पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में भीख मांगने के खिलाफ कानून की संवैधानिकता को चुनौती

Amir Ahmad

21 Jan 2025 8:53 AM

  • पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में भीख मांगने के खिलाफ कानून की संवैधानिकता को चुनौती

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम और पंजाब भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका पर पंजाब और हरियाणा सरकारों से जवाब मांगा।

    चीफ जस्टिस शील नागू और जस्टिस सुधीर सिंह की खंडपीठ कुश कारला द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने कहा कि अधिनियम में भीख मांगने की परिभाषा के अनुसार भीख मांगना, गाना-नृत्य करना- भविष्य बताना- करतब दिखाना- वस्तुएं बेचना- अपराध हो सकता है।

    याचिका में कहा गया,

    "यह संविधान के अनुच्छेद 19 1(ए) और 19 1(जी) का स्पष्ट उल्लंघन है, क्योंकि इन व्यवसायों और अन्य व्यवसायों में एकमात्र अंतर यह है कि इनमें कोई कीमत नहीं है, इसे दर्शकों पर छोड़ दिया गया कि वे अपनी इच्छानुसार भुगतान करें।"

    इसमें आगे कहा गया,

    "भिक्षा प्राप्त करने के उद्देश्य से किसी भी घाव, घाव, चोट, विकृति या बीमारी को उजागर करना या प्रदर्शित करना अपराध हो सकता है। यह समझे बिना कि यदि कोई घाव, चोट या विकृति है तो वह स्वतः ही उजागर हो जाती है उसके लिए किसी प्रत्यक्ष कार्रवाई की आवश्यकता नहीं है, कानून अत्यधिक मनमाने हैं (अनुच्छेद 14 का उल्लंघन) भले ही कोई व्यक्ति किसी विकृति को उजागर न कर रहा हो, फिर भी उसके साथ ऐसा व्यवहार किया जा सकता है मानो वह विकृति को उजागर कर रहा हो।"

    अनुच्छेद 19(2) के तहत भीख मांगने को अपराध घोषित करना कोई उचित प्रतिबंध नहीं है। याचिका में कहा गया कि भीख मांगने के खिलाफ कानून अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के विचार के विपरीत हैं।

    दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले पर भरोसा किया गया, जिसमें उसने राष्ट्रीय राजधानी में भीख मांगने को अपराध से मुक्त कर दिया और बॉम्बे भीख मांगने की रोकथाम अधिनियम के कई प्रावधानों को असंवैधानिक करार दिया।

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि भीख मांगने को अपराध घोषित करना समस्या के अंतर्निहित कारणों से निपटने का गलत तरीका है और जोर देकर कहा,

    "यह इस वास्तविकता को नजरअंदाज करता है कि भीख मांगने वाले लोग समाज में सबसे गरीब और हाशिए पर हैं। भीख मांगने को अपराध घोषित करना हमारे समाज के कुछ सबसे कमजोर लोगों के सबसे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।"

    याचिकाकर्ता ने जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट के उस फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें उसने भीख मांगने को असंवैधानिक घोषित किया था और जम्मू और कश्मीर भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम, 1960 और जम्मू और कश्मीर भिक्षावृत्ति निवारण नियम, 1964 के प्रावधानों को रद्द कर दिया था।

    मामले को आगे के विचार के लिए 22 मार्च के लिए सूचीबद्ध किया गया।

    केस टाइटल: कुश कालरा बनाम हरियाणा राज्य और अन्य

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