'नए वकीलों को अपने कार्यों से अपनी गंभीरता का परिचय देना चाहिए', 100 वर्षीय वकील लेखराज मेहता से लाइव लॉ की ख़ास बातचीत

SPARSH UPADHYAY

19 Jun 2020 5:19 AM GMT

  • नए वकीलों को अपने कार्यों से अपनी गंभीरता का परिचय देना चाहिए, 100 वर्षीय वकील लेखराज मेहता से लाइव लॉ की ख़ास बातचीत

    एक अच्छा वकील होने का क्या मतलब होता है? यह प्रश्न, एक वकील के पूरे करियर को प्रेरित कर सकता है, चिंतन करने पर मजबूर कर सकता है या कुछ को शायद परेशान भी कर सकता है। हालाँकि, यदि इस प्रश्न का उत्तर देने का थोडा सा प्रयास किया जाए तो यह स्पष्ट हो सकता है कि, एक अच्छा वकील होना, एक महान वकील होने से कहीं ज्यादा कठिन है।

    चर्चित मामलों को जीतना और प्रशंसा अर्जित करने की तुलना में, कोर्ट में वर्षों तक याद किये जाने वाला कौशल, दृष्टिकोण, मनोवृत्ति व उत्तम आचरण का निर्माण करना कहीं ज्यादा कठिन होता है और यही एक उत्तम वकील की विशेषता होती है।

    इसी क्रम में, यह साक्षात्कार विशेष रूप से नए वकीलों को ध्यान में रखते हुए एक देश के ऐसे ऐसे वरिष्ठ अधिवक्ता से बातचीत के आधार पर पेश किया जा रहा, जो इस पेशे में पिछले 74 साल से कार्यशील हैं और वे एक उत्तम वकील बनने के सभी गुणों और उसकी महत्वता को बारीकी से समझते भी हैं।

    श्री लेखराज मेहता का संक्षिप्त परिचय

    100 वर्षीय श्री लेखराज मेहता, राजस्थान हाईकोर्ट के एक वरिष्ठ अधिवक्ता हैं, जो सुप्रीम कोर्ट के समक्ष भी कई महत्वपूर्व मामलों में पेश हो चुके हैं। उन्होंने जोधपुर में 1945 में 'मेहता चैम्बर्स' की स्थापना की। वे मुख्य रूप से भूमि अधिग्रहण, राजस्व, चुनाव याचिका, टैक्सेशन, संवैधानिक व्याख्या के तमाम महवपूर्ण मामलों में शामिल रहे हैं। उन्होंने केंद्र सरकार, राज्य सरकार और तमाम सरकारी विभागों का विभिन्न अदालतों में प्रतिनिधित्व किया।

    उनका जन्म 4 जून, 1921 को हुआ और वर्ष 1943 में उन्होंने बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी से एलएलबी की डिग्री और वर्ष 1945 में लखनऊ से एलएलएम की डिग्री प्राप्त की और वर्ष 1946-47 से वकालत करने की शुरुआत की। गौरतलब है कि, राजस्थान और शायद सम्पूर्ण उत्तर भारत में एलएलएम करने वाले वे प्रथम व्यक्ति हैं।

    कानून के पार्ट टाइम फैकल्टी के तौर पर उन्होंने लगभग 30 वर्ष तक 'जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय' (जोधपुर) में शिक्षण कार्य भी किया। जो छात्र उनसे पढ़े, उनमे से चर्चित हस्तियों के नाम हैं – आर. एम. लोढ़ा (भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश), जस्टिस दलवीर भंडारी (अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के मौजूदा भारतीय सदस्य), जस्टिस अशोक कपूर, जस्टिस जी. एस. सिंघवी (सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज), मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, श्री एल. एम. सिंघवी (सीनियर अधिवक्ता एवं पूर्व ब्रिटिश उच्चायुक्त), श्री मरुधर मृदुल (सीनियर एडवोकेट) आदि। उन्होंने जैन धर्म पर भी तमाम व्याख्यान दिए हैं और वर्ष 2005 में व्याख्यान देने के लिए लंदन विश्वविद्यालय द्वारा उन्हें विशेष रूप से आमंत्रित भी किया गया था।

    श्री लेखराज मेहता ने कभी भी नामित सीनियर अधिवक्ता (Senior Lawyer Designate) की पदवी ग्रहण नहीं की, क्योंकि उनका मानना है कि इसके चलते वे अपने मुवक्किलों से सीधे तौर पर मिलने का मौका नहीं पाते, वो स्वयं ड्राफ्टिंग नहीं कर पाते, और वो अपने क्लाइंट को उचित समय नहीं दे पाते और इसके परिणामस्वरूप उनका अपने मुवक्किलों से शायद निजी सम्बन्ध और प्रगाढ़ नहीं हो पाता।

    स्वाभाव से आध्यात्मिक और सवेरे 4 बजे अपने दिन की शुरुआत करने वाले और कर्म के सिद्धांत पर विश्वास करने वाले श्री लेखराज मेहता यह कहते हैं कि एक अच्छा इन्सान बनने के लिए व्यक्ति को अहिंसा की नीति अपनानी चाहिए, और किसी भी प्रकार की वासना से मुक्त रहना चाहिए।

    श्री लेखराज मेहता से हुई बातचीत के अंश

    लाइव लॉ – सर, सबसे पहले तो वकालत के अपने 74 साल के अनुभव हमारे साथ साझा करें। इस सफ़र की शुरुआत कहाँ से हुई और आप उम्र के इस पड़ाव पर वकालत करते हुए कैसा महसूस करते हैं?

    श्री लेखराज मेहता – कानून से मेरा नाता बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से शुरु हुआ और आज तक जारी है। मैंने हमेशा ही से अध्ययन और ज्ञान अर्जन पर जोर दिया है, और यही मेरी पूँजी है। वकालत पेशे का अभी तक मेरा सफ़र बेहद अच्छा रहा है, और उम्र के इस पड़ाव पर आकर मुझे लगता है कि जितना हो सके, मैं अपने मुवक्किलों के साथ न्याय कर सकूँ और उन्हें न्याय दिलवाने में अपनी एक अहम् भूमिका निभा सकूँ।

    मुझे लगता है कि एक वकील के लिए अपने मुवक्किलों के प्रति सहानुभूति (empathy) रखनी आवश्यक होती है, इसके जरिये आपको किसी भी मामले की तह तक जाने और क्लाइंट की चिंताओं को समझने में मदद मिलती है। इसी सहानुभूति को मैंने अपने इतने लम्बे वकालत के सफ़र में बरक़रार रखने की कोशिश की है और आगे भी मेरी यह कोशिश जारी रहेगी।

    आपने उम्र के इस पड़ाव की बात की तो मुझे लगता है कि यह पड़ाव बेहद ख़ास है क्योंकि मुझे जितना भी वकालत का अनुभव है, उस अनुभव को मैं नए वकीलों के साथ साझा करने में ख़ुशी महसूस करता हूँ। मुझे प्रसन्नता होती है जब कभी भी मैं किसी नए वकील को प्रोत्साहित करने में सफल हो पता हूँ, या उसकी किसी भी प्रकार से मदद कर पाता हूँ।

    मैं 100 वर्ष की आयु में भी कार्यशील हूँ, यह भी मेरी ख़ुशी की एक बड़ी वजह है, क्योंकि मैं आज भी तमाम जरूरतमंद मुवक्किलों के काम आ पाने में सक्षम हूँ और उन्हें न्याय दिलवाने में एक अहम् भूमिका निभा पाता हूँ।

    लाइव लॉ – वकालत पेशे से जुड़ी ऐसी कौन-कौन सी शख्सियत हैं, जिनसे आप प्रेरणा लेते हैं या आपने उनसे कुछ सीखा है, और आप उनका उल्लेख करना चाहेंगे?

    श्री लेखराज मेहता – ऐसे तमाम लोग हैं जिनसे मैंने बहुत कुछ सीखा है और आज भी नए वकीलों तक से मैं चीज़ें सीखता रहता हूँ। कुछ प्रमुख नाम, जिनका जिक्र मैं करना चाहूँगा - पूर्व मुख्य न्यायाधीश राजस्थान हाईकोर्ट, जस्टिस जे. एस. वर्मा एवं जस्टिस अरुण मिश्रा (वर्तमान सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश और राजस्थान के पूर्व मुख्य न्यायाधीश) अपनी मेहनत और बौद्धिक कौशल के प्रशंसा के पात्र हैं और इनसे मैंने हमेशा ही प्रेरणा ली है।

    इसके अलावा, जस्टिस दौलत मल भंडारी (राजस्थान हाईकोर्ट) का मैं विशेष रूप से जिक्र करना चाहूँगा। यह कहना गलत नहीं होगा कि वे एक अकादमिक न्यायाधीश थे, जिनके निर्णयों में उनका अध्ययन साफ़ दिखता था। वे अक्सर विभिन्न मसलों पर भरी अदालत में मेरी राय की मांग किया करते थे।

    इसके अलावा, मैंने अपने पुत्र (श्री राजेन्द्र मेहता) से भी बहुत कुछ सीखा, वे स्वयं राजस्थान उच्च न्यायालय में एक बहुत सफल वकील थे। कार्डियक अरेस्ट के कारण साल 2007 में उनका आकस्मिक निधन हो गया और मैंने एक बेटा, एक दोस्त, एक गुणी साथी अधिवक्ता और सलाहकार खो दिया। वह मेरे जीवन काल की सबसे दुर्भाग्यपूर्ण घटना है, जिसे मैं कभी भुला नहीं सकूँगा।

    लाइव लॉ – आपकी दिनचर्या क्या है, इस उम्र में भी वकालत करते रहने की जिजीविषा कहाँ से प्राप्त होती है और आपकी सफलता का मूलमंत्र क्या रहा है?

    श्री लेखराज मेहता - मैं सुबह 4 बजे उठकर नित्यकर्म के बाद पूजा-पाठ करता हूँ। सुबह समाचार पत्रों के बीच वक़्त गुजरता हूँ। ठीक 10 बजे कोर्ट पहुँचता हूँ, 5 घंटे वकालात व स्टडी को देता हूँ। शाम को 3 घंटे क्लाइंट्स से केस पर डिस्कस करता हूँ। योग और ध्यान में भी वक़्त लगाता हूँ और आज भी अध्ययन में विशेष रूचि रखता हूँ।

    मैंने अपने पूरे जीवन में समाजसेवा को बहुत अधिक महत्व दिया है और शायद समाज के लिए और भी बहुत कुछ करने की इच्छा ही मुझे आगे बढ़ते रहें की जिजीविषा प्रदान करती है। मैं यह मानता हूँ कि व्यक्ति को बिना किसी लोभ, लालच या वासना के अपने जीवन को जीना चाहिए और यही कारण है कि मैं वृद्धाश्रम, बच्चों के ब्लाइंड स्कूल, अनाथालयों आदि में दान देने पर लोगो को प्रेरित करता हूँ, और स्वयं भी ऐसा करता रहता हूँ।

    मुझे यह लगता है कि एक वकील यदि अपने मुवक्किल के प्रति, अदालत के प्रति, अपनी तैयारी एवं मेहनत के प्रति, और अपने ब्रीफ को लेकर ईमानदार है तो उसे किसी अन्य चीज़ की जरुरत नहीं होती है। यहाँ तक की उसे किसी चीज़ का डर भी नहीं होता है और मैं आजतक इसी मूलमंत्र पर चलता आया हूँ।

    इसके अलावा, वकालत के पेशे में, मैं नए अधिवक्ताओं को आगे बढाने में एक भूमिका निभाते रहना चाहता हूँ। शायद यही वह कारण है जिसके चलते अदालत में मैंने हमेशा ही युवा वकीलों को प्रोत्साहित किया है क्योंकि ये युवा ही हमारे पेशे का भविष्य हैं।

    लाइव लॉ – आपने इस प्रोफेशन को काफी लम्बे वक़्त तक और काफी करीब से देखा है, क्या आप आज के और पहले के समय में कुछ अंतर महसूस करते हैं, बार और बेंच के बीच के रिश्ते में क्या परिवर्तन आया है?

    श्री लेखराज मेहता – यदि बात वकालत पेशे की करूँ, तो हाँ, काफी परिवर्तन आया है, और इसके लिए हमे तकनीक को श्रेय देना चाहिए। आज हम कोरोनाकाल में विडियो कांफ्रेंस/एप के जरिये मामलों को निपटा पा रहे हैं तो उसमे तकनीक का ही योगदान है। कानून, उदाहरण के तौर पर सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908, भी वक्त के साथ बदले हैं जिन्होंने मुकदमों के तेज़ी से निपटारे में एक अहम् भूमिका निभाई है। लेकिन यह जरुर है कि अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी भी है।

    जहाँ तक बार एवं बेंच के बीच रिश्ते का सवाल है, तो इस रिश्ते में सम्मान हमेशा से रहा है और आज भी बरक़रार है। वक़्त के साथ, इनके मध्य कम्युनिकेशन बढ़ा है और दूरियां घटी हैं, बेंच तक बार के विचार पहुँच रहे हैं, जिससे न्याय प्रक्रिया कुछ हद तक मजबूत भी हुई है।

    लाइव लॉ – हम सभी इस बात को जानते हैं कि अदालतों में मामलों की लंबित होना एक समस्या है, इस समस्या पर आपका क्या कहना है?

    श्री लेखराज मेहता - मैं अपने निजी अनुभव से यह कहना चाहता हूँ कि मौजूदा समय में मामलों के लंबित होने के चलते न्यायाधीशों पर भी कुछ दबाव अवश्य है, लेकिन पूर्व में ऐसा मामला नहीं था और इसी के चलते पूर्व में दिए जाने वाले निर्णय, स्वाभाव से अपेक्षाकृत अधिक अकादमिक (Academic) होते थे। अदालत में बहस के लिए मिलने वाला समय भी घटा है, अब वकीलों को अपना पक्ष रखने का उतना समय नहीं मिलता जितना पहले मिला करता था, और इसमें न्यायाधीशों का कोई दोष नहीं बल्कि यह सब मामलों को निपटाने के दबाव के चलते है।

    इस दबाव के चलते, निर्णयों के स्तर/गुणवत्ता पर असर पड़ा है हालाँकि ऐसा हर जगह नहीं है लेकिन सामान्य तौर पर ऐसा देखने को मिल रहा है (यदि हम पहले के समय के साथ तुलना करें तो)। न्यायाधीशों की कमी भी एक वजह है जिसके चलते यह दबाव बढ़ता जा रहा है।

    लाइव लॉ – किसी मुवक्किल का ब्रीफ/मामला लेने से पहले अधिवक्ता को किस बात को ध्यान में रखना चाहिए?

    श्री लेखराज मेहता – किसी भी वकील को सबसे पहले आत्ममंथन करके यह देखना चाहिए कि उस मामले में उसके जीतने की सम्भावना क्या है। इसके लिए आपको अपने मुवक्किल से इमानदारी बरतनी चाहिए कि उसे यह बताना चाहिए कि उसके मामले में मजबूत या कमजोर पॉइंट्स क्या हैं। इसके बाद यह निर्णय मुवक्किल पर छोड़ देना चाहिए कि उसे मामले के साथ आगे बढ़ना है अथवा नहीं। एक वकील को कभी भी अपने मुवक्किल को झूठी दिलासा या आश्वासन नहीं देना चाहिए। इसके अलावा, एक वकील को अपने मजबूत एवं कमजोर पॉइंट्स पर स्वयं निर्णय लेने में सक्षम होना चाहिए।

    लाइव लॉ – वकीलों की बढती फीस को लेकर तमाम प्रकार की चिंताओं को आजकल सामने लाया जा रहा है, रिटायर होते हुए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश दीपक गुप्ता ने भी कुछ हद तक इस बात को रेखांकित किया था, इसपर आपकी क्या राय है, क्या इस चलन से गरीब की न्याय प्रक्रिया तक पहुँच दूर हो रही है, न्यायपालिका इसके लिए क्या कर सकती है?

    श्री लेखराज मेहता – मेरा भी ऐसा मानना है कि वकीलों की अधिक फीस का कल्चर उचित नहीं है। वास्तव में, वरिष्ठ अधिवक्ताओं की यह जिम्मेदारी है कि वह समाज के निचले तबके के लिए स्वयं से अपनी सेवाओं की पेशकश करें, जिससे एक गरीब भी न्याय प्राप्त कर सके। उन्हें आवश्यक रूप से प्रो-बोनो कार्य करने चाहिए और अपने पेशेवर जीवन का कुछ समय ऐसे मामलों को भी देना चाहिए।

    वास्तव में, इससे न केवल गरीब एवं निम्न आय वर्ग को न्याय तक पहुँच प्राप्त करने में मदद मिलेगी बल्कि अधिवक्ता को स्वयं संतुष्टि भी हासिल होगी। इसके अलावा, वकील की फीस कभी भी किसी मामले को जीतने निर्भर नहीं होनी चाहिए। कहीं न कहीं वकीलों की बहुत ज्यादा फीस होने के कारण भी समाज के निचले तबके को अदालतों से न्याय मिलने में समस्या का सामना करना पड़ता है।

    सीनियर अधिवक्ताओं को यदि किसी मामले में मेरिट दिखती है या किसी व्यक्ति की पैसों की वास्तविक समस्या दिखती है तो उसे अपनी फीस की चिंता किये बगैर, मुवक्किल की चिंताओं को दूर करना अपनी जिम्मेदारी समझते हुए मामले को अपने हाथ में लेना चाहिए और इससे अधिवक्ता को अंततः अनुभव ही हासिल होगा जोकि अमूल्य है। यह नियम जूनियर अधिवक्ताओं पर भी लागू है, प्रो-बोनो कार्य करने से उन्हें अपने प्रोफेशनल जीवन में काफी मदद मिल सकती है।

    जहाँ तक न्यायपालिका की ओर से उठाये जा सकने वाले क़दमों का सवाल है, तो अदालतों द्वारा तमाम मामलों में स्वतः संज्ञान लेकर समाज के निचले तबके को न्याय लाभ पहुँचाने में अपनी भूमिका निभाई जाती है। इसके अलावा, अदालतों द्वारा निचले तबके का प्रतिनिधितित्व करने के लिए वरिष्ठ अधिवाक्तों को प्रेरित किया जाना चाहिए और उन्हें तमाम सामाजिक मामलों में एमिकस क्यूरी नियुक्त किया जाना चाहिए।

    लाइव लॉ – एक नए अधिवक्ता को अपने सीनियर का चुनाव किस प्रकार से करना चाहिए और उन्हें वकालत के शुरूआती दिनों में, जहाँ आय न्यूनतम होती है, किस प्रकार से स्वयं को आर्थिक रूप से बनाये रखना चाहिए?

    श्री लेखराज मेहता – एक नए अधिवक्ता को बार के अच्छे से अच्छे अधिवक्ता के अंतर्गत अपने करियर की शुरुआत करनी चाहिए। ऐसे नए अधिवक्ता की यह जिम्मेदारी है कि वह अपने कार्यों एवं आचरण से अपने सीनियर को यह विश्वास दिलाये कि वह अपने काम के प्रति गंभीर है, वह मेहनती है और वह समझदार है। जब भी ऐसा होता है तो सीनियर स्वयं ही उस जूनियर/नए अधिवक्ता को गंभीरता से लेते हैं, और उसे वकालत के गुण सिखाने में निजी तौर पर रूचि लेता है।

    नए अधिवक्ताओं को अपने चैम्बर के प्रति ईमानदारी बरतनी चाहिए। कई बार नए अधिवक्ता सफलता के लिए शॉर्टकट लेते हैं जोकि उचित नहीं है। करियर के शुरुआती दौर में नए अधिवक्ता को अनुभव और ज्ञान हासिल करने पर जोर देना चाहिए और अपने सीनियर का विश्वास हासिल करना चाहिए और कम से कम 7-8 साल तक सफलता के लिए इंतजार करना चाहिए और इस दौरान उसे लगातार मेहनत करते रहना चाहिए और वकालत को एक धंधे के तौर पर नहीं बल्कि इसे एक महान पेशे के तौर पर देखना चाहिए।

    लाइव लॉ – अंत में आपका अधिवक्ताओं के लिए एवं आने वाले समय में इस पेशे से जुड़ने वाले लोगों के लिए क्या सन्देश होगा?

    श्री लेखराज मेहता – एक वकील के लिए ईमानदार होना और मेहनती होना सबसे अधिक आवश्यक है। ईमानदारी न केवल अदालत के प्रति होनी चाहिए, ब्रीफ, डॉक्यूमेंट और क्लाइंट के प्रति होनी चाहिए बल्कि मामले के तथ्यों से भी ईमानदारी बरती जानी चाहिए। क्लाइंट के मामले के रिकॉर्ड को बहुत सावधानी से रखा जाना चाहिए, और यदि वकील को ऐसा कभी लगता है कि उसका क्लाइंट अपने मामले के साथ ईमानदारी नहीं बरत रहा रहा है या अपने डॉक्यूमेंट के जरिये कुछ छुपा रहा है या धोखा कर रहा है तो उसे सर्वप्रथम अदालत को इस बाबत सूचना देनी चाहिए क्योंकि एक अधिवक्ता की अदालत और न्याय प्रक्रिया के प्रति भी बेहद अहम् जिम्मेदारी होती है।

    मेरा यह भी मानना है कि इससे पहले कि आप रिट अधिवक्ता बने, आपको अपने अकादमिक (Academics) को काफी ज्यादा मजबूत बना लेना चाहिए। हमेशा तथ्यों पर पकड़ बनाये रखनी चाहिए और ड्राफ्टिंग में निपुण होना चाहिए। इस पेशे में अच्छा कार्य करते रहना चाहिए, हिम्मत बनाये रखनी चाहिए और धैर्यपूर्वक अपना कार्य करते रहने से अच्छे परिणाम अवश्य आते हैं।

    श्री लेखराज मेहता से जुड़े कुछ प्रमुख मामले/किस्से (उनके पोते श्री रमित मेहता से प्राप्त जानकारी पर आधारित)

    * राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत (भारत के 11वें उपराष्ट्रपति) की चुनाव में हुई जीत को दो बार हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। श्री लेखराज मेहता ने भैरोंसिंह शेखावत को दोनों ही बार केस जिताए और जिसके चलते शेखावत राजस्थान के मुख्यमंत्री बने।

    * एक मामले में श्री लेखराज मेहता, उदयपुर रॉयल परिवार के विवाद में अरविन्द सिंह मेवाड़ की तरफ से पेश हो रहे थे, दूसरी ओर से महेंद्र सिंह मेवाड़ की तरफ से वरिष्ठ वकील श्री राम जेठ मालानी पेश हो रहे थे। श्री राम जेठ को मालानी को यह भ्रम हुआ कि वे श्री लेखराज से उम्र में बड़े हैं। इसपर न्यायाधीश महोदय ने श्री राम जेठमलानी से कहा कि श्री लेखराज से आपसे उम्र में कम से कम 3-4 वर्ष बड़े हैं। इसपर श्री राम जेठमलानी ने श्री लेखराज से मुखातिब होते हुए सम्मानपूर्वक कहा, "तो लेखराज जी, फिर आपको मामले में दलील देने की शुरुआत करनी चाहिए, क्योंकि आप मुझसे उम्र में बड़े हैं।"

    * वर्ष 1972 में, जोधपुर बार एसोसिएशन के निर्विरोध अध्यक्ष चुने जाने के पश्च्यात तमाम प्रकार के कदम श्री लेखराज द्वारा उठाये गए जिन्हें आज भी याद किया जाता है, उन्होंने नए अधिवक्ताओं को इस पेशे में प्रोत्साहन देने के लिए भी कई पहल में अपना योगदान दिया।

    * [आधुनिक व्रह निर्माण बनाम राजस्थान राज्य AIR 1989 SC 867 मामले में अधिवक्ता की भूमिका] - जोधपुर के महाराजा एक ऐसे शासक थे, जिन्होंने अपने राज्य को भारत संघ में एकीकृत किया था। कोवेनेंट के अनुसार, महाराजा की संपत्तियों को उनकी पूर्ण संपत्ति बताया गया था और उम्मेद भवन पैलेस को व्यक्तिगत संपत्ति की श्रेणी में शामिल किया गया था। वर्ष 1964 में, राजस्थान विधानसभा ने राजस्थान लैंड रिफॉर्म्स एंड एक्वीजीशन ऑफ़ लैंड ओनर्स एक्ट एस्टेट एक्ट, 1963 लागू किया। याचिकाकर्ताओं द्वारा यह दावा किया गया था कि उनकी भूमि का कोई अधिग्रहण नहीं किया जा सकता है और सर्वोच्च न्यायालय ने इस दलील को अनुमति दी।

    * [जे. के. सिंथेटिक्स बनाम नगर निगम निम्बाहेडा राजस्थान उच्च न्यायालय AIR 1991 राज 1 मामले में अधिवक्ता की भूमिका] - राजस्थान नगरपालिका अधिनियम की धारा 4 के अंतर्गत जारी की गयी अधिसूचना को चुनौती दी गई थी, जिसमें अंतर्गत नगर निम्बाहेडा नगरपालिका के नगर क्षेत्र बढ़ाया गया था। उक्त अपील को आंशिक रूप से अनुमति दी गई थी और अदालत द्वारा यह माना गया था कि नए स्थानीय क्षेत्र में ऑक्ट्रोई की वसूली अवैध मानी गयी।

    * जोधपुर के महाराजा हनवंतसिंह के निधन के बाद वर्ष 1952 में 4 वर्ष की उम्र में गजसिंह का राजतिलक हुआ। वर्ष 1981 में उनके 4 चाचाओं में से 2 ने राजघराने की संपत्ति में बंटवारे के लिए मुकदमा दायर किया। गजसिंह की ओर से श्री लेखराज अदालत में पेश हुए और उन्होंने यह दलील दी कि ज्येष्ठा का अधिकार कानून (Law of Primogeniture) के तहत राजा का बड़ा बेटा ही उसकी संपत्ति का उत्तराधिकारी बन सकता है, इस दलील को अदालत द्वारा स्वीकृति दी गयी और निर्णय इसी दलील पर आधारित था।

    * नागौर विधानसभा क्षेत्र से एक चुनाव में गोवर्धन सोनी जीते। जीत को नाथूराम मिर्धा ने हाईकोर्ट में चुनौती दी। श्री लेखराज ने मिर्धा की याचिका को हाइकोर्ट में ख़ारिज करवाने में अहम् भूमिका निभाई।

    * श्री लेखराज मेहता तमाम मामलों में बिना किसी शुल्क के हाईकोर्ट एवं सुप्रीम-कोर्ट में पेश हुए हैं। इनमे तमाम लोग समाज के निचले तबके से जुड़े हुए थे, वहीँ कुछ मामले धार्मिक ट्रस्ट से भी जुड़े थे। एक उल्लेखनीय मामले में, केसरिया जी ट्रस्ट की ओर से पेश होते हुए उनकी इस दलील को राजस्थान हाईकोर्ट ने स्वीकार किया था कि केसरिया जी मंदिर एक जैन मंदिर है (न कि एक हिन्दू मंदिर)।

    [इस साक्षात्कार में श्री लेखराज मेहता के पोते, श्री रमित मेहता भी शामिल रहे, जो स्वयं पेशे से एक अधिवक्ता हैं और एलएलबी की डिग्री प्राप्त करने के पश्च्यात, उन्होंने वार्विक यूनिवर्सिटी (University of Warwick), यूके से एलएलएम की डिग्री हासिल की है और मौजूदा समय में 'मेहता चैम्बर्स' का कार्यभार संभाल रहे हैं। इस साक्षात्कार में राजस्थान हाईकोर्ट में वकालत करने वाले श्री आलोक चौहान ने सहयोगी की भूमिका निभाई।]

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