गैरकानूनी बर्खास्तगी पर बकाया वेतन का भुगतान स्वचालित नहीं: कलकत्ता हाईकोर्ट

Amir Ahmad

17 Jan 2025 12:55 PM IST

  • गैरकानूनी बर्खास्तगी पर बकाया वेतन का भुगतान स्वचालित नहीं: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने माना कि बकाया वेतन के भुगतान का निर्देश विवेकाधीन है। यह न्यायालय को किसी भी व्यक्तिगत मामले में तथ्यों और परिस्थितियों की समग्रता पर विचार करने का अधिकार देता है।

    जस्टिस तपब्रत चक्रवर्ती और जस्टिस पार्थ सारथी सेन की खंडपीठ ने कहा कि ऐसे मामलों में कोई सार्वभौमिक नियम या स्ट्रेटजैकेट फॉर्मूला लागू नहीं किया जा सकता।

    खंडपीठ ने कहा,

    "बकाया वेतन के भुगतान का निर्देश एक विवेकाधीन शक्ति है, जिसका प्रयोग न्यायालय को तथ्यों को ध्यान में रखते हुए करना चाहिए। ऐसे मामलों में न तो कोई स्ट्रेट जैकेट फॉर्मूला और न ही सार्वभौमिक आवेदन का नियम निर्धारित किया जा सकता है।"

    न्यायालय ने यह टिप्पणी हाईकोर्ट की एकल पीठ द्वारा पारित एक निर्णय को चुनौती देने वाली याचिका खारिज करते हुए की। एकल पीठ ने पहले अनुशासनात्मक प्राधिकारी और अपीलीय प्राधिकारी के निष्कर्षों को खारिज कर दिया था, जिसमें कहा गया कि रिट याचिकाकर्ता/अपीलकर्ता पर लगाया गया अनिवार्य सेवानिवृत्ति का दंड कानून के अनुरूप नहीं था।

    रिट याचिकाकर्ता (अपीलकर्ता), रेलवे सुरक्षा बल में सहायक उप-निरीक्षक, उसको भारतीय दंड संहिता की धारा 304बी, 497 और 498ए के तहत आपराधिक मामले के सिलसिले में सितंबर 2009 में गिरफ्तार किया गया था। उसकी गिरफ्तारी के बाद अपीलकर्ता को निलंबित कर दिया गया। बाद में 23 नवंबर, 2012 को अनिवार्य सेवानिवृत्ति का दंड दिया गया। अनुशासनात्मक प्राधिकारियों और अपीलीय प्राधिकारी के निर्णयों को चुनौती देते हुए अपीलकर्ता ने एक रिट याचिका दायर की, जिसे स्वीकार कर लिया गया।

    वर्तमान अपील तब उठी, जब अपीलकर्ता ने अपने निलंबन की अवधि के लिए पिछले वेतन की मांग की। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि एकल पीठ ने पिछला वेतन न देकर गलती की, उन्होंने जोर देकर कहा कि पिछला वेतन देने पर कोई प्रतिबंध नहीं होना चाहिए, खासकर जब उन्हें बिना किसी गलती के निलंबित कर दिया गया और आरोप-पत्र दाखिल किया गया।

    प्रतिवादी ने जवाब दिया कि रिट याचिकाकर्ता ने अपनी रिट याचिका में यह साबित करने के लिए कोई कथन या सबूत नहीं दिया कि निलंबन अवधि के दौरान वह लाभकारी रूप से कार्यरत नहीं थे। नतीजतन एकल पीठ ने पिछले वेतन के भुगतान का आदेश देने से परहेज करके अपने अधिकार क्षेत्र में काम किया।

    न्यायालय ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि पिछला वेतन मांगने वाले बर्खास्त कर्मचारी को प्रथम दृष्टया न्यायालय या न्यायाधिकरण के समक्ष स्पष्ट रूप से दलील देनी होगी या बयान देना होगा कि वे लाभकारी रूप से कार्यरत नहीं थे या उन्हें कम वेतन पर नियुक्त किया गया। रिकॉर्ड पर ऐसी सामग्री के बिना पिछले वेतन के लिए कोई स्वचालित निर्देश नहीं दिया जा सकता।

    न्यायालय ने आगे कहा,

    हमारे समक्ष प्रस्तुत संपूर्ण सामग्री के अवलोकन तथा माननीय सुप्रीम कोर्ट के बार की ओर से उद्धृत निर्णय पर विचार करने पर हमें ऐसा प्रतीत होता है कि कानूनी स्थिति कई निर्णयों द्वारा उचित रूप से तय की गई कि पूर्ण रूप से वेतन वापस करने का निर्देश बर्खास्तगी आदेश को कानून में गलत घोषित किए जाने के परिणामस्वरूप स्वतः नहीं होता है।”

    न्यायालय ने कहा,

    “इस तरह के प्रयोग में विवेकाधिकार की अवधारणा अंतर्निहित है। न्यायालय को मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए उचित और न्यायिक रूप से इस तरह के विवेकाधिकार का प्रयोग करने की आवश्यकता है। प्रत्येक मामला, निश्चित रूप से अपने स्वयं के तथ्यों पर निर्भर करेगा।”

    हाईकोर्ट ने अपील को यह कहते हुए खारिज की कि याचिकाकर्ता यह साबित करने के लिए कोई सबूत पेश करने में विफल रहा कि वह निलंबन अवधि के दौरान बेरोजगार रहा। नतीजतन, न्यायालय के पास पिछले वेतन का भुगतान करने का निर्देश देने का कोई आधार नहीं है।

    केस टाइटल: मन मोहन कुमार शाहू बनाम भारत संघ और अन्य।

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