देश की अंतरात्मा पर धब्बा: कलकत्ता हाईकोर्ट ने सीवर में चार मैनुअल स्कैवेंजर्स की मौत पर हर परिवार को 30 लाख मुआवज़ा देने का आदेश दिया
Amir Ahmad
25 Nov 2025 3:12 PM IST

एक कड़े फैसले में कलकत्ता हाईकोर्ट ने कोलकाता म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन (KMC) और अन्य राज्य अधिकारियों को फरवरी 2021 में दक्षिण कोलकाता में सीवर की सफाई के दौरान चार मजदूरों की मौत और तीन अन्य के घायल होने के लिए गंभीर कमियों और लापरवाही का ज़िम्मेदार ठहराया।
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार बढ़ा हुआ मुआवज़ा देने का निर्देश दिया और कई कंप्लायंस-ओरिएंटेड निर्देश जारी किए।
एक्टिंग चीफ जस्टिस सुजॉय पॉल और जस्टिस चैताली चटर्जी दास की डिवीजन बेंच ने एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स (APDR) द्वारा दायर एक PIL पर यह फैसला सुनाया, जिसमें पीड़ितों के परिवारों के लिए स्वतंत्र जांच और मुआवज़े की मांग की गई।
यह मामला कोलकाता एनवायरनमेंटल इम्प्रूवमेंट इन्वेस्टमेंट प्रोग्राम (KEIIP) के तहत खुदघाट इलाके में मैनुअल सीवर सफाई में लगे चार मजदूरों की मौत से संबंधित है, जो KMC के तहत एक प्रोजेक्ट है। बताया जाता है कि मजदूरों को सुरक्षा प्रोटोकॉल के बिना एक भूमिगत सीवर गड्ढे में भेजा गया था, जिससे उन्होंने ज़हरीली गैसें सूंघ लीं और कीचड़ में डूब गए।
मीडिया रिपोर्टों और RTI अनुरोधों के बावजूद इस घटना के संबंध में कोई गिरफ्तारी नहीं हुई, जिसके बाद APDR ने हाई कोर्ट का रुख किया।
KMC ने PIL का विरोध करते हुए तर्क दिया कि APDR गलत इरादे से काम कर रहा है और सस्ती पब्लिसिटी चाहता है।
कोर्ट ने इस दलील को यह देखते हुए खारिज कर दिया कि APDR 1972 से काम कर रहा है और यह मामला राज्य की लापरवाही से प्रभावित नागरिकों के मौलिक अधिकारों से संबंधित है।
कोर्ट ने टिप्पणी की,
"यह चौंकाने वाला है कि 1993 के अधिनियम और सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी निर्देशों के अनुसार व्यक्तियों और परिवार के सदस्यों के वैध दावों को सुनिश्चित करने के लिए यह PIL दायर करनी पड़ी।"
बेंच ने मैनुअल स्कैवेंजिंग के जारी रहने पर कड़ी टिप्पणी की,
"यह देखकर दुख होता है कि मैनुअल स्कैवेंजिंग के कारण मौत और गंभीर चोट के मामले आज भी अदालतों में आ रहे हैं। इसका जारी रहना देश की अंतरात्मा पर एक धब्बा है।"
कोर्ट ने कहा कि न तो KMC और न ही राज्य ने यह दिखाया कि प्रोहिबिशन ऑफ एम्प्लॉयमेंट एज़ मैनुअल स्कैवेंजर्स एंड देयर रिहैबिलिटेशन एक्ट 2013 के तहत अनिवार्य मॉनिटरिंग कमेटी का गठन किया गया था।
इसमें आगे यह भी रिकॉर्ड किया गया कि KMC की अपनी जांच में न सिर्फ़ कॉन्ट्रैक्टर बल्कि डिज़ाइन और सुपरविज़न कंसल्टेंट (DSC) की तरफ़ से भी कमियां पाई गईं, जिसने समस्या को सुलझाने की कोई कोशिश नहीं की और दो दिनों तक मैनहोल से ठीक से पानी निकालने का इंतज़ाम नहीं किया।
सुप्रीम कोर्ट के 2023 के डॉ. बलराम सिंह बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया मामले में दिए गए फैसले पर भरोसा करते हुए कोर्ट ने ज़ोर देकर कहा कि सीवर में हुई मौतों के लिए मुआवज़ा 30 लाख होना चाहिए, न कि 10 लाख, जैसा कि KMC ने दिया था।
कोर्ट ने रीजेंट पार्क पुलिस स्टेशन के ऑफिसर-इन-चार्ज के हलफनामे की भी आलोचना की, जिसमें सिर्फ़ यह कहा गया कि अज्ञात लोगों के खिलाफ़ IPC की धारा 304A के तहत FIR दर्ज की गई।
कोर्ट ने कहा,
"जांच की स्थिति दिखाने के लिए कोई और हलफनामा दायर नहीं किया गया और इस रवैये को ज़िम्मेदारी से पल्ला झाड़ने की कोशिश बताया।"
PIL को मंज़ूर करते हुए कोर्ट ने नीचे दिए गए विस्तृत निर्देश जारी किए:
- हर मृतक मज़दूर के परिवार को तीन महीने के अंदर 30 लाख का मुआवज़ा (पहले से दिए गए 10 लाख घटाकर)।
- घायल हुए तीनों मज़दूरों में से हर एक को दो महीने के अंदर 5 लाख का मुआवज़ा।
- राज्य सरकार को 2013 के एक्ट के तहत ज़रूरी मॉनिटरिंग कमेटी का गठन 30 दिनों के अंदर करना होगा।
- डिप्टी कमिश्नर (प्रतिवादी नंबर 7) को घटना की स्वतंत्र जांच सुनिश्चित करनी होगी और चार हफ़्ते के अंदर रजिस्ट्रार जनरल के पास रिपोर्ट दाखिल करनी होगी।
- राज्य अधिकारियों को एक अलग कंप्लायंस रिपोर्ट दाखिल करनी होगी।
- राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण को मुआवज़े के वितरण को सुनिश्चित करने और कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए परिवारों से संपर्क करना होगा।
इस मामले को चौंकाने वाली लापरवाही और सिस्टम की विफलता का मामला बताते हुए कोर्ट ने दोहराया कि किसी भी रूप में मैला ढोना गैरकानूनी है और गरिमा और समानता की संवैधानिक गारंटी का उल्लंघन है।
रिट याचिका को उसी के अनुसार मंज़ूर कर लिया गया और निपटा दिया गया।

