वकील इस तरह बनाएं मुवक्किल के साथ अपने संबंध बेहतर, कुछ सुझाव

SPARSH UPADHYAY

4 Feb 2020 9:44 AM IST

  • वकील इस तरह बनाएं मुवक्किल के साथ अपने संबंध बेहतर, कुछ सुझाव

    वकालत करने वाला हर शख्स इस बात को समझता है कि एक वकील को अपने मुवक्किल के प्रति विश्वास एवं वफादारी का प्रदर्शन करना चाहिए। इस तरह का संबंध यह सुनिश्चित करता है कि वकील हर समय अपने मुवक्किल के हितों को निरंतर आगे बढाता रहे। वकीलों को हितों के टकराव से बचने की कोशिश करनी चाहिए अन्यथा मुवक्किल को न्याय दिलाने में खलल पड़ सकता है। किसी भी परिस्थिति में मुवक्किल के हित को वकील द्वारा कमजोर नहीं किया जाना चाहिए।

    एक मुवक्किल के लिए न्याय तक पहुंच का मतलब अनिवार्य रूप से एक वकील तक पहुंच से भी है। कानूनी पेशा, एक सार्वजनिक चरित्र का पेशा होता है। एक वकील को स्टेट और नागरिक के बीच रखा जाता है; इसलिए, वह एक लोकतांत्रिक, स्वतंत्रतावादी और मुक्तिवादी कार्य करता है। संयुक्त राज्य के एक प्रतिष्ठित फैसले (स्टॉकटन बनाम फोर्ड, 1850) में न्यायमूर्ति नेल्सन ने सही कहा था कि एक वकील और उसके मुवक्किल के बीच विश्वास, ईमानदारी और सच्चाई से भरे रिश्ते से ऊपर दुनिया का कोई रिश्ता नहीं है।

    मौजूदा लेख में हम एक वकील एवं उसके मुवक्किल के बीच के सम्बन्ध पर प्रकाश डालेंगे और यह जानेंगे कि इस सम्बन्ध को किस प्रकार से बेहतर किया जा सकता है।

    किस हद तक वकील ले सकता है मुवक्किल के लिए निर्णय?

    वकीलों को अपने मुवक्किल के एजेंट के रूप में देखा और जाना जाता है। वकील या एजेंट के रूप में एजेंसी के नियम भले ही वकील-मुवक्किल के सम्बन्ध पर कड़ाई से लागू नहीं हो सकते हैं, परन्तु वकीलों के पास अपने मुवक्किल से जुड़े कुछ प्राधिकरण और कर्तव्य मौजूद होते ही हैं। क्योंकि वकील को अपने मुवक्किल का पक्ष अदालत में रखना होता है, इसलिए उनके कर्त्तव्य कभी-कभी अन्य एजेंटों की तुलना में अधिक मांग एवं जिम्मेदारी से भरे होते हैं।

    वकील-मुवक्किल के आपसी सम्बन्ध के सबसे बुनियादी सिद्धांतों में से एक यह है कि वकीलों को अपने मुवक्किलों के लिए सभी पारंपरिक कर्तव्यों का निर्वहन करना होता है। वकीलों को अपने मुवक्किल के निर्देशों का पालन करना चाहिए, न कि मुवक्किल के लिए अपने निर्णय को प्रतिस्थापित करना चाहिए। इस बात को लेकर कानून अब अच्छी तरह से तय हो गया है कि एक वकील को विशेष रूप से एक दावे को निपटाने और समझौता करने के लिए मुवक्किल द्वारा अधिकृत किया गया होना चाहिए।

    हिमालयन कोआपरेटिव ग्रुप हाउसिंग सोसाइटी बनाम बलवान सिंह एवं अन्य (2015) 7 SCC 373 के मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह माना था कि वैकल्पिक रूप से यह कहा जा सकता है कि एक वकील के पास अपने मुवक्किल के कानूनी लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए साधन चुनने का अधिकार है, जबकि मुवक्किल को यह तय करने का अधिकार है कि उसका लक्ष्य क्या होगा। यदि वो निर्णय, जिसे मुवक्किल द्वारा लिया जाना चाहिए और वकील उन्हें लेता है, तो क्लाइंट से सलाह लेने में असफल होने का वकील का आचरण उचित नहीं माना जायेगा।

    इसलिए, यह वकील का एकमात्र कर्तव्य है कि वह अपने मुवक्किल द्वारा उसे दिए गए अधिकार-क्षेत्र के बाहर जाकर कार्य न करे। कोई भी महत्वपूर्ण कार्य/निर्णय, जो सीधे तौर पर मुवक्किल के कानूनी अधिकार को प्रभावित कर सकता है, लेने से पहले अपने क्लाइंट या उसके अधिकृत एजेंट से उचित निर्देश लेना वकील के लिए हमेशा बेहतर होता है।

    गौरतलब है कि एक वकील, अदालत के समक्ष अपने मुवक्किल का प्रतिनिधित्व करता है और अपने मुवक्किल की ओर से अदालत के अन्दर एवं अदालत के बाहर तमाम कार्यवाही आयोजित करता है। वह अदालत और मुवक्किल के बीच की एकमात्र कड़ी है। इसलिए उसकी ज़िम्मेदारी बड़ी है। उससे यह अपेक्षा की जाती है कि वे अपने निर्णय के स्थान पर अपने मुवक्किल के निर्देशों का पालन करेगा।

    वकील एवं मुवक्किल का सम्बन्ध कितना ख़ास?

    जब एक वकील को मुवक्किल द्वारा एक ब्रीफ सौंपा जाता है, तो उससे यह अपेक्षा की जाती है कि वह पेशेवर नैतिकता के मानदंडों का पालन करेगा और अपने मुवक्किल के हितों की रक्षा करने की कोशिश करेगा, जिसके संबंध में वह विश्वास की स्थिति में है।

    वकीलों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे ग्राहक को उसकी सुरक्षा के लिए उचित कानूनी सलाह देंगे। एक वकील, मुवक्किल की ओर से उसके लोको पेरेंटिस में रूप में खड़ा होता है और इसलिए मुवक्किल ईमानदार कानूनी सलाह प्राप्त करने का हकदार है – पांडुरंग दत्तात्रेय खांडेकर बनाम बार काउंसिल ऑफ़ महाराष्ट्र 1984 SCR (1) 414

    एक वकील का यह कर्तव्य कि वह अपने मुवक्किल के हितों को सर्वोपरि समझे, इसे माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा के. विजय लक्ष्मी बनाम आंध्र प्रदेश सरकार एवं अन्य [2013] INSC 253 के मामले में भी रेखांकित किया गया था। इसके अलावा एक वकील के लिए पारदर्शिता बरतना बेहद आवश्यक है और इस पारदर्शिता के साथ-साथ ईमानदारी होनी भी बेहद जरुरी है, जिससे उसके मुवक्किल को यह पता रहे कि उसका मामला आपके हाथ में सुरक्षित है अथवा नहीं।

    यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि वकालत एक चुनौतीपूर्ण पेशा है और इसमें आने वाली समस्त चुनौतियों के लिए आपको स्वयं को तैयार रखना चाहिए। सफल वकील बनने के आवश्यक गुण के बारे में जानने के लिए आप यह लेख पढ़ सकते हैं। आइये अब कुछ महत्वपूर्ण सुझावों पर चर्चा कर लेते हैं जिन्हें अपनाकर आप मुवक्किल के साथ अपने सम्बन्ध को बेहतर कर सकते हैं:-

    वास्तविक उद्देश्य बनायें

    एक वकील को कभी भी अपने मुवक्किल से उन सब बातों/कार्यों को लेकर कोई करार या वादा नहीं करना चाहिए जिन्हें अंजाम देना वास्तविक रूप से मुश्किल या नामुमकिन है। जब भी मुवक्किल आपसे कानूनी राय मांगने आये या कोई कदम उठाने को कहे तो उसे यह अवश्य समझा दें कि उस कदम के क्या निष्कर्ष होंगे और किस हद तक उसे सफलता की उम्मीद करनी चाहिए।

    मुवक्किल को उसके मामले के अनुसार हमेशा यह बता कर रखें कि उसके सफल होने की कितनी सम्भावना है और कभी भी उसे भ्रम में न रखें।

    गलत होने पर जिम्मेदारी लें

    यदि आपने अपने मुवक्किल के लिए अच्छा काम नहीं किया है, या अच्छा कार्य करने में नाकाम रहे हैं तो इस बात से निराश होने के बजाय यह जानने का प्रयास करने कि आखिर क्या कमी रह गयी। आपको अपनी असफलता का ज्ञान होना चाहिए और आपको तुरंत आगे से गलती न दोहराने का संकल्प लेना चाहिए, और फिर समस्या को ठीक करने पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए (चाहे वह कौशल की कमी के कारण हो, जानकारी की कमी, या किसी अन्य समस्या के कारण हो)।

    यदि आपका मुवक्किल आपके काम को लेकर निराशा जाहिर करे तो उसकी बातों को ध्यान से सुनें एवं उस पर गुस्सा न करें। आप उसे यह समझाने का प्रयास करें कि आप कैसे उस स्थिति को दुरुस्त करना चाहते हैं और उससे खुदपर विश्वास करने का आग्रह करें।

    पैटर्न देखें

    यदि आप मुवक्किल से लगातार एक ही प्रकार की शिकायतों को सुन रहे हैं, तो यह एक समस्या है, और आपको इसे ठीक करने की आवश्यकता है। यदि बहुत सारे मुवक्किल एक ही बात कह रहे हैं कि आप किसी कार्य को उचित ढंग से नहीं कर रहे हैं तो यह भी एक समस्या है, और आपको उनकी बातों पर ध्यान देना चाहिए।

    सेवा देने से पीछे कभी न हटें

    जैसा कि कोंकंदा बी. पून्दाचा एवं अन्य बनाम के. डी. गणपति एवं अन्य (2011) 12 SCC 600 के मामले में कहा गया है, एक वकील यदि एक बार अपने मुवक्किल की सेवा करने के लिए सहमत हो गया है तो उसे फिर एक बार भी पीछे नहीं हटना चाहिए। वह मामले से केवल तभी हट सकता है, जब उसके पास ऐसा करने का पर्याप्त कारण हो और वह भी तब, जब वह मुवक्किल को उचित और पर्याप्त नोटिस दे दे। केस से हटने पर, वह शुल्क के ऐसे हिस्से को मुवक्किल को वापस कर देगा जितने हिस्से के सापेक्ष उसने कार्य नहीं किया है।

    अदालत के बाहर भी रहें उपलब्ध

    वकालत पेशे में होने का मतलब पूरी तरह से समाज के प्रति समर्पित हो जाना भी होता है। आप अपने मुवक्किल के लिए अदालत के अलावा भी उपलब्ध रहें मसलन जब भी वह किसी दुविधा में हो, उसकी मदद करें और उससे बेझिझक आपसे समपर्क करते हुए अपनी शंकाओं का समाधान करने को कहें। इससे आपके और मुवक्किल एक बीच का रिश्ता प्रगाढ़ होता है और आप अपने मुवक्किल के काम भी आ सकते हैं।

    मुवक्किल के उद्देश्यों को समझें

    वकीलों को हमेशा यह समझने की कोशिश करनी चाहिए कि उसका मुवक्किल अपने मुक़दमे में या वकील से राय मांगने के दौरान क्या हासिल करने की कोशिश कर रहा है। मुवक्किल उन वकीलों पर भरोसा नहीं करते हैं जो उनकी समस्या को नहीं समझते हैं। एक बार जब आप मुवक्किल कि जरूरतों एवं आकांक्षाओं को समझ लेते हैं तो फिर चीज़ें दोनों पक्षों के लिए आसान हो जाती हैं और आप बेहतर ढंग से स्वयं को मुवक्किल के सामने पेश कर पाते हैं.

    हमेशा उचित फीस की ही करें मांग

    जब कोई मुवक्किल आपके पास आता है तो उससे मनमानी फीस की मांग कभी न करें। यह देखें कि उसकी आपसे अपेक्षा क्या है, उसके लिए किये जाने वाले कार्य की प्रकृति क्या है एवं किस हद तक उसके मामले में आपको परिश्रम करना होगा। आपको "सामान्य विवेक" के आधार पर मुवक्किल से फीस की मांग करनी चाहिए।

    यह कभी न देखें कि कोई अन्य वकील कितनी फीस ले रहा है बल्कि यह भी देखें कि आपके सामने आने वाला कार्य कितना चुनौतीपूर्ण है और आपको उससे कितना कुछ सीखने को मिल सकता है। अपनी फीस को हमेशा उचित रखें और यह ध्यान में रखें कि आप उसी दुकान से सामान लेना पसंद करते हैं जहाँ पूरे बाज़ार की अपेक्षा सामान उचित मूल्य पर मिलता है।

    मुवक्किल और स्वयं के बीच संचार का खुलासा न करें

    एक वकील को किसी भी तरह से, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से, उसके मुवक्किल द्वारा किए गए संचार का खुलासा किसी से भी नहीं करना चाहिए। वकील और मुवक्किल के बीच की सम्पूर्ण कार्यवाही में वकील द्वारा मुवक्किल को दी गई सलाह का खुलासा किसी प्रकार से नहीं करना चाहिए। हालांकि, वकील संचार का खुलासा करने के लिए तब उत्तरदायी है, यदि यह भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 126 का उल्लंघन है।

    अपने कमिटमेंट को लेकर रहें प्रतिबद्ध

    जब भी अपने मुवक्किल से कोई कमिटमेंट करें तो उसे निभाएं जरुर इससे न केवल आपकी ईमानदारी दिखती है बल्कि आपकी अपने पेशे के प्रति गंभीरता भी दिखती है. एक तो आपको स्वाभाविक कमिटमेंट ही करनी चाहिए और फिर उसके लिए गंभीर होना चाहिए. मुवक्किल की अपेक्षाओं पर खरा उतरने का हर संभव प्रयास आपको करना चाहिए.

    न्याय एवं सच्चाई से ऊपर कुछ नहीं

    एक वकील और उसके मुवक्किल के संबंधों का विश्लेषण करते हुए दत्तूगीर बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य 1994 (1) BomCR 476 के मामले में यह देखा गया था कि एक वकील, केवल ग्राहक के मुखपत्र के रूप में कार्य नहीं कर सकता है। भले ही वकील के मुवक्किल का हित निहित हो परन्तु एक वकील को न्याय की गरिमा एवं सच्चाई को बनाए रखने के ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए जो इस पेशे के खिलाफ जाता हो।

    इसलिए हमेशा ध्यान में रखें कि भले ही आपने अपने मुवक्किल से फीस ली हो और उसके ब्रीफ को स्वीकार किया हो, लेकिन जहाँ न्याय और सच्चाई की बात आये, आपको अदालत के सामने ईमानदारी से अपना पक्ष रखना चाहिए न कि अनुचित कार्यों को करते हुए अपने पक्ष में निर्णय हासिल करने का प्रयास करना चाहिए।

    अंत में, यह हमेशा ध्यान में रखें कि यह पेशा पूरी तरह से सामाजिक पेशा है और इसमें सफल होने के लिए आपको अपने सामाजिक दायित्वों को ध्यान में रखना चाहिए। कभी भी इस पेशे की शुचिता को कम कर सकने वाला कोई कार्य आपको नहीं करना चाहिए। इस बात को लेकर गाँठ बाँध लें कि आपका मुवक्किल आपकी जिम्मेदारी है और इस जिम्मेदारी को पूरी गंभीरता से सफल अंजाम तक पहुँचाना ही एक अच्छे वकील की निशानी होती है।

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