मास्क N-19, कोरोना वायरस और घरेलू हिंसा

LiveLaw News Network

8 April 2020 12:08 PM GMT

  • मास्क N-19, कोरोना वायरस और घरेलू हिंसा

    प्रज्ञा पारिजात सिंह

    फ्रांस के एक खामोश शहर - नैंसी में स्थित फार्मेसी की दुकान में पिछले रविवार को एक महिला आती है और केमिस्ट से दवाई के बहाने मदद मांगती है। वो दुकानदार को बताती है कि कोरोना वायरस की वजह से जबसे पूरा शहर लॉकडाउन है, उसका पति उसे रोज़ पीटता है और गाली-गलोच करता है ।

    अपनी अक्षमता बताते हुए वो कहती है कि पति फ़ोन भी नहीं इस्तेमाल करने देता इसलिए मुश्किल से वो दवाई के बहाने बच्चों को लेकर आयी है। इस बात से अलार्म होकर दुकानदार, स्थानीय पुलिस को इत्तेला करता है और कुछ ही घंटों के अंदर पुलिस , रेस्क्यू टीम के साथ पहुंच जाती है और इस महिला और उनके बच्चों को बचा लेती है।

    करोना वायरस वैश्विक महामारी ने जहाँ पूरी दुनिया को हिला के रखा हुआ है, वही एक नया उभरता हुआ मुद्दा मुँह -बाये खड़ा है- घरेलु हिंसा। घरेलु हिंसा की बात करें तो NCRB के 2018 के आंकड़ों के हिसाब से महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा की श्रेणी में घरेलु हिंसा सबसे ऊपर है। क्राइम रेट दर प्रति लाख महिला जनसँख्या के हिसाब से 58.8 % है। भारत का जहाँ विश्व में " जेंडर असमानता सूची " में 125-वांं नंबर है जो की पायदान में बहुत बाद में है, वहीँ ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स में हमारा 87-वां स्थान है।

    फ्रांस ने उधारणतः ये नुस्खा स्पेन से सीखा । एक कोड वर्ड बनाया गया है" मास्क N - 19"। यदि कोई महिला सबसे सामने कुछ बोल नहीं सकती और अपने ऊपर हो रहे अत्याचार से मदद मांगना चाहती है वो मास्क N - 19 मांगेगी जिसका अर्थ है उसे हिंसा से बचने के लिए मदद की आवश्यकता है। ज्ञांत हो को कोरोना वायरस से बचने के लिए साधारण तौर पर मास्क N - 95 का इस्तेमाल होता है। भले ही यह एक सांकेतिक कोड हो लेकिन इसने कई महिलाओं के ऊपर हो रहे घरेलू हिंसा से हाल फिलहाल बचने में मदद की है।

    अभी हाल ही में राष्ट्रीय महिला आयोग ने लॉकडाउन के बाद ईमेल के द्वारा आयी महिलाओं की शिकायतों का डाटा निकाला है । गौरतलब हो की इस साल के आंकड़ों पर जाएं तो होश -फाख्ता हो जायेंगे जनवरी में कंप्लेंट की संख्या 302 थी, फ़रवरी में 270 और मार्च में सिर्फ लॉकडाउन के बाद से ( 23 मार्च- से 31 मार्च तक यानि कुल एक हफ्ते का डाटा ) 291 कम्प्लेंट्स अभी तक भेजी जा चुकी हैं ।

    ज़्यादातर कंप्लैंट्स पंजाब से हैं। कारण स्पष्ट हैं, घर के बाहर न निकल पाना, काम पे न जा पाना फ़्रस्ट्रेशन , आपसी संबंधों में खलल इत्यादि । रेसेअर्चेर्स की रिपोर्ट्स के अनुसार माने तो ये पता चलता है कि तनावपूर्ण माहौल अक्सर घरेलू हिंसा को बढ़ावा देता है। 2008 के इकॉनोमी क्राइसिस के दौरान पूरे विश्व में घरेलू हिंसाओं की संख्या बढ़ गयी थी। भारत में ही नहीं पूरे विश्व में फिलहाल इस वैश्विक महामारी के आने से घरेलू हिंसाओं की तादाद बढ़ गयी है जो की एक बेहद ही चिंताजनक और गंभीर मुद्दा है।

    भारत में क्या कानून है?

    घरेलू हिंसा से निबटने के लिए भारत ने 2005 में घरेलू हिंसा कानून लाया था । वर्ष 2005 से पूर्व घरेलू हिंसा के खिलाफ महिलाओं के पास आपराधिक मामला दर्ज़ करने का अधिकार था| ऐसे मामलों में भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 498A के अंतर्गत कार्यवाही होती थी| 2005 में 'घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं का संरक्षण अधिनियम' पारित हुआ जिसमें कई नए तरीके के अधिकार महिलाओं को दिए गए| धारा 498A का उद्देश्य अपराधी को दण्डित करना है जबकि घरेलू हिंसा अधिनियम का उद्देश्य पीड़ित महिला को रहने की जगह, गुजारा भत्ता, इत्यादि दिलाना है| घरेलू हिंसा अधिनियम पूर्णतया गैर अपराधिक ढंग का कानून है| घरेलू हिंसा अधिनियम का सबसे बड़ा फायदा ये हुआ है की जो महिलाएं पारिवारिक या सामजिक दवाब एवं पुलिस थाने के चक्करों से बचने के कारण अपराधिक कार्यवाही नहीं चाहती हैं वे अब अपने लिए प्रभावी संरक्षण का उपाय कर सकती हैं।

    घरेलू हिंसा कई प्रकार की हो सकती हैं : आर्थिक , मानसिक, शारीरिक , दहेज़ की मांग , मौखिक, लैंगिक उत्पीड़न इत्यादि । घरेलू हिंसा अधिनियम केवल शादीशुदा महिलाओं के लिए नहीं बल्कि किसी भी महिला पर लागू होता है। बहनें, माता, भाभी, इत्यादि रिश्तों से जुडी महिलाएं भी इस अधिनियम के तहत पीड़ित महिला की परिभाषा में आती हैं| कोई भी महिला जो किसी भी पुरुष के साथ घरेलू सम्बन्ध में रहती हो या रह चुकी हो और घरेलू हिंसा का शिकार हो वो इस अधिनियम के तहत किसी भी समाधान या राहत की मांग कर सकती है। लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिला भी घरेलू हिंसा के खिलाफ इस अधिनियम के अंतर्गत अपने अधिकारों की मांग कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में डी. वेलुसामी बनाम डी. पत्चैअम्मल मामले में इस बात की पुष्टि की है।

    शिकायतकर्ता कौन हो सकता है ?

    घरेलू हिंसा की शिकायत का अधिकार केवल पीड़ित महिला को ही नहीं है। पीड़ित महिला की ओर से कोई भी व्यक्ति इसके खिलाफ शिकायत दर्ज करवा सकता है। पीड़ित महिला के अलावा उसका कोई भी रिश्तेदार, सामजिक कार्यकर्ता, NGO, पडोसी, इत्यादि भी महिला की ओर से शिकायत दर्ज करवा सकते हैं। शिकायत दर्ज करने के लिए यह ज़रूरी नहीं है की घरेलू हिंसा की घटना हो चुकी हो| अगर किसी को यह अंदेशा है की किसी महिला के ऊपर घरेलू हिंसा की जा सकती है तो इसकी भी शिकायत दर्ज करवाई जा सकती है।

    ये 2005 का महिला संरक्षण अधिनियम काफी कारगर रहा और काफी महिलाओं को सशक्त करने में सफल सिद्ध हुआ।

    कोरोना वायरस की वजह से अदालतें बंद हैं :

    परेशानी का सबब ये है की कोरोना की वजह से कोर्ट-अदालतें इत्यादि बंद हैं। दिन- प्रतिदिन सिर्फ ज़रुरत और अति-आवश्यक केसों की ही सुनवाई हो रही है। ऐसे में पीड़ित महिलाओं के ऊपर सबसे बड़ी मार पड़ी है इस महामारी से। चूंकि कानून रातों रात नहीं बन सकते और विधिक प्रक्रिया को समय लगता है ऐसे में क्या उपाय है ?

    कुछ तरीकें है जिनसे महिलाएं अपनी शिकायत दर्ज करा सकती हैं घर पर बैठकर ही :

    1 - हेल्पलाइन / वुमन -इन- डिस्ट्रेस नंबर पर कॉल करके - 1091 /1090

    2- वुमन हेल्पलाइन डोमेस्टिक एब्यूज / महिला हेल्पलाइन घरेलु हिंसा नंबर - 181

    3- पुलिस को संपर्क करें - 100

    4 - NCW / राष्ट्रीय महिला आयोग हेल्पलाइन नंबर- 011-26942369 ,26944754

    इसके अलावा राष्ट्रीय महिला आयोग की वेबसाइट http://ncwapps.nic.in/onlinecomplaintsv2 / पर भी शिकायत दर्ज करवाई जा सकती है। इस वेबसाइट पर शिकायत पंजीकरण करने के साथ ही शिकायत की स्तिथि भी जांच सकते हैं| ईमेल है - complaintcell-ncw@nic.in

    स्पेन और फ्रांस ने जैसे नए कोड का इस्तेमाल किया कई ज़रूरतमंद महिलाओं को मदद मिली । ऐसे में चाहिए की सरकार इस बात को सुनिश्चित करें के जल्द से जल्द आर्डिनेंस पारित करके कोई बिल लाएं जिससे महिलाओं को मदद और सुरक्षा मिले।

    एक आल -इंडिया हॉटलाइन नंबर हो जिसमे महिलाएं अपनी कंप्लेंट फ़ोन के माध्यम से दर्ज़ करा सकें और उनकी लोकेशन के हिसाब से पुलिस और रेस्क्यू- टीम मदद करे । न्याय प्रक्रिया से जुड़े वकीलों को चाहिए की वह खुल कर लोगों की मदद करें - कंप्लेंट ड्राफ्ट करके कोर्ट तक पहुचाएं । कोर्ट इस बात की सुओ मोटो कॉग्नीज़न्स लेकर गाइडलाइन्स निर्धारित करे सिविल सोसाइटी , NGO इत्यादि सेन्सिटिज़ेशन , अवेयरनेस कैंपेन चलाएं ऑनलाइन माध्यम से।

    सबसे बड़ी बात है की आस-पड़ोस के लोग आँख-कान-प्रत्यक्ष -प्रमाण बनें और संदेह होने पर तुरंत अपने निकटतम थाने में इतल्ला करें। महिलाएं हिचकें ना और जिससे भी मदद ले पाएं, लें। जो भी महिलाएं फेसबुक , ट्विटर और सोशल मीडिया का इस्तेमाल करती हैं और मेल इत्यादि करना जानती हैं वो तुरंत अपने भरोसे के लोगों से या निकटतम अथॉरिटीज से संपर्क करें । महिलाएं महिलाओं का साथ दें। चुप ना बैठें।

    संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्य अंटोनिओ गुत्तरेस ने हाल ही में ट्वीट करके कहा की मुश्किल की ऐसी घडी में घर के अंदर जूझ रही महिलाओं की सुरक्षा करना सबसे आवश्यक है। उन्होंने अपील की है सारी सरकारों से की वे तुरंत प्रबंध करे ऐसी स्थितिओं से निबटने के लिए और महिलाओं की सुरक्षा हेतु उचित प्रबंध करने के लिए।

    अंत में माया एंग्लो का एक प्रसिद्ध उद्धहरण है जो उन्होंने अपनी किताब में लिखा था , यहाँ एकदम सटीक बैठता है :

    " वो हर एक बार जब एक औरत खुद के लिए खड़ी होती है जाने अनजाने , वो ना जाने कितनी और महिलाओं के लिए खड़ी होती है और सम्बल देती है "

    लेखक प्रज्ञा पारिजात सिंह सुप्रीम कोर्ट की वकील हैं और फ़िलहाल कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से LLM कर रही हैं।

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