चंद्रयान-3 की सफलता के बहाने स्पेस मिशनों से सम्बंधित कानूनों की एक झलक

Alok Rajput

31 Aug 2023 7:42 AM GMT

  • चंद्रयान-3 की सफलता के बहाने स्पेस मिशनों से सम्बंधित कानूनों की एक झलक

    अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉन एफ. केनेडी के बारे में एक कहानी बहुत प्रचलित है कि एक बार केनेडी ने अमेरिका की स्पेस एजेंसी, NASA (National Aeronautics and Space Administration), में अपने दौरे के दौरान एक झाड़ू लगाते हुए सफाई कर्मचारी से पूछा कि वो क्या कर रहा है तो सफाई कर्मचारी ने जवाब दिया कि वो मनुष्य को चांद तक पहुंचाने की कोशिश कर रहा है। केनेडी को सफाई कर्मचारी के द्वारा दिया हुआ जवाब बहुत ही सामान्य तरीके से हमें यह समझाने के लिये काफी है कि अंतरिक्ष में मौजूद आकाशीय पिंडों, जैसे कि चांद या मंगल ग्रह, पर आदमी के पहुंचने की चाहत सिर्फ कुछ लोगों की वैज्ञानिक सनक का मसला ना होकर पूरी मानव जाति के कल्याण से जुड़ी हुयी बात है। वर्तमान में जब हम पृथ्वी पर ऊर्जा की कमी या फिर कूड़े के निपटारे जैसी समस्याओं से जूझ रहे है तब चांद या फिर दूसरे आकाशीय ग्रहों से पृथ्वी की ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करने या फिर प्लास्टिक और ग्लोबल वार्मिंग के लिये जिम्मेदार ग्रीन हाउस गैसों को इन दूसरे ग्रहों पर भेजकर पृथ्वी का बचाव करने जैसी संभावनाएं इस बात पर ही निर्भर करती है कि दुनिया भर की तमाम स्पेस ऐजेन्सिया अंतरिक्ष के क्षेत्र में कितनी तेजी के साथ अनुसंधान कर पाती है।

    इसी प्रकार के अनुसंधान को आगे बढ़ाते हुए ISRO (Indian Space Research Organization) के नेतृत्व में बीते 23 अगस्त को भारत के चंद्रयान- 3 ने चांद पर सफलतापूर्वक लैंडिंग की। विश्व में चांद पर उपस्थिति दर्ज कराने के मामले में अब अमेरिका, रूस, चीन के बाद भारत की गिनती चौथे नंबर पर की जायेगी। भारत का चंद्रयान-3 इतिहास में पहला अंतरिक्ष यान है जो कि चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचा है।

    चूंकि दुनिया भर के अंतरिक्ष मिशन कही ना कही मानव कल्याण से जुड़े रहे है, इन मिशनों से अपने-अपने देश या समाज को ज्यादा से ज्यादा फायदा पहुंचाने की होड़ कई सारे कानूनी विवादों को भी जन्म देती रही है।

    दूसरे विश्व युद्ध के खत्म होने के बाद दुनिया के दो सबसे शक्तिशाली देशों- सोवियत रूस और यूनाइटेड स्टेट ऑफ अमेरिका- के बीच सीधे तौर पर तो लड़ाईयां कम हो गई थी लेकिन बहुत समय तक अलग-अलग मोर्चों पर ये दोनों देश आपस में अप्रत्यक्ष रूप भिड़ते रहे। इसी अप्रत्यक्ष लड़ाई को शीत युद्ध कहा जाता है। शीत युद्ध की ही की वजह से जब वर्ष 1957 में सोवियत रूस ने अपने सैटेलाइट, स्पुतनिक, को आकाश में भेजा तब दुनिया भर में इस विषयों पर गरमा-गरम बहस होने लगी कि यदि चांद सरीखे ग्रहों पर मानव प्रयोग के लिये संसाधन मौजूद होंगे तो उन संसाधनों पर कानूनी रूप से किस देश का अधिकार होगा या फिर अंतरिक्ष अनुसंधान में प्रयोग होने वाले राकेटो आदि से उत्पन्न हुए मलबे से यदि किसी भी देश को कोई क्षति होती है तो कानूनन इस क्षति की जिम्मेदारी कौन लेगा आदि।

    इन्हीं सभी संभावित विवादों के निपटारे की रूपरेखा के रूप में आउटर स्पेस संधि (outer space treaty) के प्रावधानों को वर्ष 1967 में लागू किया गया। इस संधि का आर्टिकल- 1 यह स्पष्ट रूप से कहता है कि सभी देशों को इस बात की आजादी होगी कि वे किसी भी भेदभाव के बिना आकाशीय पिंडों पर खोज यात्रा करने के लिए स्वतंत्र होंगे लेकिन साथ ही साथ इसी संधि का आर्टिकल- 2 ये भी कहता है कि अपने फायदे के लिये कोई भी देश किसी आकाशीय पिंड पर कब्जा कर के उस पर अपनी संप्रभुता घोषित नहीं कर सकता हैं। चूंकि भारत आउटर स्पेस संधि का हिस्सा है भारत अब तक अंतरराष्ट्रीय कायदे-कानूनों के प्रति प्रतिबद्ध रहने के साथ-साथ आकाशीय मिशनों से होने वाले सामाजिक एवं आर्थिक लाभों के प्रति भी सजग रहा हैं।

    आकाशीय मिशनों के माध्यम से अब तक भारत ने पृथ्वी के आस-पास सैटेलाइट स्थापित करके अपनी संचार व्यवस्था को लगातार दुरुस्त करने की कोशिश की है। इसी क्रम में संचार व्यवस्था (टेलीकम्यूनिकेशन और ब्रॉडकास्टिंग) से जुड़े विवादों के निपटारे के लिये भारत की विधायिका ने नेशनल टेलीकॉम पालिसी (1994), न्यू टेलीकॉम पालिसी (1999) और SATCOM पालिसी (1999) जैसे कानूनी प्रावधानों की व्यवस्था भी की है।

    चूंकि भारत सरकार अंतरिक्ष से जुड़े सभी विषयों पर सैटेलाइट एक्टिविटी एक्ट नामक एक सामूहिक नियमावली बनाने के लिये तत्पर है, वर्ष 2017 में सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र में चर्चा के लिये स्पेस एक्टिविटी बिल का ड्राफ्ट तैयार किया था। पिछले अप्रैल माह में इंडियन स्पेस पॉलिसी को स्वीकृति देने के बाद भारत सरकार ने चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग के समय ही उन प्राइवेट कंपनियों को किसी भी प्रकार के GST (Goods and Services Tax) से मुक्त कर दिया है जो कंपनियां अपनी लॉन्चिंग प्रणाली से राकेट आदि को लांच करके सैटेलाईटो को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने में सक्षम होगी। इसी के साथ ही बीते जुलाई माह में भारत ने अमेरिका के द्वारा प्रस्तावित Artemis समझौते में भी हिस्सा लिया है जिससे भविष्य के आकाशीय मिशनों में भारत की स्थिति और भी ज्यादा सुधरने की संभावना हैं।

    हालांकि अमेरिका की आउटर स्पेस संधि पर स्थिति स्पष्ट नहीं है जिससे इस बात का दावा करना मुश्किल है कि अमेरिका आकाशीय पिंडों को प्राइवेट प्रापर्टी की तरह देखता है कि नहीं। अमेरिका के साथ Artemis समझौते का हिस्सा बनने के बाद अंतरिक्ष मिशनों पर भारत की नीति में क्या-क्या बदलाव आते है ये भविष्य में आने वाले उतार- चढ़ाव पर निर्भर करेगा।

    इसी के साथ उम्मीद है कि मानव कल्याण में भारत के स्पेस मिशन सतत जारी रहेंगे और विश्व की कोई भी ताकत आकाशीय पिंडों पर अपना एकमुश्त कब्जा करने के उद्देश्य से काम नहीं करेगी।

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