बॉम्बे हाईकोर्ट ने टू-फिंगर टेस्ट के इस्तेमाल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का पालन करने के लिए उठाए गए कदमों पर राज्य से जवाब मांगा
Amir Ahmad
8 April 2025 6:16 AM

बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में महाराष्ट्र सरकार से यौन उत्पीड़न या बलात्कार की पीड़िताओं पर टू-फिंगर टेस्ट या 'वर्जिनिटी टेस्ट' की असंवेदनशील अमानवीय और भेदभावपूर्ण' प्रकृति के बारे में राज्य भर में मेडिकल स्वास्थ्य प्रदाताओं को संवेदनशील बनाने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में बताने को कहा।
जस्टिस नितिन साम्ब्रे और जस्टिस वृषाली जोशी की खंडपीठ ने राज्य से झारखंड राज्य बनाम शैलेंद्र कुमार राय के मामले में सुप्रीम कोर्ट के अनिवार्य निर्देशों के अनुपालन को रिकॉर्ड पर रखने को कहा।
उक्त फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को निर्देश जारी किए।
यह सुनिश्चित करें कि स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा तैयार किए गए दिशा-निर्देश सभी सरकारी और निजी अस्पतालों में प्रसारित किए जाएं।
यौन उत्पीड़न और बलात्कार की पीड़िताओं की जांच करते समय अपनाई जाने वाली उचित प्रक्रिया को बताने के लिए स्वास्थ्य प्रदाताओं के लिए कार्यशालाएँ आयोजित करें
तथामेडिकल स्कूलों में कोर्स की समीक्षा करें, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि यौन उत्पीड़न और बलात्कार के पीड़ितों की जांच करते समय टू फिंगर टेस्ट या वर्जिनिटी टेस्ट को अपनाई जाने वाली प्रक्रियाओं में से एक के रूप में निर्धारित नहीं किया गया।
26 मार्च को हुई सुनवाई में जस्टिस साम्ब्रे की अध्यक्षता वाली पीठ को इस तथ्य से अवगत कराया गया कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के मद्देनजर राज्य को उक्त निर्देशों का पालन करने के लिए उठाए गए कदमों को रिकॉर्ड पर रखना चाहिए। जजों को बताया गया कि न केवल राज्य बल्कि महाराष्ट्र स्वास्थ्य विज्ञान यूनिवर्सिटी को भी मामले में अपनी अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करनी चाहिए।
26 मार्च को पारित आदेश में कहा गया,
"यह दावा किया जाता है कि न केवल राज्य सरकार बल्कि महाराष्ट्र स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय को भी सुप्रीम कोर्ट के उपरोक्त निर्देशों का पालन करने के लिए उठाए गए कदमों का जवाब देना चाहिए। विश्वविद्यालय के वकील और राज्य के वकील भी अपना जवाब रिकॉर्ड पर रखने के लिए दो सप्ताह का समय मांगते हैं। इस प्रकार, सुनवाई स्थगित की जाती है।”
सुनवाई के दौरान, जजों को यह भी बताया गया कि भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के निर्देशों के आधार पर महाराष्ट्र सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने 18 अगस्त, 2022 को दिशा-निर्देश जारी किए, जिसके तहत राज्य में MBBS कोर्स के पाठ्यक्रम में संशोधन किया गया, खास तौर पर MBBS कोर्स के दूसरे वर्ष के लिए एनाटॉमी विषय में। इस संशोधन के अनुसार MBBS कोर्स के स्टूडेंट से यह चर्चा करने और वर्णन करने के लिए कहा जा रहा है कि कौमार्य के संकेत (तथाकथित वर्जिनिटी टेस्ट जिसमें महिला जननांग पर फिंगर टेस्ट शामिल है) किस तरह से अवैज्ञानिक, अमानवीय और भेदभावपूर्ण हैं।
स्टूडेंट से यह वर्णन करने और चर्चा करने के लिए कहा गया कि अगर अदालत आदेश देती है तो इन टेस्ट के अवैज्ञानिक आधार के बारे में अदालतों को कैसे बताया जाए। जजों को बताया गया कि ये संशोधन राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग की सिफारिशों पर आधारित हैं।
खंडपीठ ने अधिकारियों द्वारा उठाए गए कदम की सराहना की और सुनवाई 9 अप्रैल तक के लिए स्थगित कर दी।
खंडपीठ स्मिता सिंगलकर द्वारा दायर जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने 'टू-फिंगर टेस्ट या वर्जिनिटी टेस्ट' की नैतिकता और व्यावहारिकता पर सवाल उठाया। जनहित याचिका एडवोकेट रेणुका सिरपुरकर के माध्यम से दायर की गई। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि यह टेस्ट आक्रामक और अपमानजनक है और पीड़िता के निजता के अधिकार का घोर उल्लंघन है। इसलिए उसने MBBS कोर्स, विशेष रूप से द्वितीय वर्ष के विषय में संशोधन की मांग की, जिसमें इसे शामिल किया गया।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि वर्जिनिटी टेस्ट की अपमानजनक, आक्रामक और उल्लंघनकारी प्रकृति को देखते हुए इस तरह के टेस्ट को कोर्स में शामिल नहीं किया जाना चाहिए।
केस टाइटल: स्मिता सिंगलकर बनाम महाराष्ट्र स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय (पीआईएल 19/2021)