ऑनलाइन गेमिंग एक्ट, 2025: की वैधानिकता का संवैधानिक विश्लेषण
LiveLaw Network
8 Sept 2025 3:58 PM IST

प्रस्तावना
20 अगस्त को, लोकसभा ने सात मिनट की चर्चा के बाद ऑनलाइन गेमिंग संवर्धन एवं विनियमन विधेयक, 2025 पारित कर दिया। अगले दिन राज्यसभा ने इसे पारित कर दिया और 22 अगस्त को राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने के बाद यह विधेयक कानून बन गया। सरकारी आँकड़े बताते हैं कि "रियल मनी गेम्स" (आरएमजी) के कारण भारतीयों को हर साल करोड़ का नुकसान हो रहा है। कर्नाटक में पिछले 31 महीनों में ऑनलाइन गेमिंग की लत के कारण आत्महत्या के 32 मामले सामने आए हैं। वहीं दूसरी तरफ आरएमजी उद्योग का कहना है कि इस प्रतिबंध से 400 से अधिक कंपनियों में दो लाख से ज़्यादा नौकरियाँ खतरे में पड़ सकती हैं।
भारत का डिजिटल लैंडस्केप तेजी से बदल रहा है। ऑनलाइन गेमिंग, एक बार मनोरंजन का एक छोटा सा क्षेत्र था, जो अब एक बहु-अरब डॉलर का उद्योग बन गया है जिसमें लाखों भारतीय उपभोक्ता और रोजगार शामिल हैं। इस तेजी से विकसित हो रहे क्षेत्र में उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने, राजस्व सुनिश्चित करने, और सामाजिक कल्याण को बनाए रखने के लिए एक मजबूत नियामक ढांचे की आवश्यकता को महसूस करते हुए, भारत सरकार ने "The Promotion and Regulation of Online Gaming Act, 2025" (ऑनलाइन गेमिंग के प्रोत्साहन और विनियमन अधिनियम, 2025) पेश किया है।
हालाँकि, किसी भी नए केंद्रीय कानून की तरह, यह अधिनियम भी संविधान की कसौटी पर खरा उतरना होगा। इस लेख का उद्देश्य इस अधिनियम की संवैधानिक वैधता का गहन विश्लेषण करना है, जिसमें संसद की इसे बनाने की विधायी क्षमता (legislative competence), मौलिक अधिकारों पर इसके प्रभाव, और संघवाद के सिद्धांतों के साथ इसके अनुपालन का परीक्षण किया जाएगा।
अधिनियम के प्रमुख प्रावधान: एक संक्षिप्त अवलोकन: संवैधानिकता की जांच से पहले, अधिनियम की मुख्य विशेषताओं को समझना आवश्यक है: -
केंद्रीय नियामक: अधिनियम एक स्वतंत्र केंद्रीय ऑनलाइन गेमिंग आयोग (Online Gaming Commission) के गठन का प्रस्ताव करता है।
वर्गीकरण: यह 'गेम ऑफ स्किल' (कौशल के खेल) और 'गेम ऑफ चांस' (दाव/जुआ) के बीच अंतर करता है, और केवल पूर्व को विनियमित और बढ़ावा देता है।
लाइसेंसिंग: भारत में सेवाएं प्रदान करने वाले सभी ऑनलाइन गेमिंग प्लेटफॉर्म के लिए अनिवार्य लाइसेंसिंग।
उपभोक्ता संरक्षण: युवाओं और कमजोर वर्गों की सुरक्षा, डेटा गोपनीयता, और निष्पक्ष खेल (fair play) सुनिश्चित करने के लिए दिशा-निर्देश।
जीएसटी और कराधान: ऑनलाइन गेमिंग से होने वाले राजस्व पर कर लगाने के लिए एक समान मानदंड निर्धारित करना।
संविधान की सातवीं अनुसूची: विधायी क्षमता का प्रश्न: - भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची संघ और राज्यों के बीच विधायी शक्तियों को तीन सूचियों—संघ सूची (Union List), राज्य सूची (State List), और समवर्ती सूची (Concurrent List)—में विभाजित करती है। ऑनलाइन गेमिंग अधिनियम की वैधता इस बात पर निर्भर करती है कि इसका विषय किस सूची में आता है।
1. केंद्र के पक्ष में तर्क (Union List Arguments):-
एंट्री 97: अवशिष्ट शक्तियाँ: संघ सरकार एंट्री 97 के तहत अवशिष्ट शक्तियों का दावा कर सकती है, जो संसद को किसी भी ऐसे विषय पर कानून बनाने का अधिकार देती है जो तीनों सूचियों में शामिल नहीं है। ऑनलाइन गेमिंग, विशेष रूप से इंटरनेट के माध्यम से, एक आधुनिक घटना है और स्पष्ट रूप से किसी भी राज्य सूची एंट्री में शामिल नहीं है।
एंट्री 31: दूरसंचार: इंटरनेट और दूरसंचार नेटवर्क संघ सूची के अंतर्गत आते हैं। चूंकि ऑनलाइन गेमिंग इन्हीं नेटवर्कों पर चलती है, केंद्र के पास इस पर नियमन करने की शक्ति हो सकती है।
एंट्री 88-92: निगमन और वित्त: कंपनियों का निगमन, विदेशी निवेश (FDI), और अंतर्राज्यीय व्यापार संघ के अधिकार क्षेत्र में हैं। चूंकि अधिकांश प्रमुख गेमिंग प्लेटफॉर्म कंपनियां हैं और अक्सर अंतर्राज्यीय या अंतर्राष्ट्रीय संचालन करती हैं, केंद्र हस्तक्षेप का दावा कर सकता है।
2. राज्यों के पक्ष में तर्क (State List Arguments):
राज्य सरकारें निम्नलिखित आधार पर इस अधिनियम को चुनौती दे सकती हैं:
एंट्री 34: जुए और सट्टेबाजी: यह सबसे मजबूत तर्क है। राज्य सूची की एंट्री 34 "जुए और सट्टेबाजी" के विषय पर राज्यों को विधायी शक्ति प्रदान करती है। राज्यों का तर्क होगा कि 'गेम ऑफ स्किल' और 'गेम ऑफ चांस' के बीच का अंतर धुंधला है, और यह अधिनियम अनिवार्य रूप से जुए से संबंधित एक विषय पर अतिक्रमण करता है, जो उनका विशेष डोमेन है।
एंट्री 1: लोक व्यवस्था: पुलिस और लोक व्यवस्था राज्य सूची के अधीन हैं। राज्य यह दावा कर सकते हैं कि अत्यधिक जुआ और इससे जुड़ी सामाजिक बुराइयाँ (कर्ज, अपराध) लोक व्यवस्था को प्रभावित करती हैं, और इसलिए नियमन का अधिकार उनके पास होना चाहिए।
3. समवर्ती सूची और संघवाद (Concurrent List & Federalism):
एंट्री 6: संपत्ति का हस्तांतरण: ऑनलाइन गेमिंग में पैसे या डिजिटल संपत्ति का हस्तांतरण शामिल है, जो समवर्ती सूची के अंतर्गत आ सकता है।
संघवाद की भावना: सर्वोच्च न्यायालय ने बार-बार कहा है कि संघवाद भारतीय संविधान का मूल ढांचा (basic structure) है। एक केंद्रीय अधिनियम राज्यों के अधिकारों का हनन नहीं कर सकता। अधिनियम की वैधता इस बात पर निर्भर करेगी कि क्या यह राज्यों के हितों के साथ सहयोगात्मक संघवाद (cooperative federalism) को बढ़ावा देता है या उन पर एकरूपता थोपता है।
मौलिक अधिकारों पर प्रभाव
किसी भी कानून का संवैधानिक परीक्षण अनुच्छेद 13 के तहत मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के आधार पर भी किया जा सकता है।
1) अनुच्छेद 19(1)(g): व्यापार और व्यवसाय की स्वतंत्रता: गेमिंग कंपनियाँ दावा कर सकती हैं कि अनिवार्य लाइसेंसिंग और सख्त नियम उनके व्यवसाय करने के अधिकार पर अनुच्छेद 19(1)(g) के तहत अनुचित प्रतिबंध लगाते हैं। सरकार को यह साबित करना होगा कि ये प्रतिबंध "सार्वजनिक हित में" हैं और "युक्तिसंगत" हैं (अनुच्छेद 19(6))। उपभोक्ता संरक्षण और युवाओं की सुरक्षा जैसे तर्क सरकार के पक्ष में मजबूत आधार प्रदान करते हैं।
2) अनुच्छेद 14: समानता का अधिकार: अधिनियम को यह सुनिश्चित करना होगा कि इसके वर्गीकरण (गेम ऑफ स्किल बनाम चांस) में तर्कसंगत आधार है और यह मनमाना या भेदभावपूर्ण नहीं है। यदि वर्गीकरण स्पष्ट नहीं है, तो इसे अनुच्छेद 14 का उल्लंघन माना जा सकता है।
3) अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार: सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 21 की व्याख्या व्यापक रूप में की है, जिसमें डेटा गोपनीयता (Privacy) का अधिकार भी शामिल है। चूंकि गेमिंग प्लेटफॉर्म उपयोगकर्ताओं का बड़ी मात्रा में व्यक्तिगत और वित्तीय डेटा एकत्र करते हैं, अधिनियम में डेटा सुरक्षा के मजबूत प्रावधान होना अनुच्छेद 21 के अनुपालन के लिए आवश्यक है।
न्यायिक पूर्ववर्ती (Judicial Precedents)
सर्वोच्च न्यायालय के पिछले फैसले इस मामले में मार्गदर्शन करेंगे:
1) डॉ. के.आर. लक्ष्मणन बनाम तमिलनाडु राज्य (1996): इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि 'गेम ऑफ स्किल' जुआ नहीं हैं और इन्हें चलाने वालों को व्यवसाय की स्वतंत्रता का अधिकार है। यह अधिनियम के वर्गीकरण को मजबूती प्रदान करता है।
2) स्टेट ऑफ आंध्र प्रदेश बनाम के. सत्यनारायना (1968): कोर्ट ने माना कि रम्मी एक गेम ऑफ स्किल है, जबकि तीन पत्ती जैसे गेम जुआ हैं।
3) गजानन केस (2023): 28% जीएसटी पर सर्वोच्च कोर्ट का recent फैसला, हालांकि कराधान से संबंधित है, इस बहस को प्रभावित करेगा कि ऑनलाइन गेमिंग को एक 'सेवा' के रूप में देखा जाना चाहिए या नहीं, जो केंद्र के अधिकार क्षेत्र को मजबूत करता है।
निष्कर्ष: एक संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता.
"The Promotion and Regulation of Online Gaming Act, 2025" की संवैधानिक वैधता काले और सफेद में नहीं, बल्कि धूसर रंग के क्षेत्र में निहित है। यह एक जटिल कानूनी पहेली है जहाँ केंद्र की अवशिष्ट और आर्थिक शक्तियाँ राज्यों की पारंपरिक शक्तियों से टकराती हैं।
अधिनियम के पक्ष में सबसे मजबूत तर्क आधुनिक, अंतर-राज्यीय और डिजिटल प्रकृति का है। एक राष्ट्रव्यापी डिजिटल उद्योग को राज्य-दर-राज्य के अलग-अलग नियमों के झंझट में नहीं उलझना चाहिए, जिससे निश्चित रूप से अराजकता और नियामक अंतराल (regulatory arbitrage) पैदा होगी। एक केंद्रीय नियामक एकरूपता, निश्चितता और बेहतर उपभोक्ता संरक्षण ला सकता है।
हालाँकि, अधिनियम तभी संवैधानिक रूप से मजबूत साबित होगा जब: यह 'गेम ऑफ स्किल' और 'गेम ऑफ चांस' के बीच एक स्पष्ट, वैज्ञानिक और न्यायिक रूप से बचाव योग्य अंतर स्थापित करे। यह सहयोगात्मक संघवाद का सम्मान करे। इसमें राज्यों को नीति निर्माण प्रक्रिया में शामिल करने, और लोक व्यवस्था और राजस्व साझाकरण जैसे मुद्दों पर उनके साथ सहयोग करने के प्रावधान हों। इसके प्रतिबंध अनुच्छेद 19(6) के तहत "युक्तिसंगत" हों और मौलिक अधिकारों का अनावश्यक रूप से गला न घोंटें।
अंततः, सर्वोच्च न्यायालय को संभवतः इस मामले का निपटारा करना होगा। यह संभावना है कि न्यायालय अधिनियम को संवैधानिक ठहराएगा, लेकिन इस शर्त पर कि यह राज्यों की चिंताओं को दूर करने वाले एक संतुलित और सहयोगात्मक दृष्टिकोण को अपनाए। ऑनलाइन गेमिंग अधिनियम, 2025, भारत के संवैधानिक ढांचे की लचीलापन और एक बदलती दुनिया में प्रासंगिक बने रहने की इसकी क्षमता की एक दिलचस्प परीक्षा पेश करता है। इसका अंतिम लक्ष्य न केवल उद्योग को विनियमित करना होना चाहिए, बल्कि एक ऐसा वातावरण बनाना होना चाहिए जो नवाचार को बढ़ावा दे, उपभोक्ताओं की रक्षा करे, और भारत के संघीय ताने-बाने का सम्मान करे।
लेखक- निशिकांत प्रसाद, (सहायक अध्यापक) इंस्टीट्यूट आफ लीगल स्टडीज, रांची विश्वविद्यालय, रांचीl (झारखंड)

