बलात्कार पीड़िता तक पहुंच न होने का दावा करने वाला अभियुक्त अपने दावे को साबित करने के लिए पैटरनिटी टेस्ट की मांग कर सकता है: कलकत्ता हाईकोर्ट

Amir Ahmad

3 Dec 2024 3:05 PM IST

  • बलात्कार पीड़िता तक पहुंच न होने का दावा करने वाला अभियुक्त अपने दावे को साबित करने के लिए पैटरनिटी टेस्ट की मांग कर सकता है: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने बलात्कार के एक मामले में अभियुक्त को पैटरनिटी टेस्ट से गुजरने की अनुमति दी, जिससे वह अपने इस दावे को साबित कर सके कि कथित पीड़िता तक उसकी पहुंच नहीं है, जिसने दावा किया कि उसके द्वारा बलात्कार किया गया और बाद में वह गर्भवती हो गई।

    जस्टिस शम्पा (दत्त) पॉल ने दीपनविता रॉय बनाम रोनोब्रोटो रॉय के सुप्रीम कोर्ट के मामले पर भरोसा किया और कहा,

    "वर्तमान मामले में दोनों पक्षों के बीच कोई विवाह नहीं है। पीड़ित लड़की का दावा है कि बच्चा याचिकाकर्ता का है। दूसरी ओर, याचिकाकर्ता ने बच्चे के पितृत्व को नकारते हुए रिश्ते तक पहुंच न होने का दावा किया। इस प्रकार, जब ऐसे रिश्ते में पहुंच न होने का दावा किया जाता है तो यह अभियुक्त का अधिकार है कि वह उपलब्ध/संभव साक्ष्य के माध्यम से इसे साबित करे।"

    न्यायालय आरोपी के मामले की सुनवाई कर रहा था जिस पर आईपीसी की धारा 376 और 420 के तहत आरोप लगाए गए जब पीड़िता के पिता ने शिकायत की थी कि उनकी बेटी को याचिकाकर्ता/आरोपी से तब प्यार हो गया, जब वह 17 या 18 साल की थी। बाद में शिकायतकर्ता को पता चला कि अंतरंगता और शादी के वादे के कारण उसकी बेटी शारीरिक संबंध में थी जिसके दौरान वह गर्भवती हो गई।

    जांच पूरी होने पर जांच एजेंसी ने आईपीसी की धारा 376 और 420 के तहत आरोप पत्र दायर किया। उक्त धाराओं के तहत आरोप भी तय किए गए और मुकदमा शुरू हुआ। क्रॉस एक्जामिनेशन के दौरान, पीड़ित लड़की ने विशेष रूप से अपने और अपने बेटे के लिए पैटरनिटी टेस्ट कराने के लिए सहमति व्यक्त की, जिससे यह साबित हो सके कि वह याचिकाकर्ता का बेटा है।

    आरोपी ने कहा कि पीड़ित लड़की रामकृष्ण दास नामक व्यक्ति के साथ रिश्ते में थी। पीड़ित लड़की ने अपनी क्रॉस एग्जामिनेशन में इसे स्वीकार किया। याचिकाकर्ता ने पीड़ित लड़की और उसके बच्चे के DNA टेस्ट के लिए आवेदन दायर किय लेकिन जज ने याचिकाकर्ता के उक्त आवेदन इस आधार पर खारिज किया कि विशिष्ट टेस्ट से न्यायालय का समय बर्बाद होगा।

    तदनुसार, सुप्रीम कोर्ट के उदाहरणों पर भरोसा करते हुए पीठ ने माना कि ऐसे मामले में जब विरोधाभासी प्रस्तुतियां हों तो याचिकाकर्ता को आरोपों से खुद को मुक्त करने के लिए पैटरनिटी टेस्ट का दावा करने का अधिकार होगा।

    इस प्रकार, इसने ट्रायल कोर्ट द्वारा पैटरनिटी टेस्ट किए जाने का आदेश दिया, जिसे 60 दिनों के भीतर पूरा किया जाना है।

    टाइटल: लोब दास बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य।

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