वकील और जज काला कोट और बैंड क्योंं पहनते हैं? एडवोकेट और लॉयर में क्या है अंतर

Shadab Salim

16 Dec 2019 3:15 AM GMT

  • वकील और जज काला कोट और बैंड क्योंं पहनते हैं? एडवोकेट और लॉयर में क्या है अंतर

    आपने अदालत के आसपास या अदालतों के भीतर वकीलों को काला कोर्ट और गले में टाई नुमा बैंड के साथ देखा होगा और वकीलों को बहुत सारे नामों के साथ भी सुना होगा। आप इस बात से अनभिज्ञ हो सकते हैं कि आख़िर इन नामों में क्या अंतर है और इस वेशभूषा के पीछे क्या कारण है?

    किसी भी प्रोफ़ेशन में एक तयशुदा वेशभूषा हो सकती है। इस ही तरह वकीलों की भी एक तयशुदा वेशभूषा है और यह वेशभूषा वकीलों के लिए अनिवार्य भी है। इस वेशभूषा के लाभ भी हैं, जिससे अदालतों में वकील दूर से ही आम जनता के बीच पहचान में आ जाते हैं।

    काला कोट

    वकीलों और न्यायाधीश द्वारा पहने जाने वाले काले कोट के पीछे बहुत सारे तर्क बताए जाते हैं।भारत की अदालतों में भी वकीलों और न्यायाधीशों द्वारा काले रंग के कोट के साथ गाउन भी पहना जाता है। अधिवक्ता अधिनियम 1961 में वकीलों के लिए बने नियमों में भी अदालत के भीतर वक़ील और न्यायाधीशों को काला कोट तथा गले मे बैंड पहनने को अनिवार्य किया गया है।

    इस प्रथा का उदय इंग्लैंड से हुआ। सबसे पहले काले रंग का कोट वकीलों द्वारा इंग्लैंड में ही पहना गया है। 1685 में किंग चार्ल्स दि्तीय का निधन हो गया था, जिसके बाद कोर्ट के सभी वकीलों को शोक प्रकट करने के लिए काले रंग का गाउन/कोर्ट पहनने का आदेश दिया था। इसके बाद कोर्ट में काले रंग का कोर्ट पहनने का चलन शुरू हो गया।

    भारतीय न्यायपालिका में कई चीजें ऐसी हैं जो अंग्रेजों के समय से चलती आ रही हैं, इसलिए आज भी काले रंग का कोट वकील पहनते हैं। केवल कोट ही नहीं बल्कि अन्य भी ऐसी प्रथाएं हैं, जो ब्रिटिश काल में प्रारंभ हुईं।

    काला रंग अंधत्व का प्रतीक है। इसका अर्थ यह है कि वक़ील एवं न्यायाधीश किसी तरह का पक्षपात नहीं करेंगे। जज न्याय के प्रति अटल रहेगा और वक़ील अपने मुवक्किल के प्रति ईमानदार रहेगा। वह अपने मुवक्किल से इतर किसी जाति, धर्म, भाषा, लिंग, क्षेत्र का कोई भेदभाव नहीं करेगा।

    काला रंग ऐसा रंग है जिस रंग पर आप कोई अन्य रंग नहीं चढ़ा सकते तथा न्यायपालिका को इस रंग से जोड़ने का कारण यही है कि न्यायालय किसी रंग में नहीं रंगा जा सकेगा तथा वह न्याय को लेकर अटल रहेगा, उस पर कोई रंग नहीं चढ़ाया जा सकता।

    काला रंग शक्ति और शौर्य का भी प्रतीक रहा है, इसलिए भी कोट और गाउन के रंग को काला रखा गया है।

    गाउन

    उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के वकीलों और न्यायधीशों द्वारा गायन भी पहना जाता है। इंग्लैंड की अदालतों में भी इस तरह का गाउन पहना जाता है। इस गाउन की शुरुआत इंग्लैंड द्वारा ही कि गई । इंग्लैंड में विधि व्यवसाय संपन्न घरो के लोगों द्वारा किया जाता था और लंबे कपड़े पहनना सम्पन्न घरों के लोगो की पहचान हुआ करती थी।

    वकालत अधिकांश सेवार्थ रूप से धनवान उच्च शिक्षित लोगों द्वारा की जाती थी, ऐसे लोग इस तरह का गाउन पहनते थे। इस गाउन में पीछे दो पॉकेट होते थे तथा मुवक्किल अपने वकील के इस गाउन की जेब में जो श्रद्धा भक्ति होती थी, उसके अनुसार धन डाल दिया करते थे। वकीलों द्वारा मुवक्किल से कोई फीस नहीं मांगी जाती थी।

    बैंड

    बैंड वकीलों की वेशभूषा का अहम हिस्सा है और भारतीय वकीलों के लिए बैंड अनिवार्य भी किया गया है। किसी समय वकीलों द्वारा अपनी कॉलर को छिपाने के लिए बैंड पहन कर जाते थे तथा यह बैंड लिनन का एक कड़क कपड़ा होता था। लिनन महंगा कपड़ा होता था, जिससे मिस्र में मुर्दो को लपेटकर पिरामिड इत्यादि में रखा जाता था।

    बाद में वकीलों की वेशभूषा में सफेद बैंड को भी जोड़ दिया गया।अधिनियम 1961 के तहत अदालतों में सफेद बैंड टाई के साथ काला कोट पहन कर आना अनिवार्य कर दिया गया था।यह वेशभूषा आज वकीलों की पहचान बन गई है।

    कितने नामों से जाने जाते हैंं वक़ील

    सामान्यतः वक़ील प्लीडर,अधिवक्ता, अभिभाषक,एडवोकेट, एडवोकेट जनरल, अटॉर्नी जनरल, लॉयर, लोक अभियोजक,सालिसिटर को कहा जाता है।

    वक़ील शब्द उर्दू का है तथा यह उस समय से प्रचलन में है, जिस समय से भारत में मुगल शासक शासन किया करते थे। दंड संहिता के नाम पर भारत में ताज़िरात ए हिन्द लागू थी। बाद में ब्रिटिश शासकों द्वारा इसे भारतीय दंड संहिता का नाम दिया गया तथा इसका ड्राफ्ट पुनः तैयार किया गया। वकील का अर्थ होता है किसी अन्य व्यक्ति की ओर से बोलने वाला व्यक्ति।

    अब भारतीय न्यायालयों में केवल अधिवक्ता,अभिभाषक और एडवोकेट शब्द से लिखित रूप में वकीलों को जाना जाता है, परन्तु वकीलों के भिन्न भिन्न पद भी है।

    लॉयर

    अंग्रेजी का एक शब्द है, लॉयर। लॉयर, वह होता है जिसके पास लॉ (law) की डिग्री होती है, जो कानून के क्षेत्र में प्रशिक्षित होता है और कानूनी मामलों पर सलाह और सहायता प्रदान करता है। अर्थात विधि स्नातक, कानून का जानकार, जिसने LLB की डिग्री ले ली हो, वह लॉयर बन जाता है। उसके पास न्यायालय में मुकदमा को लड़ने की अनुमति नहीं होती है, लेकिन जैसे ही उसको बार काउंसिल ऑफ इंडिया से सनद मिलती है, वह BCI की परीक्षा को पास कर लेता है तो किसी भी कोर्ट में पैरवी के लिए अधिकृत हो जाता है, तब वह एडवोकेट बन जाता है। हर एडवोकेट लॉयर होता है, परन्तु हर लॉयर एडवोकेट नहीं होता।

    एडवोकेट

    एडवोकेट, जिसे अधिवक्ता, अभिभाषक कहा जाता है। यानी आधिकारिक वक्ता जिसके पास किसी की तरफ से बोलने का अधिकार होता है, वह अधिवक्ता होता है एडवोकेट इंग्लिश में एक verb है जिसका अर्थ है पक्ष लेना।

    एडवोकेट वह होता है, जिसको कोर्ट में किसी अन्य व्यक्ति की तरफ से पैरवी करने का अधिकार प्राप्त हो। सरल शब्दों में कहें तो एडवोकेट दूसरे व्यक्ति की तरफ से दलीलों को कोर्ट में प्रस्तुत करता है। अधिवक्ता बनने के लिए कानून (Law) की पढ़ाई को पूरा करना अनिवार्य होता है। व्यक्ति पहले लॉयर होता है फिर एडवोकेट होता है।

    बैरिस्टर

    यदि कोई व्यक्ति लॉ (law) की डिग्री इंग्लैंड से प्राप्त करता है तो उसे बैरिस्टर कहा जाता है तथा उसे इंग्लैंड का मौखिक संविधान कंठस्थ होता है। बैरिस्टर एक तरह वकील का ही प्रकार होता है जो कि आम कानून न्यायालय में अपनी प्रैक्टिस करता है परन्तु बैरिस्टर का अर्थ शिक्षा से लिया जाता है।

    व्यक्ति यदि विधि शिक्षा इंग्लैंड के किसी विश्वविद्यालय से अर्जित करता है तो वह बैरिस्टर होगा क्योंकि इंग्लैंड में विधि की उपाधि उसे ही प्राप्त होती है जो इंग्लैंड का मौखिक संविधान कंठस्थ करता है। बैरिस्टर को भी राज्य की बार कौंसिल में अपना नाम दर्ज़ करवा देने पर एडवोकेट का दर्जा प्राप्त हो जाता है।

    लोक अभियोजक

    वह व्यक्ति जिसके पास लॉ (law) की डिग्री है, एडवोकेट होने की क्षमता है, जिसने BCI की परीक्षा को पास किया हुआ है और अगर ये व्यक्ति राज्य सरकार की तरफ से पीड़ित का पक्ष लेता है यानी विक्टिम की तरफ से कोर्ट में प्रस्तुत होता है तो इसे ही हम पब्लिक प्रोसिक्यूटर या लोक अभियोजक कहते हैं।

    दंड प्रक्रिया सहिंता की सेक्शन 24 के 2 (u) में लोक अभियोजक के बारे में बताया गया है। लोक अभियोजक एक ऐसा व्यक्ति है जिसे आपराधिक मामलों में राज्य की ओर से मामलों का प्रतिनिधित्व करने के लिए केंद्र सरकार या राज्य सरकार द्वारा दंड प्रक्रिया के प्रावधानों के तहत नियुक्त किया जाता है।

    लोक अभियोजक की मुख्य भूमिका जनता के हित में न्याय दिलाना होता है। सरकारी अभियोजक का काम तब शुरू होता है जब पुलिस ने अपनी जांच समाप्त कर कोर्ट में आरोपी के खिलाफ चार्ज शीट दायर की हो। सरकारी वकील से अपेक्षा की जाती है कि वह निष्पक्ष रूप से कार्य करे और मामले के सभी तथ्यों, दस्तावेजों, और साक्ष्य को प्रस्तुत करे ताकि सही निर्णय पर पहुंचने में अदालत की सहायता की जा सके।

    प्लीडर

    अगर व्यक्ति डिग्रीधारी है या एडवोकेट है, प्राइवेट पक्ष की तरफ से कोर्ट में आता है तो प्लीडर बन जाता है। प्लीडर दरअसल वह व्यक्ति होता है जो अपने मुवक्किल की ओर से कानून की अदालत में याचिका दायर करता है और उसकी पैरवी करता है। सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 में धारा 2 (7) के तहत एक सरकारी याचिकाकर्ता भी बनता है, जो राज्य सरकार द्वारा सिविल प्रोसीजर कोड 1908 के अनुसार, सभी सरकारी कार्यों के लिए नियुक्त किया जाता है।अर्थात सरकार के निर्देशों के तहत कार्य करने वाला कोई भी अभिवचनकर्ता।

    महाधिवक्ता (Advocate general)

    एक ऐसा व्यक्ति जिसके पास लॉ (law) की डिग्री है, जिसके पास एडवोकेट होने की क्षमता है और अगर वह राज्य सरकार की तरफ से उनका पक्ष रखने के लिए कोर्ट में आता है तो उसे महाधिवक्ता या Advocate General कहा जाता है। भारत में, एक एडवोकेट जनरल एक राज्य सरकार का कानूनी सलाहकार होता है। इस पद को भारत के संविधान द्वारा बनाया गया है। प्रत्येक राज्य का राज्यपाल, महाधिवक्ता, एक ऐसे व्यक्ति को नियुक्त करता है, जो उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने के लिए योग्य हो।

    महान्यायवादी-

    अगर ये ही व्यक्ति जिसके पास लॉ की डिग्री है, एडवोकेट होने की क्षमता है और अगर ये केंद्र सरकार की तरफ से कोर्ट में उनका पक्ष रखने के लिए प्रस्तुत होता है तो वह महान्यायवादी (Attorney General) बन जाता है।

    संविधान के अनुच्छेद 76 के तहत भारत के महान्यायवादी पद की व्यवस्था की गई है। वह देश का सर्वोच्च कानून अधिकारी होता है। इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा होती है। उसमें उन योग्यताओं का होना आवश्यक है, जो उच्चतम न्यायालय के किसी न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए होती है। दूसरे शब्दों में कहें तो, उसके लिए आवश्यक है कि वह भारत का नागरिक हो, उसे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में काम करने का पांच वर्षों का अनुभव हो या किसी उच्च न्यायालय में वकालत का 10 वर्षों का अनुभव हो या राष्ट्रपति के मत अनुसार वह न्यायिक मामलों का योग्य व्यक्ति हो।

    महान्यायवादी के कार्यकाल को संविधान द्वारा निशिचत नहीं किया गया है।इसके अलावा संविधान में उसको हटाने को लेकर भी कोई मूल व्यवस्था नहीं दी गई है।

    सॉलिसिटर जनरल-

    अगर यही व्यक्ति जिसके पास लॉ की डिग्री है, एडवोकेट होने की क्षमता है और अटॉर्नी जनरल का असिस्टेंट बन जाता है तो उसे सॉलिसिटर जनरल कहा जाता है।

    वह देश का दूसरा कानूनी अधिकारी होता है, अटॉर्नी जनरल की सहायता करता है, और सॉलिसिटर जनरल को चार अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल द्वारा सहायता प्रदान की जाती है। भारत में अटॉर्नी जनरल की तरह, सॉलिसिटर जनरल और विधि अधिकारियों (नियम और शर्तें) नियम, 1972 के संदर्भ में भारत में सॉलिसिटर जनरल सरकार को सलाह देते हैं और उनकी ओर से पेश होते हैं। हालांकि, अटॉर्नी जनरल के पद के विपरीत, जो कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 76 के तहत एक संवैधानिक पद है, सॉलिसिटर जनरल और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के पद केवल वैधानिक हैं।अपॉइंटमेंट कैबिनेट समिति सॉलिसिटर जनरल की नियुक्ति करती है।

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