पोस्टमार्टम में शराब की गंध मिलने मात्र से मुआवजा नकारा नहीं जा सकता: कलकत्ता हाईकोर्ट

Amir Ahmad

15 Dec 2025 3:45 PM IST

  • पोस्टमार्टम में शराब की गंध मिलने मात्र से मुआवजा नकारा नहीं जा सकता: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि सड़क दुर्घटना में मृत व्यक्ति के पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पेट से शराब की गंध पाए जाने मात्र के आधार पर उसके कानूनी उत्तराधिकारियों को मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के तहत मुआवजे से वंचित नहीं किया जा सकता। अदालत ने स्पष्ट किया कि नशे में वाहन चलाने का आरोप तभी स्वीकार्य होगा जब इसे कानून के तहत निर्धारित तरीके से प्रमाणित किया जाए।

    जस्टिस बिस्वरूप चौधरी ने न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड द्वारा दायर अपील खारिज करते हुए तामलुक की थर्ड एडिशनल जिला जज अदालत द्वारा पारित मुआवजा आदेश बरकरार रखा। ट्रायल कोर्ट ने 22 मई 2024 को दिए गए अपने निर्णय में मृतक गणेश दास के परिजनों को 11.41 लाख रुपये का मुआवजा छह प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ देने का आदेश दिया था।

    यह मामला 27 दिसंबर, 2020 की एक सड़क दुर्घटना से जुड़ा है, जिसमें मोटरसाइकिल सवार गणेश दास की एक ट्रक से टक्कर हो गई। आरोप है कि ट्रक चालक ने लापरवाही और तेज रफ्तार में वाहन चलाया, जिससे दुर्घटना हुई और गणेश दास की मौके पर ही मौत हो गई। मृतक की मां और अन्य आश्रितों ने मोटर वाहन अधिनियम की धारा 166 के तहत मुआवजे की मांग की।

    बीमा कंपनी ने मुआवजे के आदेश को चुनौती देते हुए तर्क दिया कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृतक के पेट से शराब की गंध पाए जाने का उल्लेख है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वह नशे की हालत में वाहन चला रहा था। इसके अलावा कंपनी ने यह भी दलील दी कि मृतक की मोटरसाइकिल बीमित नहीं थी और मुआवजे की राशि अत्यधिक है।

    दूसरी ओर, दावेदारों ने क्रॉस-ऑब्जेक्शन दाखिल कर मुआवजा बढ़ाने की मांग की। उनका कहना था कि मृतक की मासिक आय 15,000 रुपये थी, जबकि ट्रिब्यूनल ने इसे केवल 5,000 रुपये प्रतिमाह आंका।

    इन दलीलों पर विचार करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि मोटर वाहन अधिनियम की धारा 185 के अनुसार नशे में वाहन चलाने को साबित करने के लिए यह दिखाना आवश्यक है कि रक्त में अल्कोहल की मात्रा निर्धारित सीमा से अधिक थी। अदालत ने स्पष्ट किया कि जब दुर्घटना में व्यक्ति की मृत्यु हो चुकी हो और उसके खिलाफ नशे में होने का आरोप लगाया जाए तो उसके उत्तराधिकारियों को केवल अनुमान या गंध के आधार पर मुआवजे से वंचित नहीं किया जा सकता, क्योंकि मृत व्यक्ति स्वयं अपने बचाव में कुछ कहने की स्थिति में नहीं है।

    अदालत ने यह भी कहा कि इस मामले में न तो ब्लड अल्कोहल टेस्ट कराया गया और न ही ब्रेथ एनालाइज़र से जांच हुई। ऐसी स्थिति में केवल शराब की गंध के आधार पर यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि मृतक नशे की हालत में वाहन चला रहा था।

    मोटरसाइकिल के बीमित न होने की दलील को भी अदालत ने खारिज कर दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि मुआवजे का दावा दुर्घटना के लिए जिम्मेदार ट्रक के बीमाकर्ता के खिलाफ किया गया, न कि मृतक की मोटरसाइकिल के बीमाकर्ता के खिलाफ। ऐसे में इस आधार पर बीमा कंपनी को राहत नहीं दी जा सकती।

    मुआवजे की राशि को लेकर अदालत ने ट्रिब्यूनल के आकलन को सही ठहराया। कोर्ट ने कहा कि दावेदार मृतक की अधिक आय साबित करने में असफल रहे, क्योंकि न तो नियोक्ता को गवाही के लिए बुलाया गया और न ही कोई दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत किया गया। इसलिए 5,000 रुपये मासिक आय का आकलन उचित है।

    अपील और क्रॉस-ऑब्जेक्शन दोनों को खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने ट्रिब्यूनल के आदेश में कोई खामी नहीं पाई। हालांकि, अदालत ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि बीमा कंपनियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जिन वाहनों का बीमा समाप्त हो चुका है, उनके बारे में परिवहन अधिकारियों को समय पर सूचित किया जाए ताकि वे बिना वैध बीमा के सड़कों पर न चलें।

    अदालत ने निर्देश दिया कि सभी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद दावेदार मुआवजे की राशि और उस पर अर्जित ब्याज निकाल सकते हैं।

    Next Story