S. 295 IPC | जमीन खोदते समय कब्र पर मिट्टी, पत्थर फेंकने से उसे नुकसान नहीं पहुंचता, इससे किसी की धार्मिक भावनाएं आहत नहीं होतीं: बॉम्बे हाईकोर्ट
Amir Ahmad
16 Oct 2024 4:04 PM IST
बॉम्बे हाईकोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 295 के तहत व्यवसायी के खिलाफ दर्ज की गई FIR खारिज करते हुए कहा कि कब्र के पास खुदाई का काम करते समय उस पर मिट्टी पत्थर आदि फेंकना धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए कब्र को नुकसान पहुंचाना नष्ट करना या अपवित्र करना नहीं माना जाएगा।
जस्टिस विभा कंकनवाड़ी और संतोष चपलगांवकर की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता शेख तारिक मोहम्मद अब्दुल लतीफ ने कुछ लोगों को अपनी जमीन को समतल करने का निर्देश दिया, जो कब्र से सटी हुई। जजों ने कहा कि खुदाई के दौरान कब्र पर पत्थरों के साथ कुछ मिट्टी की सामग्री भी फेंकी गई।
जजों ने मामले के कागजात से नोट किया कब्र को कोई नुकसान या अपवित्रता नहीं देखी जा सकी।
जजों ने आगे आईपीसी की धारा 295 का हवाला दिया जो किसी भी वर्ग के धर्म का अपमान करने के इरादे से पूजा स्थल को नुकसान पहुंचाने या अपवित्र करने के किसी भी कृत्य को दंडित करती है। पीठ ने कहा कि इस अधिनियम के तहत मामला साबित करने के लिए किसी वर्ग विशेष के लोगों द्वारा रखे गए किसी पूजा स्थल या पवित्र वस्तु को नुकसान पहुंचाना या अपवित्र करना साथ ही किसी वर्ग विशेष के धर्म का अपमान करने का इरादा या यह ज्ञान होना आवश्यक है कि व्यक्तियों का वर्ग इस तरह के विनाश को अपने धर्म का अपमान मान सकता है।
वर्तमान मामले में पीठ ने कहा है कि ऐसा कुछ भी नहीं है जो यह दर्शाता हो कि पूजा की वस्तु को नुकसान पहुंचाया गया।
जजों ने कहा,
'अपवित्र शब्द को गंदा करने के विचार तक सीमित नहीं किया जा सकता बल्कि इसे औपचारिक प्रदूषण तक भी बढ़ाया जाना चाहिए लेकिन प्रदूषण को साबित करना निश्चित रूप से आवश्यक है। वर्तमान मामले में FIR और पंचनामा की सामग्री से यह देखा जा सकता है कि उस स्थान पर चल रहे काम का उद्देश्य भूमि को समतल करना था, जो निजी स्वामित्व की है। कब्रिस्तान का कोई अस्तित्व नहीं देखा गया। बगल के गट नंबर में कुछ कब्रों का अस्तित्व देखा गया और सफाई या समतलीकरण के दौरान कब्रों में कुछ मिट्टी की सामग्री उड़ती हुई दिखाई दी। इन सभी सामग्रियों को वैसे ही स्वीकार करते हुए तथ्यों को इस हद तक खींचना मुश्किल है कि इसे शरारत के दायरे में लाया जा सके, जिसे आईपीसी की धारा 295 के तहत दंडनीय बनाया गया है।"
पीठ ने जोर देकर कहा कि धारा 295 का उद्देश्य उन व्यक्तियों को दंडित करना है जो जानबूझकर पूजा स्थलों को नुकसान पहुंचाकर या उन्हें अपवित्र करके दूसरों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाते हैं। धारा का मूल उद्देश्य व्यक्तियों के वर्ग की धार्मिक धारणाओं के अकारण अपमान को रोकना है।
जजों ने कहा,
"वर्तमान मामले में आवेदक उसी वर्ग के नागरिक हैं, जो सूचना देने वाले का है। आरोप-पत्र में ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे पता चले कि आवेदक किसी वर्ग के लोगों द्वारा पवित्र मानी जाने वाली किसी वस्तु को अपवित्र या नुकसान पहुंचाने का इरादा रखता हो। वास्तव में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिससे पता चले कि आवेदक ने धर्म या वर्ग का अपमान करने के इरादे से पवित्र स्थान को नुकसान पहुंचाने या अपवित्र करने के किसी भी कार्य में खुद को शामिल किया हो।"
इसके अलावा पीठ ने सिविल विवाद को आपराधिक मुकदमे में बदलने और शिकायतकर्ता की ओर से प्रक्रिया के दुर्भावनापूर्ण उपयोग की संभावना की ओर इशारा किया। इसलिए FIR रद्द की।
केस टाइटल: शेख तारिक मोहम्मद अब्दुल लतीफ बनाम महाराष्ट्र राज्य