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अपनी एक जैविक बालिका होने के बावजूद किसी बच्ची को गोद लेना प्रशंसा का काम है : बॉम्बे हाईकोर्ट

LiveLaw News Network
16 Jan 2020 3:30 AM GMT
अपनी एक जैविक बालिका होने के बावजूद किसी बच्ची को गोद लेना प्रशंसा का काम है : बॉम्बे हाईकोर्ट
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बॉम्बे हाईकोर्ट ने पिछले हफ्ते मुंबई के एक दंपति को 7 महीने की बच्ची को गोद लेने की अनुमति दी थी, जिनकी पहले से ही एक 14 वर्षीय बेटी है। इसके बाद अदालत ने कहा कि-

''इस कारण और अधिक सराहना की आवश्यकता है, चूंकि दंपत्ति के पास अपनी एक जैविक लड़की भी है। इसके बावजूद उन्होंने एक और लड़की को गोद लेने का फैसला किया। यह एक ऐसा दृष्टिकोण है, जिसको समाज में बढ़ावा देने की जरूरत है, क्योंकि हमारे समाज को ज्यादातर पितृसत्ता का वर्चस्व वाला कहा जाता है।''

न्यायमूर्ति जी.एस कुलकर्णी ने सेंट कैथरिन होम, अंधेरी द्वारा किशोर न्याय (देखभाल और संरक्षण) अधिनियम 2015(Juvenile Justice (Care and Protection) Act 2015) की धारा 56 और 58 के तहत दायर भारतीय गोद लेने की याचिका पर सुनवाई की। गोद लेने वाले माता-पिता दिनेश और जयश्री मोहिते थे, जो घाटकोपर में रहते थे।

7 महीने की गीतिका का जन्म 9 जून, 2019 को हुआ था और चार दिन बाद उसकी जैविक मां ने बाल कल्याण समिति 2(II), मुंबई उपनगरीय जिले को सौंप दिया था और उसी दिन यह बच्ची याचिकाकर्ता-संस्थान में भर्ती हो गई थी।

कोर्ट ने कहा कि दत्तक माता-पिता की शादी को 18 साल हो चुके हैं और 14 साल की एक जैविक बेटी कृपा है। दत्तक माता-पिता के साथ बातचीत करने और प्रेरणा पत्र को देखने के बाद , कोर्ट ने कहा कि-

''ऐसा प्रतीत होता है कि दत्तक माता-पिता शुरू से ही एक और बच्चे को गोद लेने के लिए काफी दृढ़ थे, इसलिए उन्होंने कई गोद देने वाले घरों का दौरा किया था। साथ ही एक और बच्चे गोद लेने के लिए अपनी भविष्य की योजनाओं पर भी अध्ययन किया था।

वे एक पुस्तक शीर्षक ''बाल आनंद (उमंग)'' से भी प्रेरित थे, जो उनको बाल आनंद आश्रम से प्राप्त हुआ हुई थी। दत्तक माता-पिता के सकारात्मक दृष्टिकोण की भी प्रशंसा करने की आवश्यकता है, वे अलग-अलग गोद लेने वाले घरों में अपनी जैविक बेटी का जन्मदिन और परिवार के अन्य समारोहों भी मनाते रहे हैं, जो स्पष्ट रूप से ऐसे बच्चों पर उनकी सोच को इंगित करता हैं। जिसने उनके अंदर एक बच्चे को गोद लेने की भावना को जन्म दिया है।''

दत्तक समिति के 8 अक्टूबर, 2019 के निर्णय में कहा गया है कि दत्तक दंपति गीतिका को अपनाने के लिए उपयुक्त हैं और सेंट कैथरीन होम में मुख्य कार्यकारिणी ने भी एक हलफनामे के जरिए याचिका का समर्थन किया।

तत्पश्चात, पीठ ने माना कि उनके पास एक पारिवारिक व्यवसाय है, आर्थिक रूप से वे दत्तक बेटी की देखभाल करने के लिए अच्छी स्थिति में हैं। इसके अलावा, दत्तक माता-पिता द्वारा आत्म-मूल्यांकन और सामाजिक कार्यकर्ताओं वंदना पाटिल और विजयलक्ष्मी अम्बाला द्वारा तैयार की गई मूल्यांकन रिपोर्ट अनुकूल पाई गई है।

इस प्रकार, याचिका की अनुमति दी गई थी और दत्तक माता-पिता को अपनी सात महीने की बेटी का नाम बदलकर आदिरा दिनेश मोहिते रखने की अनुमति दी गई थी।

आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहांं क्लिक करें




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