ससुराल वालों से न बन पाने के कारण अलग रहना मानसिक क्रूरता नहीं : कलकत्ता हाईकोर्ट

Amir Ahmad

16 Sept 2025 1:14 PM IST

  • ससुराल वालों से न बन पाने के कारण अलग रहना मानसिक क्रूरता नहीं : कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि पत्नी अपने ससुराल वालों के साथ सामंजस्य स्थापित करने में असमर्थ रहती है। इस वजह से अलग रहने लगती है तो इसे भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498ए के तहत मानसिक क्रूरता नहीं माना जा सकता।

    जस्टिस डॉ. अजय कुमार मुखर्जी ने कहा कि ऐसा कोई ठोस साक्ष्य नहीं है, जिससे यह साबित हो कि पति या अन्य ससुराल वालों ने ऐसा जानबूझकर कोई कृत्य किया हो, जो पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाए या उसके जीवन, अंग-भंग या मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंचाए।

    उन्होंने कहा,

    “सिर्फ सामंजस्य न बिठा पाने या मधुर संबंधों के अभाव में पत्नी को दूसरों के घर पर रहने के लिए मजबूर होना, मानसिक क्रूरता की परिभाषा में नहीं आता।”

    यह मामला उस FIR से जुड़ा है, जो 21 अगस्त 2022 को दर्ज कराई गई। पत्नी का आरोप है कि विवाह के बाद से ही पति और उसके परिजनों ने उसे मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया, जिसके कारण उसे ससुराल छोड़ना पड़ा। उसने यह भी कहा कि उसका सारा स्त्रीधन ज़बरन ससुराल में रोक लिया गया और पति ने उसके पिता से आर्थिक धोखाधड़ी भी की। आरोप यह भी है कि पति ने उसे थप्पड़ मारा लातों से मारा और गला दबाने की कोशिश की।

    वहीं पति की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया कि पत्नी का विवाहेतर संबंध है और जब पति ने इस पर आपत्ति जताई तो पत्नी ने ही उसे धमकाना शुरू कर दिया। यह भी कहा गया कि पत्नी अपनी मर्जी से घर छोड़कर चली गई। यह मुकदमा सिर्फ प्रताड़ित करने और झूठे आरोपों में फंसाने की कोशिश है। साथ ही यह दलील भी दी गई कि मामला समयसीमा से बाहर है, क्योंकि IPC की धारा 498a और धारा 406 के तहत अधिकतम तीन साल की सज़ा का प्रावधान है। इस अवधि के बाद संज्ञान नहीं लिया जा सकता।

    राज्य की ओर से पेश एडवोकेट ने केस डायरी का हवाला देते हुए कहा कि आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त सामग्री मौजूद है और चार्जशीट दाखिल हो चुकी है इसलिए इस स्तर पर मुकदमे को खारिज करना उचित नहीं होगा।

    अदालत ने गवाहों के बयानों का अवलोकन करते हुए पाया कि केवल एक दिन झगड़े और मारपीट का आरोप सामने आया। इस तरह की एकमात्र घटना IPC की धारा 498ए की आवश्यक शर्तों को पूरा नहीं करती। इसके अलावा, अदालत ने यह भी नोट किया कि FIR विवाह के 25 साल बाद दर्ज कराई गई और इसके विलंब का कोई ठोस कारण नहीं दिया गया।

    अंततः अदालत ने कहा कि शिकायत में ससुराल वालों के खिलाफ कोई ठोस आरोप नहीं है, इसलिए वे IPC की धारा 498ए के तहत दंडनीय नहीं ठहराए जा सकते।

    Next Story