"पुत्र से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह अपने पिता को धोखेबाज़ कहे" : बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुज़ुर्ग माता पिता के खुद के बनाए घर से पुत्र की बेदखली का आदेश बरकरार रखा

LiveLaw News Network

29 April 2022 2:30 AM GMT

  • पुत्र से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह अपने पिता को धोखेबाज़ कहे : बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुज़ुर्ग माता पिता के खुद के बनाए घर से पुत्र की बेदखली का आदेश बरकरार रखा

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में बेटे को उसके माता पिता के खुद के बनाए घर से बेदखल कर दिया। कोर्ट कहा कि बेटा यह दावा नहीं कर सकता कि उसके माता-पिता ने मानसिक संतुलन खो दिया है।

    जस्टिस रोहित देव ने कहा,

    "रूढ़िवादी भारतीय समाज में एक बेटे से यह अपेक्षा नहीं की जाती कि वह अपने वृद्ध पिता को धोखेबाज़ कहेया फिर यह आरोप लगाए कि वृद्ध माता-पिता ने मानसिक संतुलन खो दिया है। आरोप है कि वृद्ध माता-पिता पर शारीरिक हमला किया गया। इसके साथ ही दूसरे बेटे पर भी हमला किया जाता है और आगंतुकों को घर में प्रवेश करने से रोका जाता है।"

    यह आगे देखा गया कि वृद्ध माता-पिता की भावनात्मक और शारीरिक भलाई तब तक सुनिश्चित नहीं की जा सकती जब तक कि याचिकाकर्ता स्व-अर्जित घर खाली नहीं कर देते।

    माता-पिता ने माता-पिता और माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण एवं कल्याण अधिनियम, 2007 (Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007) की धारा 5 के तहत ट्रिब्यूनल के समक्ष अपनी याचिका दायर की थी। इसमें दावा किया गया कि उनके बेटे और बहू द्वारा उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से परेशान किया जा रहा है।

    अदालत के समक्ष माता-पिता ने तर्क दिया कि उनके बेटे ने उक्त घर के एक हिस्से पर जबरन कब्जा कर लिया है और खुद को इस तरह से ज़ाहिर करता है जिससे उनकी सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा पैदा हो। पिता ने तर्क दिया कि वह हार्ट पैशेंट हैं और उन्हें सर्जरी करवानी है, लेकिन धन की कमी के कारण वह इस कराने में सक्षम नहीं है। इसके अलावा, उन्होंने कहा कि बेटे को अवैध रूप से कब्जे वाले क्षेत्र को खाली करने के लिए कहा जाना चाहिए, क्योंकि इसका इस्तेमाल किराये की आय से खुद को बेहतर बनाए रखने के लिए किया जा सकता है।

    बेटे ने तर्क दिया कि उसके पिता हार्ट पैशेंट नहीं हैं। उसने यह भी तर्क दिया कि न्यायाधिकरण ने अधिनियम की धारा 5 के तहत आवेदन को बेदखली के लिए मुकदमे के रूप में व्यवहार करने में एक न्यायिक त्रुटि की।

    कोर्ट ने नोट किया कि संतोष सुरेंद्र पाटिल बनाम सुरेंद्र नरस्गोपंडा पाटिल और अन्य, 2017 ऑल एमआर (सीआरई) 4065 में हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीश ने कहा कि वरिष्ठ नागरिक की शांति सुनिश्चित करने के लिए आवासीय घर से बेटों को बेदखल करने में कोई अवैधता नहीं है।

    अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता के वकील का यह कहना कि अधिनियम की धारा 5 के तहत कार्यवाही को बेदखली के मुकदमे में नहीं बदला जा सकता, कानून के प्रस्ताव के रूप में गलत नहीं है। हालांकि, इसमें कहा गया है कि यदि वरिष्ठ नागरिकों को परेशान किया जाता है और उनके पास यह महसूस करने के वास्तविक कारण हैं कि उनकी भावनात्मक और शारीरिक भलाई और सुरक्षा खतरे में है तो यह मानने का कोई कारण नहीं कि ट्रिब्यूनल के पास बेदखली का निर्देश देने की कोई शक्ति नहीं है।

    उपरोक्त को देखते हुए याचिका खारिज कर दी गई।

    केस का शीर्षक: नामदेव और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य।

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