राम जन्मभूमि-बाबरी विवाद: निर्मोही अखाड़ा ने सुप्रीम कोर्ट में केंद्र की गैर-विवादित भूमि को वापस करने की इजाजत की याचिका का विरोध किया
Live Law Hindi
9 April 2019 8:19 PM IST
रामजन्मभूमि- बाबरी मस्जिद विवाद मामले में निर्मोही अखाड़ा एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है। अखाड़ा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर केंद्र सरकार की उस याचिका का विरोध किया है जिसमें अयोध्या में अधिग्रहीत की गई अतिरिक्त जमीन को वापस देने की अनुमति मांगी गई है।
अखाड़ा ने कहा कि केंद्र सरकार जानबूझकर इस ज़मीन की रिहाई चाहती है, जिसमें निर्मोही अखाड़ा का भी योगदान है और उसकी इसमें काफी रुचि भी है।
निर्मोही अखाड़ा ने कहा कि यह ज्ञात नहीं है कि मामले की अपील में अंततः कौन सा पक्षकार सफल होगा और इसलिए वर्तमान में इस भूमि का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता है। निर्मोही अखाड़ा ने जमीन के एक हिस्से में दावा किया है इसलिए उसे वापस करने की मांग की गई है।
सुप्रीम कोर्ट के सामने लंबित अपील पर अखाड़ा ने प्रस्तुत किया कि 67 एकड़ भूमि में से लगभग 42 एकड़ भूमि का अधिग्रहण अयोध्या अधिनियम, 1993 में किया गया जिसे कथित रूप से धोखाधड़ी के आधार पर उक्त न्यास को किया गया था। इसका दावा करने वाला एक मुकदमा फैजाबाद में मुंसिफ की अदालत में अभी लंबित है।
याचिका में कहा गया कि वर्ष 1992 के फैसले को कभी चुनौती नहीं दी गई और यह अंतिम हो गया था। इसके परिणामस्वरूप विवादित संपत्तियों और ध्वस्त मंदिरों को बहाल किया जाना चाहिए क्योंकि वे अधिग्रहण से पहले मौजूद थे। ऐसे में केंद्र को ये जमीन किसी को भी वापस करने के लिए नहीं दी जा सकती है। अखाड़ा ने ये भी कहा है कि रामजन्मभूमि न्यास को अयोध्या में बहुमत की जमीन नहीं दी जा सकती।
केंद्र की अर्जी के मुताबिक केंद्र ने अयोध्या में 67.703 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था, जिसमें उस भूखंड को भी शामिल किया गया था, जहां बाबरी मस्जिद के नाम से जाना जाने वाला ढांचा भी शामिल था। यह जमीन अयोध्या अधिनियम, 1993 के तहत अधिग्रहीत की गई।
0.313 एकड़ भूमि से संबंधित है यह विवाद
विवाद केवल 0.313 एकड़ भूमि से संबंधित है, जहां बाबरी मस्जिद खड़ी थी, तो अतिरिक्त भूमि को उसके सही मालिकों को वापस करने की अनुमति दी जानी चाहिए। इसमें 42 एकड़ भूमि रामजन्मभूमि न्यास की है।
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के वर्ष 2003 के असलम भूरे बनाम राजेंद्र बाबू मामले में फैसले को संशोधित करने की मांग की है जिसमें कहा गया था कि अतिरिक्त जमीन को असल विवाद के निपटारे के बाद वापस किया जाएगा। 15 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को संविधान पीठ को भेज दिया था।