जीने के अधिकार की रक्षा करने के लिए पर्यावरण की सेहत है जरूरी -ग्रीनफिल्ड इंटरनेशनल एयरपोर्ट को दी गई ईसी को सुप्रीम कोर्ट ने किया सस्पेंड [निर्णय पढ़े]

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5 April 2019 9:32 AM GMT

  • जीने के अधिकार की रक्षा करने के लिए पर्यावरण की सेहत है जरूरी -ग्रीनफिल्ड इंटरनेशनल एयरपोर्ट को दी गई ईसी को सुप्रीम कोर्ट ने किया सस्पेंड [निर्णय पढ़े]

    सुप्रीम कोर्ट ने ग्रीनफिल्ड इंटरनेशनल एयरपोर्ट, मोपा (गोवा) के विकास के लिए दी गई इंवायरमेंटल क्लीयरेंस(ईसी) को सस्पेंड कर दिया है।

    जस्टिस डी.वाई चंद्राचूड़ व जस्टिस हेमंत गुप्ता ने एक्सपर्ट अपरेजल कमेटी(ईएसी) को निर्देश दिया है कि क्लीयरेंस देने के लिए उन्होंने जो अनुशंसाए दी है,उन पर फिर से विचार करे।

    पर्यावरण संचालन के इलाके में आय से साधन उतने की जरूरी है,जितना उनका अंत। ऐसे में प्रक्रिया संबंधी निर्णय उतने ही जरूरी है,जितने अंतिम निर्णय होते है। खंडपीठ ने कहा कि ईसी जारी करते समय कई प्रक्रियात्मक कमियां की गई है। पब्लिक प्रोजेक्ट की जरूरत उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी की इंटरनेशनल एयरपोर्ट की। इस बात को सुनिश्चित किया जाए कि इस तरह के विकास की प्रक्रिया में राज्य के पर्यावरण को संरक्षित करने के महत्व पर भी विचार किया गया हो।

    कोर्ट ने कहा कि ईएसी इस मामले पर फिर से विचार करे और उसके बाद भी अगर निर्माण की अनुमति दी जाती है तो कुछ ऐसी अतिरिक्त शर्ते लगा दी जाए तो एक्टपर्ट को उचित लगे ताकि उस इलाके के इको सिस्टम को बचाया जा सके।

    नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने पूर्व में ईसी को सही ठहराया था परंतु कुछ अतिरिक्त शर्त लगा दी थी ताकि पर्यावरण को सुरक्षित किया जा सके। एनजीटी के आदेश को हनुमान लक्ष्मण अरोसकर एंड फेडरेशन आॅफ रेनबो वारियरस ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष चुनौती दी थी। वकील अनिथा सिनोय ने याचिकाकर्ताओं की तरफ से दलील दी कि ईसी जारी करते समय कई प्रक्रित्याओं का सही से पालन नहीं किया गया है। अॅटार्नी जनरल के.के वेणुगोपाल ने प्रतिवादी की तरफ से पेश होते हुए दलील दी कि मोपा में इंटरनेशनल एयरपोर्ट बनाने के लिए रूपरेखा लगभग दो दशक पहले तैयार कर ली गई थी। वहां पर एयरपोर्ट बनाने की बहुत ज्यादा जरूरत है। इस समय डबोलिम में स्थित एयरपोर्ट की कैपिस्टी पूरी हो चुकी है और वहां से नई उड़ानों के लिए कोई स्थान नहीं है। जबकि गोवा में आने वाले यात्रियों की संख्या बढ़ रही है।

    विस्तृत फैसले में जस्टिस डी.वाई चंद्रचूड़ व जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा कि ईसी को जारी करते समय कई प्रक्रियात्मक गलती की गई है। कोर्ट ने कहा कि एनजीटी ने इस मामले पर ठीक से अपना काम नहीं किया,जबकि यह मामला एनजीटी से जुड़ा है। इस मामले में मैरिट के आधार पर रिव्यू नहीं किया गया है।

    कोर्ट ने कहा िकइस मामले में पूरी प्रक्रिया का सही से पालन नहीं किया गया है। जिसकी शुरूआत प्रोजेट प्रस्तावक के फार्म एक में जरूरी सूचनाएं न देकर कर दी गई थी। टीओआर को तैयार करने के लिए फार्म एक की सूचनाओं को आधार बनाया गया था। ईआईए की रिपोर्ट अधूरी सूचनाओं के आधार पर तैयार की गई,जिस कारण उसमें कई कमियां रह गई। जिनका जिक्र कोर्ट ने अपने फैसले के पूर्व के हिस्से में किया है।

    इंवायरमेंट रूल आॅफ लाॅ

    जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में कहा कि-रूल आॅफ लाॅ एक ऐसा शासन चाहता है जो प्रभावी,एकाउंटेबल व पारदर्शी हो। जीने के अधिकार की रक्षा करने के लिए पर्यावरण की सेहत मुख्य तत्व है। जिसे संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मान्यता दी गई है। खंडपीठ ने उन दलीलों को भी नकार दिया,जिसमें याचिकाकर्ताओं के बोनाफाईड होने पर सवाल उठाया गया था। खंडपीठ ने कहा कि अगर कोर्ट को यह लगता है कि उनके समक्ष दायर अपील में वास्तविकता की कमी है तो उस मामले में कोर्ट वह निर्देश जारी कर सकती है जो उसको उचित लगे। पर्यावरण के सरंक्षण से संबंधित मामलों में यह कोर्ट की ड्यूटी बनती है कि उसके समक्ष पेश तथ्यों के आधार पर वह मामले पर विचार करे। पर्यावरण से जुड़े मामले सिर्फ जीने से संबंधित नहीं है बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों को भी प्रभावित कर सकते हैं। मानवीय विकास के पहलू में पर्यावरण का सरंक्षण बहुत जरूरी है। ताकि आज व भविष्य के लिए दीर्घकालीन विकास हो सके।


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