लोकतंत्र में आचार संहिता की क्या है प्रासंगिकता?

  • लोकतंत्र में आचार संहिता की क्या है प्रासंगिकता?

    भारत के संविधान निर्माताओं ने संसदीय प्रणाली में राजनीतिक दलों को एक महत्वपूर्ण स्थान दिया है। हालाँकि संविधान के प्रारंभिक रूप में राजनीतिक दलों का ज़िक्र नहीं मिलता हैं | पहली बार राजनीतिक दलों का ज़िक्र १९८५ में आया जब पचासवें संवैधानिक संशोधन अधिनियम,१९८५ के द्वारा दसवीं अनुसूची को संविधान में शामिल किया गया फिर भी इस बात में शायद ही कोई शंका हो सकती है कि भारतीय लोकतंत्र राजनीतिक दलों और उनकी विचारधाराओं के बिना संभव नहीं है. ।

    लोकतंत्र में चुनाव सबसे महत्वपूर्ण घटना है। हमारा देश, दुनिया के सबसे विविध देशों में से एक है जहाँ विभिन्न विचारधारा, धर्म, जाति आदि के लोग एक साथ रहते हैं और सबसे बड़े लोकतंत्र का निर्माण करते हैं। भारत में राजनीतिक दलों की यह जिम्मेदारी है कि वे ऐसे साधनों का उपयोग न करें, जो स्वतंत्र चुनावों के लिए अनुचित हों। इसी दृष्टि से लोकतंत्र में चुनावी आचार संहिता बहुत महवत्पूर्ण हो जाती है।

    • आचार संहिता का इतिहास

    राजनीतिक दलों के लिए आचार संहिता का विचार देने का श्रेय केरल राज्य को जाना चाहिए जहाँ पहली बार फरवरी, १९६० में विधानसभा के चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों ने अपनी स्वेच्छा से आचार संहिता का पालन किया। इसके उपरांत १९७१ के लोक सभा चुनाव में निर्वाचन आयोग द्वारा पहली बार आचार संहिता लागू की गयी। १९६० से २०१९ तक आचार संहिता ने एक लम्बा सफर तय किया है। आचार संहिता एक निष्क्रिय दस्तावेज़ से एक प्रभावी और शक्तिशाली उपकरण के रूप में विकसित हुआ है। अब राजनीतिक दल और चुनावी उम्मीदवार ही नहीं बल्कि सरकारी अफ़सर भी आचार संहिता के दायरे में लाए गए हैं। न्यायपालिका ने भी इस तथ्य को मान्यता दी है कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए निर्वाचन आयोग आचार संहिता के अनुसार आवश्यक कदम उठाने का अधिकारी है।

    • आचार संहिता क्या है?

    आचार संहिता स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए राजनीतिक दलों के व्यवहार को नियंत्रित करने वाले दिशानिर्देश हैं जिन्हे राजनीतिक दलों की सर्वसम्मति से विकसित किया गया है। इसका मुख्य उद्देश्य उन प्रथाओं को रोकने के लिए बनाया गया है जिन्हें आचार संहिता के तहत भ्रष्ट माना जाता है। उदाहरण के लिए, राजनेताओं को द्वेष और घृणा फैलाने वाले भाषण नहीं देने चाहिए या नई परियोजनाओं के बारे में वादे नहीं करना चाहिए जो मतदाता को प्रभावित कर सकते हैं। आचार संहिता यह सुनिश्चित करती है कि नागरिकों से किसी तरह का छलावा न किया जाए और सत्तारूढ़ पार्टी सरकारी मशीनरी का प्रयोग अपने पार्टी स्वार्थों के लिए न करें।

    आचार संहिता निर्देशनों का एक कोड है जिसे निर्वाचन आयोग अपनी कार्यकारी शक्तियों के तहत जारी करता है | आचार संहिता भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) आदि की तरह पूर्णतः कानूनी कोड नहीं है। इसके कई प्रावधानों का उल्लंघन किसी भी दंडात्मक कार्रवाई को आकर्षित नहीं करता है। आचार संहिता राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के मार्गदर्शन के लिए एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। राजनीतिक दलों ने स्वयं इसका पालन करने के लिए सहमति व्यक्त की है, इसलिए वे उनका सम्मान करने और उनका पालन करने के लिए बाध्य हैं। इसी सन्दर्भ में पार्टियाँ एक दूसरे की शिकायत कर कोड की पालना की ओर प्रयास करती है।

    भारतीय दंड संहिता और जनप्रतिनिधित्व कानून, १९५१ में भी कई ऐसे प्रावधान है जो परोक्ष रूप से आचार संहिता में शामिल नियमों को कानूनी बनाता है। निर्वाचन आयोग ने इन निर्देशों का उल्लंघन करने वाले राजनीतिक दलों या व्यक्तियों के खिलाफ, जहां भी आवश्यक हो कार्रवाई की है। न्यायपालिका ने समय-समय पर निर्वाचन आयोग के ऐसे निर्देशों को मान्यता दी है। उदाहरण के लिए,२०१५ में तमिलनाडु विधानसभा के लिए हुए उपचुनाव के समय, मिनी बसों पर सत्तारूढ़ पार्टी के प्रतीक के रूप में पत्तियों के चित्रों को कवर करने के निर्वाचन आयोग के आदेश को मद्रास उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी गई थी, लेकिन अदालत ने कहा कि निर्वाचन आयोग का उक्त आदेश अनुच्छेद ३२४ के तहत उसके अधिकार क्षेत्र में था।

    • आचार संहिता कितने समय तक लागू रहती है?

    आचार संहिता ठीक उसी समय से लागू हो जाती है जैसे ही निर्वाचन आयोग द्वारा चुनावी कार्यक्रम की घोषणा की जाती है। लोक सभा चुनाव के मामले में चुनाव अधिसूचना के अनुसार चुनाव प्रक्रिया पूरी होने तक आचार संहिता लागू हो जाती है । उपचुनाव के मामले में उपचुनाव का परिणाम घोषित होने तक आचार संहिता लागू रहती है। आचार संहिता लोक सभा एवं विधान सभा के सभी चुनावों में लागू होता है। यह स्थानीय निकाय, स्नातक और शिक्षक निर्वाचन क्षेत्रों से विधान परिषदों के चुनावों के मामले में भी लागू होती है।

    • किन-किन पर लागू होती है आचार संहिता?

    लोक सभा चुनाव के समय आचार संहिता पूरे भारत में और विधान सभा चुनाव के समय यह संबंधित राज्य में लागू होती है । इसके के प्रावधान सभी संगठनों, समितियों, निगमों, आयोगों, आदि पर लागू होते हैं, जो केंद्रीय अथवा राज्य वित्त मंत्रालय द्वारा पूर्णतः या आंशिक रूप से वित्त पोषित होते हैं।

    • निर्वाचन आयोग द्वारा उठाये गए विशेष उपाय

    आचार संहिता को लागू करने के लिए निर्वाचन आयोग कई तरह के एक्शन्स ले सकता है जैसे-

    1. प्रत्येक चुनाव के समय, निर्वाचन आयोग केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को निर्देश जारी करता है कि वे किसी भी बड़ी वित्तीय पहल के लिए घोषणा करने से परहेज करें ।

    2. किसी राज्य में आम चुनाव के लिए प्रक्रिया शुरू होने से पहले, निर्वाचन आयोग सभी सरकारी अधिकारियों के तबादलों / पोस्टिंग पर विस्तृत दिशा-निर्देश जारी करता है, जो सीधे तौर पर चुनाव से जुड़े रहते हैं।

    https://eci.gov.in/faqs/mcc/model-code-of-conduct-r15/.

    • एक नागरिक आचार संहिता के सुचारू संचालन के लिए क्या कर सकता है?

    लोकतंत्र में वोट देना नागरिक का सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्य है। परन्तु एक आदर्श लोकतंत्र में वोट देने के इलावा भी ऐसी कई ज़िम्मेदारियाँ है जिसका निर्वाहन एक आदर्श नागरिक को करना चाहिए। हमारा यह भी कर्तव्य है कि हम चुनाव निरपेक्ष एवं पारदर्शिता से करवाने में निर्वाचन आयोग का सहयोग करें। इसलिए आइये जाने कि चुनाव आचार संहिता क्या है और उसके उल्लंघन होने पर उसकी शिकायत कहाँ और कैसे की जा सकती हैं.

    • किन मामलों में कर सकते हैं शिकायत?

    निम्नलिखित मामलों में शिकायत की जा सकती है-

    a. वोट की एवज़ में शराब , पैसा, मुफ्त उपहार आदि बांटने पर.

    b. धार्मिक हिंसा फैलाने वाले भड़काऊ भाषण देने के खिलाफ.

    c. किसी भी प्रकार से वोटर्स को डराने-धमकाने के खिलाफ.

    d. पेड न्यूज़ और फेक न्यूज़ के खिलाफ.

    e. सार्वजानिक सम्पति को किसी भी प्रकार का नुक्सान पहुंचाने के खिलाफ.

    f. या अन्य किसी भी प्रकार से आचार संहिता का उल्लघन करने पर शिकायत की जा सकती है.

    • कहाँ करें शिकायत?

    शिकायत दो तरह से की जा सकती है- ऑनलाइन या फिर ऑफलाइन पत्र भेज कर।

    डिस्ट्रिक्ट इलेक्शन ऑफिसर (जिला चुनाव अधिकारी) को या रिटर्निंग अफसर को पत्र लिख कर शिकायत की जा सकती है। १९५० के अधिनियम की धारा १३अअ के तहत हर जिले में एक जिला चुनाव अधिकारी नियुक्त किया जाता है। इनका चुनाव, निर्वाचन आयोग राज्य और सरकार से विचार-विमर्श के आधार पर करता है क्योंकि ये राज्य सरकार के अधिकारी होते हैं. जिला चुनाव अधिकारी अपने जिले में चुनाव सम्बन्धी समस्त गतिविधियों की निगरानी रखने हेतु बाध्य होता है।

    निर्वाचन आयोग ने इस दृष्टि से एक एप भी बनाया है। cVIGIL कहलाने वाली यह एप एक फ़ास्ट ट्रैक मोबाइल ऐप हैं जहाँ नागरिक आचार संहिता उल्लंघन की फोटो और वीडियो अपलोड कर निर्वाचन आयोग को सूचित कर सकते हैं। एप के द्वारा ५ मिनट में आपकी लोकेशन आटोमेटिक शेयर करने का प्रावधान है। एप से तुरंत जानकारी जिला नियंत्रण कक्ष (डिस्ट्रिक्ट कण्ट्रोल रूम) को पहुँच जाती है जो आपकी लोकेशन पर फ्लाइंग स्क्वाड आदि लेकर उचित कार्यवाही कर सकते हैं। क्या कार्यवाही की गयी इसकी सूचना ५० मिनट के अंदर रिटर्निंग ऑफिस को देनी होती है। १०० मिनट के भीतर आपको आपकी शिकायत के स्टेटस की जानकारी दे दी जाएगी। आप यहाँ अपना नाम बिना बताए भी शिकायत दर्ज़ सकते हैं।

    शिकायत हेतु निर्वाचन आयोग के राष्ट्रीय संपर्क केंद्र टोल फ्री नंबर 1800 111 1950 पर भी कॉल किया जा सकता है। यह नंबर सुबह ८ बजे से रात ८ बजे तक उपलब्ध रहता है। आप इसी नंबर पर कॉल करके अपनी शिकायत का स्टेटस भी जान सकते हैं। यह फ़ोन नंबर हिंदी, इंग्लिश और क्षेत्रीय भाषाओँ में उपलब्ध है।

    शिकायत निर्वाचन आयोग द्वारा बनाये सिंगल विंडो सिस्टम नेशनल ग्रीवांस सर्विस पोर्टल (https://eci-citizenservices.eci.nic.in/default.aspx) पर लॉग-इन करके भी की जा सकती है।

    क्योंकि अभी कोड कानूनी रूप से पूरी तरह लागू नहीं किया सकता इसीलिए कई बार निर्वाचन आयोग के हाथ राजनीतिक दलों अनुचित व्यवहार को रोकने में बंध जाते है। इस विचार से था १९८० के दशक में, निर्वाचन आयोग ने केंद्र सरकार को चुनावी सुधार के लिए प्रस्ताव भेजा जिसपर विचार के लिए गोस्वामी समिति का गठन किया गया। समिति की सिफारिश पर, सरकार ने जनप्रतिनिधित्व कानून, १९५१ में संशोधन का प्रस्ताव पारित किया। प्रस्तावित संशोधन ने चुनाव की अधिसूचना की तिथि और चुनाव की घोषणा की तारीख को आचार संहिता लागू करने की तिथि के रूप में करने की भी मांग की। लेकिन संसद में यह संशोधन बिल पास नहीं हो पाया। आज राजनीति में पैसे और टेक्नोलॉजी के बढ़ते प्रयोग को देखते हुए यह जरूरी हो गया है कि आचार संहिता को कानूनी दस्तावेज़ का दर्ज़ा दिया जाए.

    (यह लेख शुभम कुमार और सुरभि करवा ने लिखा है. सुरभि राष्ट्रीय विधि विश्विद्यालय, दिल्ली और शुभम डॉ राममनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्विद्यालय, लखनऊ में अध्ययनरत हैं)

    Next Story