Income Tax Act की धारा 68 के तहत अस्पष्टीकृत नकद लोन के जोड़ने के संबंध में विवाद की तथ्यात्मक जांच धारा 260A के तहत अपील के दायरे से बाहर: कलकत्ता हाईकोर्ट
Amir Ahmad
16 Nov 2024 11:48 AM IST
कलकत्ता हाईकोर्ट ने माना कि वह आयकर अधिनियम (Income Tax Act) की धारा 260A के तहत दायर अपील में करदाता-कंपनी द्वारा प्रस्तुत या प्रस्तुत नहीं की गई सामग्री की तथ्यात्मक जांच नहीं कर सकता, जिससे उसे प्राप्त शेयर पूंजी और प्रीमियम की व्याख्या की जा सके।
चीफ जस्टिस टी.एस. शिवगनम और जस्टिस हिरणमय भट्टाचार्य की खंडपीठ ने आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण के उस आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार किया, जिसमें धारा 68 के तहत कर निर्धारण अधिकारी द्वारा अस्पष्टीकृत शेयर पूंजी और 15,51,00,000 रुपये के शेयर प्रीमियम में की गई वृद्धि को हटा दिया गया।
धारा 68 कर निर्धारण अधिकारी को कर निर्धारण अधिकारी के खाते में अस्पष्टीकृत नकद ऋण को आय के रूप में निर्धारित करने और उसे कर निर्धारण अधिकारी की कुल आय में जोड़ने का अधिकार देती है।
इस मामले में आयकर विभाग आयकर अधिकारी द्वारा किए गए जोड़ को हटाने के ITAT आदेश से व्यथित था, जिसमें कथित रूप से इस बात की अनदेखी की गई कि करदाता अपने रजिस्टर्ड पते पर अपनी गैर-मौजूदगी, शेयर पूंजी, रिजर्व और अधिशेष, निवल मूल्य और टर्नओवर के बारे में स्पष्टीकरण देने में विफल रहा, जिससे इसके निगमन के बाद सात महीने की छोटी अवधि के भीतर इसके द्वारा लगाए गए शेयर प्रीमियम को उचित ठहराया जा सके।
ITAT आदेश इस तथ्य पर आधारित था कि करदाता ने शेयर सब्सक्राइबिंग कंपनियों की पहचान और साख तथा लेन-देन की वास्तविकता को साबित करने के अपने दायित्व का निर्वहन किया था।
हाईकोर्ट के समक्ष विभाग ने तर्क दिया कि उन कंपनियों में से किसी के पास करदाता कंपनी के शेयरों में निवेश करने की कोई साख नहीं थी, वह भी उच्च प्रीमियम पर।
उन्होंने तर्क दिया कि शेयर सब्सक्राइबिंग कंपनियों का एक भी निदेशक न तो एओ के समक्ष उपस्थित हुआ, न ही इस तरह की गैर-उपस्थिति के लिए कोई कारण बताए।
ITAT ने अपने आदेश में दर्ज किया था कि सभी शेयर सब्सक्राइब करने वाली कंपनियों ने अधिनियम की धारा 138(6) के तहत जारी किए गए नोटिस का जवाब दिया, अपनी दलीलें पेश की और दस्तावेज पेश किए।
इस पृष्ठभूमि में हाईकोर्ट ने कहा,
“Income Tax Act की धारा 260ए के तहत दायर अपील में मांगी गई तथ्यात्मक स्थिति की जांच नहीं की जा सकती। ऐसा करना मूल्यांकन अधिकारी का कर्तव्य है।”
महत्वपूर्ण रूप से ITAT ने दर्ज किया कि मूल्यांकन कार्यवाही के दौरान शेयर सब्सक्राइब करने वाली कंपनियों द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य का खंडन करने में AO विफल रहा।
ITAT ने कहा कि AO ने केवल इस आधार पर शेयर पूंजी और शेयर प्रीमियम की राशि जोड़ी थी कि मूल्यांकनकर्ता ने निदेशकों/शेयरधारकों को पेश नहीं किया। लेकिन AO ने निदेशकों की मुहर और मोहर के तहत नोटिस के जवाब में दिए गए उत्तर को नजरअंदाज कर दिया।
इसके मद्देनजर हाईकोर्ट ने कहा,
“मूल्यांकन अधिकारी का कर्तव्य है कि वह उन दस्तावेजों से निपटे किसी भी विसंगति को इंगित करे और फिर उसे जोड़े। हालांकि, मूल्यांकन अधिकारी ऐसा करने में विफल रहा और CIT (A) ने भी वही गलती की। इसलिए हम पाते हैं कि न्यायाधिकरण ने करदाता की अपील को स्वीकार करके उचित कदम उठाया।"
केस टाइटल: आयकर के प्रधान आयुक्त-5, कोलकाता बनाम मेसर्स डेल्टा डीलर्स प्राइवेट लिमिटेड