्यस्थता की संभावना के लिए प्रभावी रूप से किया जा सकता है। CJI ने ये आशा भी व्यक्त की थी कि मध्यस्थता इस भूमि पर विवाद के बीच शीर्षक विवाद का एक शांतिपूर्ण अंत हो सकता है।
वरिष्ठ वकील राजीव धवन, दुष्यंत दवे और राजू रामचंद्रन ने मुस्लिम पक्षों की ओर से मध्यस्थता के लिए अपनी इच्छा व्यक्त की थी। उन्होंने कहा था कि अगर अदालत ने ऐसा कोई निर्देश दिया तो उन्हें स्वीकार है।
हालांकि रामलला विराजमान के लिए वरिष्ठ वकील सी. एस. वैद्यनाथन और कुछ हिंदू समूहों के वरिष्ठ वकील रंजीत कुमार ने इस आधार पर मध्यस्थता का विरोध किया था कि इससे पहले वांछित परिणाम नहीं आए हैं। पक्षकारों को सत्यापन प्रक्रिया पूरी होने के लिए 8 सप्ताह का समय दिया गया है।