बीमा पॉलिसी की संदिग्ध शर्तों की व्याख्या बीमाधारक के पक्ष में होगी : बॉम्बे हाईकोर्ट
Amir Ahmad
11 Sept 2025 2:35 PM IST

बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि यदि बीमा पॉलिसी की शर्तों में अस्पष्टता हो, तो कॉन्ट्रा प्रोफेरेंटम सिद्धांत लागू होगा और उसकी व्याख्या बीमाधारक के पक्ष में की जाएगी। अदालत ने टाटा एआईजी जनरल इंश्योरेंस कंपनी के रवैये पर कड़ी आपत्ति जताई जिसने एक विधवा का बीमा दावा केवल तकनीकी आधार पर खारिज कर दिया था।
जस्टिस संदीप वी. मार्ने एक याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, जिसमें बीमा कंपनी ने बीमा लोकपाल के 21 नवंबर 2022 के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें कंपनी को विधवा को 27 लाख का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था। मृतक ने अपने हाउसिंग लोन के साथ अनिवार्य रूप से जोड़ी गई क्रेडिट-लिंक्ड बीमा पॉलिसी ली थी। वह अचानक हृदयगति रुकने से चल बसे। कंपनी ने दावा इसलिए ठुकरा दिया कि ईसीजी या ट्रोपोनिन टेस्ट जैसी मेडिकल रिपोर्ट उपलब्ध नहीं थीं, जिनसे साबित हो सके कि मृत्यु “क्रिटिकल इलनेस” के दायरे में आती है।
अदालत ने कहा कि बीमाधारक को सीने में दर्द हुआ और उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाया गया जहां 15–20 मिनट के भीतर ही उनकी मृत्यु हो गई। ऐसे में किसी भी तरह की जांच संभव ही नहीं थी। डॉक्टर ने स्पष्ट रूप से मृत्यु का कारण कार्डियक अरेस्ट बताया था। अदालत ने माना कि कंपनी द्वारा केवल अपने पैनल डॉक्टर की राय पर निर्भर होकर वास्तविक ट्रीटिंग डॉक्टर की गवाही को नज़रअंदाज़ करना अनुचित और अवैज्ञानिक था।
अदालत ने कहा,
“जिस डॉक्टर ने वास्तव में बीमाधारक का इलाज किया उसकी राय को पूरी तरह नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। केवल इस आधार पर कि परीक्षण रिपोर्ट उपलब्ध नहीं है। दावे को खारिज करना उचित नहीं है।”
हाईकोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि इस तरह की क्रेडिट-लिंक्ड बीमा पॉलिसी का मूल उद्देश्य यही है कि उधारकर्ता की मृत्यु या अक्षमता की स्थिति में ऋण का भुगतान सुरक्षित हो सके। यदि पॉलिसी को संकीर्ण दृष्टिकोण से केवल गंभीर बीमारी से जीवित बचने के मामलों तक सीमित कर दिया जाए और मृत्यु को शामिल न किया जाए तो यह पॉलिसी बेमानी और निरर्थक हो जाएगी। इसलिए इसमें मौजूद अस्पष्टता बीमाधारक के पक्ष में ही व्याख्यायित की जाएगी।
अदालत ने बीमा कंपनी के आचरण को ग़ैर-ईमानदार और उत्पीड़नकारी बताते हुए कहा कि विधवा को चार वर्षों तक मुकदमेबाज़ी में उलझाए रखना न्यायसंगत नहीं है।
अंततः अदालत ने बीमा कंपनी की याचिका खारिज करते हुए आदेश दिया कि टाटा एआईजी चार सप्ताह के भीतर बीमा लोकपाल द्वारा दिए गए पूरे ₹27 लाख की राशि का भुगतान करे।

