पीलीभीत 'फर्जी' एनकाउंटर 1991- पुलिस आरोपी को केवल इसलिए नहीं मार सकती क्योंकि वह खूंखार अपराधी है : इलाहाबाद हाईकोर्ट

Sharafat

15 Dec 2022 2:52 PM GMT

  • पीलीभीत फर्जी एनकाउंटर 1991- पुलिस आरोपी को केवल इसलिए नहीं मार सकती क्योंकि वह खूंखार अपराधी है : इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1991 के पीलीभीत मुठभेड़ मामले में आईपीसी की धारा 304 भाग I के तहत 43 उत्तर प्रदेश पुलिस कर्मियों को दोषी ठहराते हुए गुरुवार को सख्त टिप्पणी की कि पुलिस अधिकारी किसी अभियुक्त को केवल इसलिए नहीं मार सकते हैं क्योंकि वह एक खूंखार अपराधी है।

    जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस सरोज यादव की खंडपीठ ने कहा,

    " पुलिस अधिकारियों का यह कर्तव्य नहीं है कि वे आरोपी को सिर्फ इसलिए मार दें क्योंकि वह एक खूंखार अपराधी है। निस्संदेह, पुलिस को आरोपी को गिरफ्तार करना होगा और उसे मुकदमे के लिए पेश करना होगा।"

    बेंच ने अपने 179 पन्नों के आदेश में 43 पुलिस/अपीलकर्ताओं की सजा को धारा आईपीसी की धारा 302 से आईपीसी की धारा 304 भाग I में बदलने पर टिप्पणी की।

    न्यायालय अप्रैल 2016 में विशेष न्यायाधीश, सीबीआई / अतिरिक्त जिला न्यायाधीश, लखनऊ द्वारा आईपीसी की धारा 120-बी, 302, 364, 365, 218, 117 के तहत दोषी ठहराए जाने के आदेश को चुनौती देने वाले 43 अपीलकर्ताओं / पुलिस द्वारा दायर अपीलों पर विचार कर रहा था।

    अपने फैसले में ट्रायल कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला था कि अपीलकर्ताओं ने आपराधिक साजिश करते हुए, दस सिख युवकों का अपहरण कर लिया और उन्हें एक फर्जी मुठभेड़ में मार डाला और उसके बाद इन सिखों की हत्याओं को मुठभेड़ों में बदलने के लिए कई दस्तावेज तैयार किए।

    संक्षेप में मामला

    अभियोजन मामले के अनुसार, 12 जुलाई 1991 को उत्तर प्रदेश पुलिस की एक टीम द्वारा जिला पीलीभीत (अपीलकर्ता) की एक टीम द्वारा पीलीभीत के पास यात्रियों/तीर्थयात्रियों से भरी एक बस को सुबह करीब 09-10 बजे रोका गया। उन्होंने तीर्थयात्रियों की बस से 10-11 सिख युवकों को उतारा और उन्हें उनकी नीली रंग की बस (पुलिस बस) में बिठाया और कुछ पुलिसकर्मी शेष यात्रियों / तीर्थयात्रियों (PW11, PW13, बच्चों, महिलाओं और बूढ़े) के साथ बस में बैठ गए। इसके बाद शेष यात्री/तीर्थयात्री पुलिस कर्मियों के साथ दिन भर तीर्थयात्रियों की बस में इधर-उधर घूमते रहे और उसके बाद रात में पुलिसकर्मी बस को पीलीभीत के एक गुरुद्वारे में छोड़ गए। जबकि 10 सिख युवक, जिन्हें तीर्थयात्रियों की बस से वहां से उतारा था, पुलिसकर्मियों (अपीलकर्ताओं) द्वारा उन्हें तीन भागों में विभाजित करके आतंकवादी के रूप में दिखाते हुए मार डाला गया।

    पुलिसकर्मियों पर 10 युवकों की हत्या के आरोप में तीन अलग-अलग एफआईआर दर्ज की गई। इन युवकों में ग्यारहवां बच्चा था, जिसके ठिकाने का पता नहीं चला और उसके माता-पिता को राज्य द्वारा मुआवजा दिया गया। घटना की जांच जिला पीलीभीत की स्थानीय पुलिस द्वारा की गई और स्थानीय पुलिस द्वारा एक क्लोजर रिपोर्ट दर्ज की गई। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने तथाकथित मुठभेड़ से जुड़ी घटनाओं की जांच सीबीआई को सौंप दी। विशेष न्यायाधीश, सीबीआई/अतिरिक्त जिला न्यायाधीश, लखनऊ की अदालत में सुनवाई हुई और 4 अप्रैल, 2016 के अपने फैसले और आदेश के तहत, कुल 47 व्यक्तियों को आईपीसी की धारा 120-बी, 302, 364, 365, 218, 117 के तहत दोषी ठहराया गया।

    हाईकोर्ट के समक्ष, उन्होंने तर्क दिया कि उन्होंने आत्मरक्षा में दस आतंकवादी व्यक्तियों को मार डाला क्योंकि जब उन्होंने आतंकवादियों को वन क्षेत्र से बाहर आते देखा, तो उन्होंने उन्हें चुनौती दी और अचानक आतंकवादियों ने जवाबी कार्रवाई में गोलियां चला दीं और आत्मरक्षा में उन्होंने फायरिंग कर दी और इस तरह फायरिंग में दस आतंकवादी मारे गए।

    हालांकि, अदालत ने उनके तर्क को स्वीकार करने से इनकार कर दिया क्योंकि यह नोट किया गया कि उनका तर्क चिकित्सा साक्ष्य से मेल नहीं खाता।

    इसके अलावा अदालत ने अपीलकर्ताओं के वकीलों के इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि पुलिस अधिकारियों ने मुठभेड़ में अन्य मृतकों को मार डाला क्योंकि वे चार मृतकों (कथित आतंकवादी) के साथी थे, क्योंकि अदालत ने जोर देकर कहा कि अपीलकर्ताओं का कार्य नहीं हो सकता कि कुछ आतंकवादियों के साथ-साथ उन्हें भी आतंकवादी मानते हुए निर्दोष लोगों को मार दें।

    हालांकि अदालत ने पाया कि अभियोजन पक्ष इस तथ्य को स्थापित करने में विफल रहा कि अपीलकर्ताओं ने दस सिख युवकों के अपहरण और हत्या में आपराधिक साजिश रची थी, इसलिए अदालत ने आईपीसी की धारा 302/120-बी, 364/120-बी, 365/120-बी, 218/120-बी, 117/120-बी के तहत उनकी सजा रद्द कर दी और इसके बजाय उन्हें आईपीसी की धारा 304 के भाग I के तहत दोषी ठहराया।

    न्यायालय ने दोषसिद्धि को मुख्य रूप से परिवर्तित कर दिया क्योंकि यह पाया गया कि अपीलकर्ताओं और मृत व्यक्तियों के बीच कोई दुर्भावना नहीं थी। हालांकि, न्यायालय ने यह भी कहा कि उन्होंने कानून द्वारा उन्हें दी गई शक्तियों को पार कर लिया और एक ऐसा कार्य करके मृतक की मृत्यु का कारण बने जिसे वे अपने कर्तव्य के उचित निर्वहन के लिए सद्भावनापूर्वक और आवश्यक मानते थे (आईपीसी की धारा 300 के अपवाद 3 के तहत लाभ प्रदान किया गया)।

    केस टाइटल- देवेंद्र पांडे व अन्य बनाम सीबीआई के माध्यम से उत्तर प्रदेश राज्य

    साइटेशन : 2022 लाइवलॉ (एबी) 527

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें




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