शादीशुदा होते हुए लिव इन रिलेशनशिप में रहना, क्या है इसकी वैधानिकता?

Shadab Salim

7 Aug 2022 8:08 AM GMT

  • शादीशुदा होते हुए लिव इन रिलेशनशिप में रहना, क्या है इसकी वैधानिकता?

    विवाह एक सामाजिक संविदा है, दो बालिग लोग आपसी सहमति से विवाह के बंधन में बंधते हैं। जीवन में कई दफा ऐसी परिस्थितियों का जन्म होता है जब विवाह में खटास पैदा हो जाती है और पक्षकार एक दूसरे का परित्याग कर देते हैं। विवाह का उद्देश्य दो लोगों के साथ रहकर जीवन यात्रा को आगे बढ़ाना है लेकिन जब विवाह में विवाद उत्पन्न होते हैं तब विवाह के पक्षकार पति और पत्नी एक साथ नहीं रहते हैं। केवल एक दूसरे को छोड़ देने से विवाह समाप्त नहीं होता है, विवाह तो तब भी बरकरार रहता है। विवाह एक तरह का लीगल एग्रीमेंट है केवल एक दूसरे को छोड़ देने से एक दूसरे के प्रति अधिकार और कर्तव्य समाप्त नहीं हो जाते हैं। विवाह में विवाद होने पर पक्षकार एक दूसरे पर मुकदमे भी लगाते हैं, जहां पर एक पत्नी के पास कुछ आपराधिक घटना हो जाने पर मुकदमे लगाने का भी अधिकार उपलब्ध है।

    भारत में न्यायालयीन प्रक्रिया अत्यंत धीमी होने से शीघ्र न्याय नहीं मिल पाता है। न्यायालय में मुकदमे चलते रहते हैं और विवाह के पक्षकार पति पत्नी एक दूसरे से अलग निवास करते रहते हैं। जीवन यात्रा में आगे चलकर किसी अन्य व्यक्ति से मधुर संबंध हो जाते हैं फिर ऐसे दो लोग आपस में साथ रहने पर विचार कर लेते हैं, भारत में शादी होते हुए दूसरी शादी करना दंडनीय अपराध है। किन्हीं समाजों में दूसरी शादी को वैधानिकता मिली हुई है लेकिन वहां पर भी दूसरी शादी करने पर क्रूरता का मामला बन जाता है। जिन समाजों में दूसरी शादी को मान्यता नहीं है वहां पर भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत एक आपराधिक मुकदमा दर्ज कर लिया जाता है क्योंकि दूसरी शादी करना अपराध है।

    पति और पत्नी एक दूसरे से अलग रहते हैं उनमें से कोई पक्षकार साथ नहीं रहना चाहता है और तलाक भी नहीं करना चाहता है। यह बड़ी विवादास्पद स्थिति है क्योंकि दोनों का ही जीवन अधर में अटक जाता है। फिर किसी अगले प्रेमी या प्रेमिका से मधुर संबंध हो जाने पर वह दोनों भी एक दूसरे से विवाह नहीं कर पाते हैं क्योंकि पहले विवाह के रहते हुए दूसरा विवाह अवैध भी है और यह कानूनी अपराध भी है। इसलिए दूसरे विवाह से हुई संतान भी अधर्मज और अवैध हो जाती है और दूसरे विवाह को कोई भी कानूनी मान्यता प्राप्त नहीं होती है।

    इस स्थिति में वे लोग लिव इन रिलेशनशिप जैसी चीज पर विचार करते हैं। लिव इन एक ऐसी स्थिति है जहां दो बालिग लोग आपसी सहमति से साथ में रहते हैं। उनका आपस में रिश्ता पति पत्नी की तरह होता है लेकिन उन दोनों के बीच कोई विवाह की संविदा नहीं होती है। यह विवाह से थोड़ा सा ही पृथक है। लेकिन भारत के उच्चतम न्यायालय ने लिव इन को परिभाषित करते हुए अनेकों दफ़ा यह कहा है कि लिव इन के संबंध में भी अधिकार और कर्तव्य तो होते हैं।

    अब प्रश्न यह उठता है कि क्या विवाह के होते हुए किन्हीं दूसरे व्यक्तियों के साथ लिव-इन में रहा जा सकता है। वर्तमान समय में भारत में इस पर कोई पार्लियामेंट का बनाया हुआ कानून नहीं है अपितु समय समय पर आने वाले न्यायालयीन प्रकरणों में भारत के विभिन्न उच्च न्यायालय एवं उच्चतम न्यायालय ने अपने निर्णय में विवाह के होते हुए लिव इन को परिभाषित किया है और समझाया है।

    क्या विवाह के होते हुए लिव इन में रहना अपराध है

    पंजाब उच्च न्यायालय ने अभी हाल ही के एक मामले में यह स्पष्ट किया है कि विवाह के होते हुए लिव इन में रहना किसी भी प्रकार का कोई अपराध नहीं है। दो बालिग पक्षकार आपसी सहमति से एक दूसरे के साथ रह सकते हैं और इस पर कोई प्रकरण नहीं बनेगा क्योंकि वर्तमान में भारत में जारक्रम को अपराध की श्रेणी से हटा दिया गया है। यदि यह दोनों पक्षकार आपस में विवाह कर लेते हैं तो फिर आपराधिक प्रकरण बन सकता है लेकिन लिव इन के रहते हुए कोई भी आपराधिक प्रकरण नहीं बनेगा। लिव इन के संबंध में भारत के उच्चतम न्यायालय ने दिशा-निर्देश भी जारी किए हैं जिसमें यह बताया गया है कि लिव इन चोरी छुपे नहीं होना चाहिए बल्कि वह स्पष्ट होना चाहिए और जनता में इस बात की जानकारी होना चाहिए कि यह दो लोग आपस में बगैर विवाह के लिव-इन में रह रहे हैं।

    यदि ऐसे लिव इन में रहते हुए कोई संतान की उत्पत्ति होती है तब वह संतान माता पिता की संपत्ति में उत्तराधिकार भी रखेगी लेकिन ऐसी संतान को अधर्मज संतान कहा जाता है हालांकि इसके अधिकार एक धर्मज संतान के समान ही होते हैं।

    लिव इन में रहने पर बनेगा तलाक का आधार

    यदि किसी शादी के कोई पक्षकार पति या पत्नी में से एक दूसरे को छोड़कर किसी दूसरे व्यक्ति के साथ लिव-इन में रहते हैं तब विरोधी पक्षकार को तलाक का आधार प्राप्त हो जाता है। हिंदू मैरिज एक्ट,1955 व्यभिचार को तलाक का आधार मानता है। इस स्थिति में व्यथित पक्षकार न्यायालय में मुकदमा संस्थित कर तलाक की याचना कर सकता है। जहां वह न्यायालय को यह कह सकता है कि विवाह का पक्षकार किसी दूसरे व्यक्ति के साथ लिव-इन में रह रहा है तथा लिव-इन में रहते हुए भी व्यभिचार कर रहा है और उसके व्यभिचार के कारण उसे तलाक का अधिकार प्राप्त है। हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के अंतर्गत उसे तलाक मिल सकता है लेकिन लिव इन पर व्यथित व्यक्ति किसी भी तरह का कोई आपराधिक प्रकरण दर्ज नहीं करवा सकता।

    लिव इन में साथ रहते हुए विवाद होने पर शोषण या बलात्कार के आरोप

    अधिकांश मामलों में देखने में आता है कि लिव इन में रहते हुए पक्षकार विवाद होने पर अत्यधिक उत्तेजित हो जाते हैं तथा कई दफा पक्षकारों पर बलात्कार जैसे गंभीर आरोप भी लगा दिए जाते हैं। भारत के उच्चतम न्यायालय ने इस स्थिति से निपटने हेतु हाल ही के मामले में यह स्पष्ट किया है कि लिव इन में विवाद होने पर महिला बलात्कार जैसे संगीन आरोप नहीं लगा सकती लेकिन यहां पर हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि लिव इन भारत के उच्चतम न्यायालय द्वारा बताए गए दिशा निर्देशों के अनुसार ही होना चाहिए।

    कोई भी लिव इन चोरी-छिपे नहीं होना चाहिए जिसकी जानकारी जनता को नहीं हो एवं लिव-इन में रहने वाले पक्षकार एक दूसरे का शपथ पत्र भी ले सकते हैं जिसमें इस बात का उल्लेख हो कि हम दो लोग आपसी सहमति से एक दूसरे के साथ लिव-इन में रह रहे हैं। यह साक्ष्य होता है जिससे यह स्पष्ट होता है की दो व्यक्ति आपस में लिव-इन में रह रहे हैं।

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